पटना, ३० जनवरी। महाकवि जयशंकर प्रसाद एक युग–प्रवर्त्तक साहित्यकार थे, जिन्होंने एक साथ, कविता, कहानी, उपन्यास और नाटक लेखन के क्षेत्र में हिन्दी साहित्य को गौरवान्वित करने वाली, विश्व–विश्रुत महाकाव्य ‘कामायनी‘ समेत अनेक अनमोल कृतियाँ दी। ‘कामायनी‘नूतन संसार के नव–सृजन का महाकाव्य है। दूसरी ओर पं सूर्यकांत त्रिपाठी निराला तो सर्वतोभावेन ‘निराले‘ थे। ये दोनों ही हिन्दी काव्य–साहित्य में छायावाद के महत्त्वपूर्ण स्तंभ थे। सुमित्रा नंदन पंत और महादेवी वर्मा के साथ संयुक्त होकर इन्होंने छायावाद–काल का स्तम्भ–चतुष्ठय बनाया था।
यह बातें बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में महाकवि महाप्राण पं सूर्यकांत त्रिपाठी निराला और महाकवि जयशंकर प्रसाद की जयंती पर आयोजित समारोह और वासंती काव्योत्सव की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। डा सुलभ ने कहा कि, निराला जी अत्यंत स्वाभिमानी और वितरागी महाकवि थे। छंद के महान ज्ञाता होकर भी, आवश्यक समझा तो छंद के पारंपरिक मर्यादा को तोड़ा भी और एक नए छंद का सृजन किया, जिसे ‘मुक्त–छंद‘ कहा जाता है। वे लोग भ्रम में रहते हैं जो ‘छ्न्द–मुक्त‘ और ‘मुक्त छंद‘, एक अर्थ में लेते हैं। ‘राम की शक्ति पूजा‘ में उनकी लेखनी का पुण्य–प्रताप स्पष्ट परिलक्षित होता है।
अतिथियों का स्वागत करते हुए सम्मेलन की साहित्य मंत्री डा भूपेन्द्र कलसी ने कहा कि, निराला जी का संपूर्ण जीवन संघर्ष और तप करते व्यतीत हुआ।इसीलिए उनकी रचनाओं में वेदना है, संघर्ष भी है और अदम्य शक्ति भी। संघर्षों ने उन्हें वितरागी भी बना दिया था। ‘जूही की कलि‘ और राम की शक्तिपूजा‘ का वह कवि ‘वह आता तो टूक कलेजे को करता पछताता पथ पर आता‘ भी लिखता है। सम्मेलन की उपाध्यक्ष डा मधु वर्मा, डा कैलाश प्रसाद सिंह ‘स्वच्छंद‘ ने भी अपने विचार व्यक्त किए।
इस अवसर पर आयोजित कवि सम्मेलन का आरंभ चंदा मिश्र ने वाणी–वंदना से किया। डा शंकर प्रसाद ने अपनी रचना को सस्वर पढ़ते हुए कहा कि “सलमा सितारों से सजी मेरी रात है/ तारों की पालकी में रुकी मेरी आस है“। व्यंग्य के कवि ओम् प्रकाश पाण्डेय ‘प्रकाश‘ का कहना था – “हमको तो ग़द्दारों का अंत सूझता है/ तुमको मगर केवल वसंत सूझता है“। कवयित्री डा सुमेधा पाठक ने वसंत का स्वागत इन पंक्तियों से किया कि, “ आया वसंत हर्षोंल्लास लिए, खिला यौवन पारिजात कुसुम, रोम–रोम है पुलकित पुलकित, भ्रमरों के मीठे गुंजन से“। आराधना प्रसाद ने वाणी से प्रार्थना की कि, “सुर नवल नव तान भर दो/ प्रज्ञा, प्राण औ ध्यान भर दो/ मन तमस मालिनय हर लो/ जन–मन दोष निवारिणी“।
कवि राज कुमार प्रेमी, कुमार अनुपम, डा सीमा यादव, अभिलाषा कुमारी, डा शालिनी पाण्डेय, श्रीकांत व्यास, मनोरमा तिवारी, डा विनय कुमार विष्णुपुरी, अनुपमा नाथ, सुनील कुमार दूबे, जय प्रकाश पुजारी, डा आर प्रवेश, डा कुंदन कुमार, अश्मजा प्रियदर्शिनी, प्रियंका प्रिया, प्रभात वर्मा, चितरंजन भारती, विनय चन्द , अर्जुन प्रसाद सिंह, डा उमाशंकर सिंह तथा राज किशोर झा ने भी अपनी रचनाओं का पाठ किया। मंच का संचालन के अर्थमंत्री योगेन्द्र प्रसाद मिश्र ने तथा धन्यवाद ज्ञापन कृष्णरंजन सिंह ने किया।