” विचारों के भंवर में ”
आज प्रातः काल नींद कुछ जल्दी ही खुल गई मोबाइल में समय देखा तो 3:30 हो रहे थे। उस समय उठने का कोई तात्पर्य नहीं था तो लेटे लेटे ही विचारों की बगिया में सैर करने लगी । कब मन ने विचारों के भंवर में गोते लगाया और कहां तक बहाकर ले गया, इस बात का पता तब चला जब आंखों से बहती अश्रु की कुछ बूंदें हाथों तक आ गई। उन बूंदों को दूसरे हाथों से पोछने वाली ही थी कि नहीं पोछ पाई और अंधेरे में ही अश्रु की बूंदों को दूसरे हाथों का स्पर्श मिला ।
ऐसा एहसास हुआ मानो इन बूंदों से बहुत करीब का रिश्ता है हमारा । मेरे हर सुख – दुख का साथी , मेरे लिए हर क्षण तत्पर , बिना किसी प्रतिफल की चेष्टा के हमेशा अपने दायित्वों का बखूबी निर्वहन करती ये बूंदे।
इस समय ऐसा प्रतीत हुआ कि सबसे करीब का रिश्ता है इन बूंदों से मेरा और इसके बाद तो मुझे आंसू की उन बूंदों से ऐसा गहरा लगाव महसूस होने लगा कि उसका सानिध्य मुझे अपने जीवन के लिए अति आवश्यक लगने लगा ।
तभी उन बूंदों का नमकीन स्वाद अधरों पर महसूस हुआ और उस समय वो स्वाद कई पकवानों से भी बढ़कर लगने लगा जो मुझे अत्यंत प्रिय थे ।
शायद मन ने मेरे इन भावों को पढ़ लिया और मेरे साथ ही वह भी आंसुओं का महिमामंडन करने लग गया ।
उसने कहा बिल्कुल अश्रु की बूंदे एक उपचार भी हैं , औषधि भी है , जो मानसिक संताप रूपी निराशा की नदी से निकालकर आशा के सागर में गोते लगवाता है और हमारा एक ऐसा साथी जो साए की तरह हमारे साथ हमेशा मौजूद रहता है । जब जरूरत हो बिना कहे सहायता को तत्पर हमारे मन की व्यथा को , हमारे मन की पीड़ा को अनमोल पूंजी समझकर अपने हृदय की गहराइयों में स्थान देता है ।
तभी दिमाग और दिल में विरोधाभास सा हुआ । दिमाग ने कहा आंसू तो दुख के कारक है । तो मै भी मन ही मन सोचने लगी “क्या दुख ही वजह है आंसुओं की ?” तभी दिल ने रहीम जी की वह पंक्तियां याद दिलाई :-
‘रहिमन निज मन की व्यथा मन ही राखो गोय
सुन इठलैहैं लोग सब बांट न लैहैं कोई ।।’
तभी दिल ने कहां “तो क्या हुआ , सुख के साथी तो सभी होते हैं , दुख में नहीं ।
आंसू की तरह ही दुख में सच्चे दोस्तों की पहचान होती है और इस वाद – विवाद में मन की हर दलील को मूक सहमति देती हुई जगत के रचयिता से प्रार्थना की कि हे प्रभु किसी के भी आंखों से सुख के आंसुओं की बारिश हो । सबके जीवन की बगिया उल्लासित रहे और मनुष्य अपनी संवेदना को उस उच्च स्तर तक ले जाए जो सुख और दुख दोनों में एक दूसरे का आंसू की तरह रिश्ता निभा सके ।
इन्हीं भाव के साथ अश्रु की बूंदों को ऐसा स्पर्श किया कि वह मेरे अंदर ही समाहित हो जाए और इसके साथ ही मन ने कहा “बिल्कुल तुम ही मेरे सबसे अपने हो, बिल्कुल अपने!!”
लेखिका :— अंजू चौबे