पटना, साहित्यकार, किसी राजनैतिक दल का सदस्य न होकर भी, संपूर्ण समाज का नेतृत्व करता है। वह केवल लोक–रंजन के लिए ही साहित्य नही लिखता, बल्कि संसार का इतिहास लिखता है। एक साहित्यकार को ‘मकड़ा‘ नही बल्कि मधुमक्खी होना चाहिए, जो हर तरह के फूलों से पराग लेकर समाज को मधु प्रदान करती है।
यह बातें, बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन के ‘फ़ेसबुक लाइव‘ पटल पर अपना व्याख्यान देती हुईं, देश की प्रख्यात विदुषी और गोवा की पूर्व राज्यपाल डा मृदुला सिन्हा ने कही। ‘साहित्य का सामर्थ्य‘ विषय पर अपना व्याख्यान देते हुए उन्होंने कहा कि साहित्य समाज का दर्पण ही नही, समाज का निर्देशक भी होता है। इसमें समाज को बदलने की अपार शक्ति है। इस विराट शक्ति और सामर्थ्य को समझते हुए, साहित्यकारों को सृजन करना चाहिए। उन्होंने भक्ति–काल से लेकर लोक–साहित्य और स्त्री–विमर्श की सोदाहरण चर्चा के साथ अत्यंत सार गर्भित विचार व्यक्त किए, जिसमें भारतीय संस्कृति के विराट स्वरूप और महत्त्व का प्रतिपादन होता है। उन्होंने बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन के प्रयासों की सराहना करते हुए, अनेक परामर्श भी दिए और ‘अजी सुनते हो जी!’ नामक अपनीं अत्यंत लोकप्रिय कविता का भी पाठ किया। उन्होंने कई लोक–गीतों का भी सस्वर पाठ किया।
सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने पटल पर मृदुला जी का सादर अभिनंदन किया तथा १२०० से अधिक की संख्या में, पूरे देश से जुड़े साहित्यकारों के प्रति भी आभार प्रकट किया। स्मरणीय है कि पहली जुलाई से सम्मेलन का यह पटल आरंभ हुआ है। कल पटल पर आकर सम्मेलन अध्यक्ष ने अपनी बातों के साथ इस पटल के उद्देश्यों पर चर्चा की थी और आज डा मृदुला सिन्हा द्वारा इसका विधिवत उद्घाटन हुआ। इस पटल पर प्रत्येक दिन संध्या ६ बजे से देश की कोई न कोई विदुषी अथवा विद्वान उपलब्ध होंगे और अपने विचारों और काव्य–पाठ से लाभान्वित करेंगे। शुक्रवार को देश के चर्चित कवि डा सुरेश अवस्थी और शनिवार को राष्ट्रीय सद्भाव के अत्यंत लोकप्रिय कवि डा वाहिद अली ‘वाहिद‘ सम्मेलन के पटल पर होंगे।