पटना 18 सितम्बर।वैश्विक महामारी से पूरी मानवता आक्रांत है, लेकिन भारतीय जीवनश्शैली एवं खान-पान के कारण भारत के लोग अवसाद से ग्रसित नहीं हुए। वैश्विक महामारी से कल हम उबर जाएंगें लेकिन इस महामारी ने जीवन शैली में बड़े बदलाव का संदेश दिया है। हम सभी न्यूनौरमल समाज की ओर बढ़ रहें हैं। इस न्यूनौरमल समाज के तीन आयाम महत्वपूर्ण होंगे- जीवन की इच्छा, सामाजिक निकटता तथा करूणा। ये बातें श्री अरविन्द महिला कॉलेज में ‘वैश्विक समाज में दर्शन की भूमिका’ विषय पर भारतीय दार्शनिक-अनुसंधान परिषद् के अध्यक्ष प्रो. आर. सी सिन्हा ने कहीं।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि प्रो. आई. एन. सिन्हा ने कहा है कि आज विज्ञान दर्शन पर हावी होने लगा तथा विज्ञान सत्य का संवाहक होने लगा है। लेकिन इस वैश्विक महामारी में विज्ञान एवं तकनीकी भी अपने को असहज महसूस कर रहा है। प्रकृति विपदाओं के समाधान में तो कुछ हद तक विज्ञान एवं तकनीकी सहायक हो सकता है, लेकिन मानव निर्मित महामारी का समाधान जागरूकता के द्वारा ही संभव हो सकता है। समाज को जागरूक होना होगा तथा प्रकृति संसाधनों को नियंत्रित रूप से उपयोगी होना होगा।
बिहार दर्शन-परिषद् के महासचिव प्रो. श्यामल किशोर ने कहा कि वैश्विक महामारी के शमन में योग की महत्वपूर्ण भूमिका है। योग भारतीय दर्शन का अमूल्य देन है। योग का जीवन-शैली तथा साधना पक्ष का काफी महत्व है। कार्यक्रम की संयोजक प्रो. सत्या सिन्हा ने विषय प्रवर्तन करते हुए कहा कि दार्शनिक चिन्तन की सार्थकता का आकलन सामाजिक परिवेश में ही किया जा सकता है।