प्रिया सिन्हा की रिपोर्ट / अपने मधुर कंठ और प्रांजल लेखनी से, भोजपुरी और हिन्दी के हृदय-हारी गीतों से संपूर्ण भारतवर्ष में गीत का अलख जगानेवाली विदुषी कवयित्री डा सुभद्रा वीरेन्द्र सत्य ही बिहार की कोकिला थीं। ईश्वर ने उन्हें हमसे असमय ही छीन लिया। उनके मर्म-स्पर्शी गीत हमारी थाती हैं, जिनसे सदियों तक मानव-मन की पीड़ा हरी जाती रहेगी।यह बातें रविवार को बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में कवयित्री की गीति-रचनाओं पर केंद्रित मनीषी विद्वानों के आलोचना-आलेखों के संग्रह ‘कवयित्री सुभद्रा वीरेन्द्र की गीति कविताएँ’ के लोकार्पण समारोह एवं कवि सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। उन्होंने कहा कि सुभद्रा जी भारतीय-नारी की विनम्र-संज्ञा थी। उन्हें देखना सरस्वती के जीवंत विग्रह का दर्शन करना था। वो अद्वितीय थीं। उनकी अनुपस्थिति में लोकार्पित यह पुस्तक उनके प्रति एक विनम्र श्रद्धांजलि है। पुस्तक में प्रकाशित लेखों के संकलन और कुशल संपादन के लिए कवयित्री के दोनों सुसंस्कृत पुत्र दिव्यांशु शेखर और शेषांशु शेखर बधाई और आशीर्वाद के पात्र हैं।सामारोह का उद्घाटन करते हुए, पूर्व केंद्रीय मंत्री डा सी पी ठाकुर ने कहा कि राजनीति और साहित्य में बड़ा अंतर हो गया है। साहित्य बहुत बड़ा है। राजनीति वालों को उसका सम्मान और अनुसरण करना चाहिए। कविताएँ सुनना बहुत अच्छा लगता है। उससे प्रेरणा मिलती है।वरिष्ठ कवि नचिकेता ने कहा कि यह स्त्री-विमर्श का युग है। स्त्रियाँ आज पुरुषों से कंधा से कंधा मिलकर चलती हैं। किंतु हमने कभी भी सुभद्रा जी का आँचल सिर से नीचे गिरा नहीं देखा। वह भारतीय परंपरा की जीवाद उदाहरण थी। हिन्दी और भोजपुरी दोनों ही भाषाओं में उन्हें महारत हासिल थी। उन्होंने जीवन भर साहित्य और संगीत की साधना करती रहीं।वरिष्ठ कथा लेखिका डा उषा किरण खान ने कहा कि सुभद्रा जी के गीतों उनके स्वर और उनकी आत्मीयता से मैं सदा अभिभूत रही हूँ। वो मेरे प्रति अगाध स्नेह-सम्मान रखती थीं। उनके निधन ने मुझे अंतर तक मर्माहत कर दिया है। उनका जन्म गीत के लिए हुआ था, और उन्होंने अपना कार्य पूरा किया।कवयित्री के पति और विद्वान समालोचक प्रो कुमार वीरेन्द्र ने कहा कि सुभद्रा जी की भोजपुरी और हिन्दी गीतों की ६ पुस्तकें प्रकाशित हैं। उनके व्यक्तित्व और रचनाओं में भारतीय नारी की एक दिव्य छवि भासित है। वो संसार की समस्त नारियों की पीड़ा को अपनी ही पीड़ा समझती थीं।इस अवसर पर आयोजित कवि सम्मेलन का आरंभ चंदा मिश्र की वाणी वंदना से हुआ। सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद, कवि बच्चा ठाकुर, आचार्य विजय गुंजन, कुमार अनुपम, पं गणेश झा, जय प्रकाश पुजारी, विनोद कुमार झा, डा आर प्रवेश, प्रणव पराग, डा सत्येन्द्र सुमन, डा महेश राय, डा विनय कुमार विष्णुपुरी, अनिल कुमार झा, अर्जुन प्रसाद सिंह, ज्योति मिश्रा, अजीत कुमार, आदि कवियों और कवयित्रियों ने अपनी गीति-रचनाओं से सुभद्रा जी के प्रति श्रद्धांजलि अर्पित की। मंच का संचालन डा अर्चना त्रिपाठी ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन कृष्णरंजन सिंह ने किया।समारोह में, शशि भूषण कुमार, संजय कुमार मिश्र, योगेश कुशवाहा, बाँके बिहारी साव, कुमार गौरव, प्रत्युष किरण, राजनीति सिंह, कुमार गौरव, अमित कुमार सिंह आदि प्रबुद्धजन उपस्थित थे।