पटना, २६ नवम्बर। न्यायालयों की भाषा जितनी शीघ्रता से भारतीय भाषाएँ हो जाए, राष्ट्रहित में उतना ही अच्छा है। जनता को जनता की भाषा में ही न्याय मिले, यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए। भारत का संपूर्ण विकास तभी होगा जब, देश की कार्यपालिका, न्यायपालिका और विधायिका की भाषा देश की भाषा हो।यह बातें शनिवार को बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में, वैश्विक हिन्दी सम्मेलन, मुंबई और केंद्रीय हिन्दी संस्थान, आगरा के सांयुक्त तत्त्वावधान में, “जैन भाषा हिन्दी में न्याय, शिक्षा व रोज़गार” विषय पर आयोजित राष्ट्रीय-संगोष्ठी में पटना उच्च न्यायालय की पूर्व न्यायाधीश और चाणक्य राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय की कुलपति न्यायमूर्ति मृदुला मिश्र ने कही। उन्होंने कहा कि हम आरंभ से ही भूल करते आ रहे हैं। हमें संविधान में इंडिया के स्थान पर भारत लिखना चाहिए था।सभा की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन काध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कहा कि भाषा संबंधी सभी समस्याओं का निदान एक दवा में है। और वह यह कि हिन्दी को देश की राष्ट्रभाषा घोषित कर दिया जाए। जब हिन्दी देश की राष्ट्रभाषा हो जाएगी तो, वह कार्यपालिका और विधायिका का ही नहीं स्वतः न्यायपालिका की भी भाषा हो जाएगी। शिक्षा और रोज़गार की भी भाषा हो जाएगी।इसके पूर्व विषय परवर्तन करते हुए, वैश्विक हिन्दी सम्मेलन के निदेशक डा मोतीलाल गुप्त ‘आदित्य’ ने कहा कि यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है कि देश की न्यायपालिका में देश की भाषा में याचिका की अनुमति नहीं है। हिन्दी में याचिका देने वाले को प्रताड़ित और अपमानित किया जाता है।संगोष्ठी के मुख्यअतिथि और बिहार बार काऊँशिल के अध्यक्ष रमाकान्त शर्मा ने कहा कि आज संविधान दिवस है, इसलिए हम अपने संविधान की आलोचना नहीं कर सकते, किंतु हिन्दी देश के कामकाज की भाषा बने, इस आंदोलान का हमें मिलकर समर्थन करना चाहिए।संगोष्ठी के मुख्यवक़्ता और इलाहाबाद उच्चन्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता प्रदीप कुमार ने कहा कि न्यायालयों में हिन्दी को सम्मान मिले इस हेतु आंदोलान बहुत पहले से चलाया जा रहा है। उनके पिता प्रेम गुप्ता जो इलाहाबाद उच्चन्यायालय में न्यायाधीश भी थे, अपने निर्णय हिन्दी में दिया करते थे। उन्होंने चार हज़ार से अधिक निर्णय हिन्दी में दिए। यदि इस परंपरा को बाल दिया गया होता तो हम इस दिशा में बहुत आगे बढ़े होते। हमें संकल्प लेकर हिन्दी के पक्ष में कार्य करना चाहिए। सरकार को चाहिए कि वह हिन्दी के लिए केवल भाषण ही न करे, निर्णय ले।इस अवसर पर हिन्दी की मूल्यवान सेवा के लिए सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ को ‘वैश्विक हिन्दी साहित्य सेवा सम्मान’, हिन्दी की प्राध्यापिका डा मंगला रानी को ‘डा कामिनी स्मृति हिन्दी सेवा सम्मान’ तथा विनोद शर्मा, कृष्णा यादव और अखिलेश कुमार सिंह को न्याय के क्षेत्र में हिन्दी के लिए संघर्ष हेतु हिन्दी सेवा सम्मान से अलंकृत किया गया। अधिवक्ता छाया मिश्र, ऋतुवाला साक्षी, मोनी पटेल, संजीव तिवारी, सुखवर्षा, जगत सिंह, गोपाल प्रकाश तथा भारती मिश्रा ने भी अपने विचार व्यक्त किए।कार्यक्रम का संचालन संगोष्ठी के संयोजक और अधिवक्ता इंद्रदेव, डा अर्चना त्रिपाठी और डा मंगला रानी ने संयुक्त रूप से किया। इस अवसर पर अधिवक्ता आशा मिश्र, डा मनोज गोवर्द्धनपुरी, प्रो सुशील कुमार झा, डा मनोज कुमार, शायरा तलत परवीन, डा सुमेधा पाठक, अधिवक्ता संजीव कुमार मिश्र समेत सैकड़ों की संख्या में अधिवक्ता और प्रबुद्धजन उपस्थित थे।