अजित सिंह की ग्राउंड रिपोर्ट -सरायकेला. झारखंड के सरायकेला जिले से एक अनोखे मामले का पर्दाफाश होता हुआ देखा जा रहा है,जहां जिले के चांडिल अनुमंडल में मौजूद स्वर्णरेखा परियोजना में पुरे जिले या यूं कहें की झारखंड के सबसे महत्वपूर्ण जिले के किसानों को खेती करने से रोकने का काम सिंचाई विभाग करता हुआ देखा जा रहा है पूरे मामले की जानकारी जब हमारे पत्रकारों ने लेना चाहा तो सरकार द्वारा बनाए गए सिंचाई विभाग के स्वर्णरेखा परियोजना में कुछ और ही सच्चाई देखने को मिली। जहां विभाग के सर्वोच्च पद पर बैठे कार्यपालक अभियंता सुरज भुषण अपने कार्यालय से नदारद देखे गए, वही कार्यालय में काम करने वाले कर्मचारी ने बताया कि बीते गुरुवार से उनका आना कार्यालय में नहीं हुआ है और दबे जुबान से सीधे मुख्यमंत्री तक पहुंच की बातें बताई जाने लगी। इतने में वहां कार्यालय का चक्कर लगाते एक ठेकेदार को भी कैमरे ने देख लिया जब उनसे कुछ पूछताछ की गई तो बातों ही बातों में सरकार के सिपहसालारों की कलई खुलती देखी जाने लगी जहां चैक कैनाल डैम का निर्माण करने वाले ठेकेदार अनूप राय ने बताया कि सितंबर 2022 में ही उन्होंने कैनल और उसमें निर्माण कराए गए गेट का काम सफलतापूर्वक संपन्न कर दिया है। कई जांच हुए सभी चीजों में सरकार के द्वारा निर्धारित तमाम चीजों को संज्ञान में लेने के बाद ही सारे काम संपूर्ण किए गए हैं लेकिन पदाधिकारियों की कारगुजारी का नतीजा यह है कि उन्हें अभी तक कोई भी पैसे का भुगतान नहीं किया गया है जिसके चलते ना ही उनके द्वारा बनाए गए नाले में पानी छोड़ा गया और ना ही खेतों तक पानी पहुंचा। आला अधिकारियों को तो झारखंड सरकार और मुख्यमंत्री ने फंड आवंटित कर दिए लेकिन मलाई खाने के चक्कर में काम करने वाले ठेकेदारों का दोहन शुरू हुआ और उन्हें भुगतान नहीं किया गया। ठेकेदार को तो नुकसान पैसे का हुआ लेकिन किसान इससे बेमौत मारे गए, आज नतीजा यह है कि मुख्यमंत्री के द्वारा आदेश पारित हुई और चंद दिनों पहले झारखंड के हर जिले में मुख्यमंत्री सुखाड़ राहत योजना का आयोजन हुआ जहां खेती करने वाले मजबूर किसानों को ₹3500 की अग्रिम राशि भुगतान कराने के लिए रजिस्ट्रेशन कराना पड़ रहा है। अगर किए गए काम का भुगतान कर दिया जाता तो सभी कैनलों में पानी भी निर्बाध पहुंचता और किसान आराम से खेती कर पाते लेकिन ऐसा नहीं हुआ और आज पूरा मामला ही पलट कर रह गया है। चांडिल अनुमंडल में सूरज भूषण नाम के कार्यपालक अभियंता अपनी जिम्मेदारियों को जूते के नोक पर रखते हैं और सिर्फ एकमात्र मौजूद ठेकेदार का ही नहीं बल्कि तमाम ठेकेदारों का दोहन लगातार करते हैं। उन्हें कोई लेना देना नहीं है कि किसान जिए या मरे अब यह आपको तय करना है कि सरकार कैसे काम कर रही है ।शायद पदाधिकारियों के दबाव से मुख्यमंत्री की कुर्सी हिल भी नहीं पाती होगी इसलिए ऐसे अधिकारियों पर कोई कार्यवाही करने में खुद दिशोम गुरु के बेटे झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन भी डरते हैं।