सरेया, अरेराज, ( बिहार )
रवीश कुमार को रमन मैग्सेसे पुरस्कार मिलने पर पूरे प्रखंड में हर्ष व्याप्त.
रवीश कुमार दिल्ली में रहते हुए भी कभी दिल्ली के नहीं हुए. पत्रकारिता के दौरान कभी रविश कुमार अहम् के शिकार नहीं हुए. रामबली पाण्डेय ( हमलोगो के प्यारे चाचा जी )अब इस दुनिया मे नहीं है, भगवान के पास ये सन्देश पहुंच गया होगा की आपके बेटा को एशिया मे पत्रकारिता निष्पक्ष करने के लिये आज सबसे बड़ा पुरस्कार मिला.जब मैंने 10th की परीक्षा पास की. उस समय मे घर मे चर्चा शुरू था की अब कुछ पढ़ाई मे आगे करना चाहिए. लेकीन शाम के समय अक्सर दादाजी हमारे क्षेत्रीय विधायक देवेंद्र नाथ दुबे और रविश भईया की बात करते थे. हमारे दादा अक्सर कहा करते थे,रविश डाइरेक्ट प्रधानमंत्री से बात करेला. मुझे दादाजी की बात पे लगता था की रविश कुमार प्रधानमंत्री से बड़े है क्या. जब रविश भैया घर आते और शाम मे दुआर पर कुर्सी पर बैठते तो मै उनके घर की बाउंड्री के बिल से उन्हें देखता. निहारते रहता.
एक बार मेरा पाटीदार रत्नाकर पाण्डेय ने मुझे देख लिया तो पूछा का देख रहे हो.
आज जब गांव वालो को ये वाक्या बताता हु तो सब हसते है. मैंने रविश कुमार को देख कर निर्णय लिया की एक दिन उनके चरणों का धुल बनुगा,
दादाजी की बातों पर मुझे समझ नहीं आता था कि मैं करूं तो क्या करूं, मेरे दादा अक्सर कहते आईएएस बनना या पत्रकार. दादाजी कहते रविश अइसन बारे. मेरे दादाजी को रविश कुमार के पापा बहुत सम्मान करते मेरे मेरे दादाजी को. दादाजी अक्सर कहते तुम्हारे बाप को पढ़ा कर डॉ बनाया, तुम या DM बनो नहीं तो नहीं तो पत्रकारिता, मेरे दादा का सोच बहुत दूर तक था,ओ इतना दूर तक सोचते थे की मेरा आकलन फेल हो जाता. इंसान होते हुए भी, 1975 में उनका कितना बड़ा सोच होगा कि मेरे पापा को उन्होंने डॉक्टरी की शिक्षा देने के लिए मुजफ्फरपुर भेजा,
रवीश कुमार के पिताजी पटना सचिवालय में प्रशाखा पदाधिकारी हुआ करते थे, रवीश कुमार भाइयों में छोटे थे, साल में एक बार गाँव का आना होता था, रवीश भैया को देखने के लिए पाटीदार लोग बांध पर खड़े हो जाते थे, कभी लगता ही नहीं था कि रवीश भैया इतने बड़े पत्रकार हैं,
मैं अपनी पत्नी के साथ अरेराज में एक सोने की दुकान पर बैठा था, सुनार ने कहा कल ही तो आए थे रवीश भैया दुकान पर, एक रूपये कम नहीं कराये. उनकी असाधारण व्यक्तित्व की चर्चा कर उठा, सुनार ने कहा मुझे लगा ही नहीं इतने बड़े बड़े पत्रकार हैं.
रवीश भैया दिल्ली में जहां खड़े होते हैं, आम जनमानस की भीड़ खड़ी हो जाती है, जब गांव आते हैं तो उनका असाधारण व्यक्तित्व दिखता है,
जब उनको लोग गाली देते हैं, मुझे पत्रकारिता करने पर दुःख होता है.
मैंने पत्रकारिता उन्हें ही देख का पढ़ने का निर्णय किया. आज मुझे गर्व है अपने पढ़ाई और रविश कुमार पे. आज पुरे चम्पारण को गर्व होगा ऐसा पुत्र हमने जन्म दिया की बिना डरे आपने पत्रकारिता को आगे बढ़ाते हुए अपने काम पे अडिग है.
कौशलेन्द्र पाण्डेय