जीतेन्द्र कुमार सिन्हा, वरीय संपादक /मल्टी सिस्टम इंफ्लेमेटरी सिंड्रोम इन चिल्ड्रेन (MIS-C) ने बिहार में भी अपना पाँव पसारने लगा है। यह बीमारी कोरोना संक्रमण के दुष्प्रभाव और ब्लैक फंगस के बाद एक नयी बीमारी है। यह रोग बच्चों में फैल रही है। पटना में अभी तक 7 से अधिक बच्चों में ये बीमारी पाए गए हैं। अभी बच्चों का इलाज पटना के अस्पतालों में चल रही है। इस बीमारी की चपेट में वो बच्चे आ रहे हैं जो कोरोना संक्रमित हुए थे या फिर उनके घर में किसी को कोरोना हुआ था। यह बीमारी 18 वर्ष उम्र तक के बच्चे में हो सकता है। लेकिन 12 साल से कम उम्र के बच्चों को इससे अधिक खतरा है।कोरोना के कारण अधिक मात्रा में एंटीबॉडी का बनना इस बीमारी का कारण माना जा रहा है। इस बीमारी से लिवर, किडनी, हार्ट समेत शरीर के कई अंग प्रभावित हो जाते हैं। MIS-C बीमारी में लगातार तीन दिन या उससे अधिक समय तक बुखार होना, चमड़े में चकत्ते पड़ना, हाथ-पांव ठंडा होना, बल्ड प्रेशर का कम होना, पेट में दर्द, डायरिया, उल्टी होना या पेट में मरोड़ होना, सांस लेने में तकलीफ, सीने में दर्द या दबाव महसूस होना, चेहरे या होंठ का नीला होना, सोने के बाद उठने में दिक्कत होना, दिल की धड़कन तेज होना, होंठ या नाखुन का नीला पड़ना, लक्षण है।कोरोना से घर के कोई सदस्य यदि संक्रमित घर हो जाता है तो बच्चों को संक्रमित सदस्य से दूर रखना चाहिए। भीड़भाड़ वाली जगहों से भी बच्चों को दूर रखना चाहिए। अगर बच्चे कोरोना की चपेट में आ गए हों तो निगेटिव रिपोर्ट आने के बाद भी उनकी निगरानी और केयर करते रहना चाहिए। कुछ समय के अंतराल में चिकित्सकों का परामर्श भी लेते रहना चाहिए।बीमारी के लक्षण दिखाई पड़ने पर सीवीसी, ईएसआर, सीआरपी और डि-डाइमर जैसी जांच से आसानी इसका पता लगाया जा सकता है। गरीब परिवार के बच्चों की जांच सीआरपी जांच (जो तुलनात्मक रूप से सस्ती होती है) से इसका पता लगाया जा सकते है।यह बीमारी कोरोना के कारण अधिक मात्रा में एंटीबॉडी का बनना इसका कारण माना जाता है। इस बीमारी से लिवर, किडनी, हार्ट समेत शरीर के कई अंग प्रभावित हो होते है। कोरोना संक्रमितों को मात दिये या संक्रमितों के संपर्क में आए बच्चों में मुश्किल से एक फीसद में यह बीमारी होने की संभावना होती है।