पटना /हिन्दू धर्म में प्रत्येक वर्ष श्री कृष्ण जन्माष्टमी का पर्व बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। इस वर्ष यह पर्व 30 अगस्त को मनाया जा रहा है। श्रीमद्भागवत पुराण के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण का जन्म भाद्र कृष्ण अष्टमी तिथि बुधवार रोहिणी एवं वृष राशि में मध्य रात्रि में हुआ था। शास्त्रों में बताया गया है कि जन्माष्टमी पर 6 तत्वों का एक साथ मिलना बहुत ही दुर्लभ होता है। यह तत्व हैं- (1) महीना भाद्र (2) कृष्ण पक्ष, (3) अर्ध रात्रिकालीन अष्टमी तिथि (4) रोहिणी नक्षत्र (5) वृष राशि में चन्द्रमा (6) सोमवार या बुधवार ।इस तरह के संयोग मिलने पर, व्रत करने वालों को पाप-कष्टों से मिलती है मुक्ति। निर्णय सिंधु नामक ग्रंथ के अनुसार ऐसा संयोग जन्माष्टमी पर जब बनता है तो व्रत करने वालों के तीन जन्मों के जाने-अनजाने हुए पापों से मुक्ति मिलती है। मान्यता है कि ऐसी तिथि में भगवान श्रीकृष्ण की पूजा करने से भक्तों की सभी मनोकामना पूर्ण होती है। व्यक्ति को भगवान की कृपा प्राप्त होती है। जो लोग कई जन्मों से प्रेत योनि में भटक रहे हो इस तिथि में उनके लिए पूजन करने से उन्हें मुक्ति मिल जाती है। इस संयोग में भगवान कृष्ण के पूजन से सिद्धि की प्राप्ति होती है तथा सभी कष्टों से मुक्ति मिलती है।भगवान श्रीकृष्ण के खड्ग का नाम- नंदक, गदा का नाम- कौमोदकी और शंख का नाम- पांचजन्य था जो गुलाबी रंग का था। इनके धनुष का नाम- शारंग, मुख्य आयुध चक्र का नाम- सुदर्शन था। वहीं लौकिक दिव्यास्त्र एवं देवास्त्र तीनों रूपों में कार्य करता था उसकी बराबरी के विध्वंसक केवल दो अस्त में पाषुपास्त्र और प्रस्वपास्त्र थे। भगवान श्रीकृष्ण के रथ का नाम- जैत्र और सारथी का नाम दारूक/बाहुक, घोड़े का नाम-शैव्य, सुग्रीव, मेघपुष्प् और बलाहक था। उन्होंने तीन भयानक युद्ध का संचालन किया था वह था (1) महाभारत (2) जरासंध और कालयवन (3) नरकासुर के विरूद्ध।भगवान श्रीकृष्ण ने 16 वर्ष की आयु में विश्वप्रसिद्ध चाणूर और मुष्टिक जैसे मल्लों का वध किया था और मथुरा में दुष्ट रजक के सिर को हथेली के प्रहार से काट दिया था। भगवान श्रीकृष्ण असम में वाणासुर से युद्ध के समय भगवान शिव से युद्ध के समय माहेश्वरज्वर के विरूद्ध वैष्णव ज्वर का प्रयोग कर विश्व का प्रथम जीवाणु युद्ध किया था।भगवान श्रीकृष्ण ने पूतना, शकटासुर, कालिया, यमुलार्जन, धेनुक, प्रलंब, अरिष्ठ आदि असुरों का बध किया था। उन्होंने चाणुर और मुष्ठिक, कंस, जरासंध, कालयवन, शिवाजी, अर्जुन, नरकासुर, जामवंतजी, पौंड्रक आदि से युद्ध भी किया था।गुजरात राज्य के पश्चिमी सिरे पर समुद्र के किनारे स्थित चार धामों में से एक धाम और सात पवित्र पुरी है द्वारिका। द्वारिका में भी दो है एक है गोमती द्वारिका धाम और दूसरा है बेट द्वारिका पुरी। बेट द्वारिका पुरी के लिए समुन्द्र मार्ग से जाना पड़ता है इसका प्राचीन नाम कुशस्थली है। पौराणिक कथाओं के अनुसार महाराज रैवतक के समुद्र में कुश विछाकर यज्ञ करने के कारण ही इस नगरी का नाम कुशस्थली हुआ था।भारत में सबसे प्राचीन नगरों में से एक है द्वारिका। ये 7 नगर है- द्वारिका, काशी, हरिद्वार, अवंतिका, कांची और अयोध्या। द्वारिका को द्वारावती, कुषस्थली, आनर्तक, ओखा-मंडल, गोमती द्वारिका, चक्रतीर्थ, अंतरद्वीप, वारिदुर्ग, उदधिमध्य स्थान भी कहा जाता है।जन्माष्टमी इस वर्ष 30 अगस्त को वैष्णवी और समात दोनो एक ही दिन मनायेंगे, क्योंकि अष्टमी तिथि की शुरूआत 29 अगस्त को रात 11.25 बजे से ही शुरू हो जायेगा और इसकी समाप्ति 31 अगस्त को 01.59 बजे समाप्त होगा। रोहिणी नक्षत्र का प्रारम्भ 30 अगस्त को सुबह 6.39 बजे शुरू होगा और 31 अगस्त को 09.44 बजे समाप्त होगा। इस बीच पूजा का समय 30 अगस्त को रात 11.59 बजे से 12.44 बजे तक रहेगा।जन्माष्टमी पर बाल रूप में भगवान श्रीकृष्ण की स्थापना की जाती है। वैसे तो मनोकामना के अनुसार जिस स्वरूप को चाहें, भगवान श्रीकृष्ण को उस रूप में स्थपित किया जा सकता है। प्रेम और दाम्पत्य जीवन के लिए राधा-कृष्ण रूप की, संतान के लिए बाल श्रीकृष्ण रूप की और सभी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए बांसुरी के साथ श्रीकृष्ण की प्रतिमा का प्राण प्रतिष्ठित किया जाता है। भगवान श्रीकृष्ण के विग्रह का श्रृंगार में फूलों का खूब प्रयोग करना चाहिए। पीले रंग के वस्त्र, गोपी चन्दन और चन्दन की सुगंध से विग्रह का श्रृंगार करना चाहिए। श्रृंगार में काले रंग का प्रयोग कदापि न करना चाहिए। वैजयंती के फूल अगर भगवान श्रीकृष्ण को अर्पित करना सर्वोत्तम माना गया है। भगवान श्रीकृष्ण को पंचामृत जरूर अर्पित करना चाहिए, जिसमें तुलसी दल, मेवा, माखन और मिसरी का भोग आवश्यक हो। कहीं-कहीं धनिये की पंजीरी का भोग भी लगाया जाता है। पूर्ण सात्विक भोजन जिसमें अन्न न हो भगवान श्रीकृष्ण को अर्पित किया जाता है। जन्माष्टमी के दिन व्रत करने वालों का प्रातःकाल स्नान करके व्रत व पूजा का संकल्प लेकर, दिन भर जलाहार या फलाहार ग्रहण कर सात्विक रहना चाहिए। मध्यरात्रि को भगवान श्रीकृष्ण की धातु की प्रतिमा को किसी पात्र में रखकर, प्रतिमा को पहले पंचामृत स्नान (दूध, दही, शहद, शर्करा और अंत में घी से स्नान) कराना चाहिए। इसके बाद प्रतिमा को जल से स्नान कराने के बाद पीताम्बर, पुष्प और प्रसाद शंख में डालकर भगवान श्रीकृष्ण को अर्पित करना चाहिए। इसके बाद अपनी मनोकामना के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण के स्तुती मंत्र का जाप करना चाहिए।मथुरा नगरी में कंस के कारागार में देवकी की आठवीं संतान के रूप में भगवान श्रीकृष्ण भाद्रपद कृष्ण पक्ष की अष्टमी को पैदा हुए थे। उनके जन्म के समय अर्धरात्रि थी, चन्द्रमा उदय हो रहा था और उस समय रोहिणी नक्षत्र भी था। इसलिए इस दिन को प्रतिवर्ष कृष्ण जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है।