सीनियर एडिटर -जितेन्द्र कुमार सिन्हा, पटना ::महाभारत के युद्ध में अश्वत्थामा अपने पिता की मृत्यु के बाद पाण्डवों से बेहद नाराज थे। अश्वत्थामा अपने मन में बदले की भावना लिए पाण्डवों के शिविर में चले गए, उस शिविर में 5 लोग सो रहे थे। अश्वत्थामा ने उन सब को पाण्डव समझ कर मार डाला। कहा जाता है कि वह पांचों पाण्डव नहीं था बल्कि द्रोैपदी की संतानें थीं। द्रौपदी की संतानों की मृत्यु से क्रोधित होकर अर्जुन ने अश्वत्थामा को बंदी बना लिया और उसके माथे पर लगा उनकी दिव्य मनी उनसे छीन लिया था। इस बात से क्रोधित होकर अश्वत्थामा ने अभिमन्यु की पत्नी उतरा के गर्भ में पल रहे बच्चे को मार डाला। ऐसे में भगवान श्रीकृष्ण ने अपने सभी पुण्यों का फल उतरा की अजन्मी संतान को दे दिया, जिसके कारण उनके गर्भ में पल रहे बच्चे को फिर से जीवन मिल गया। भगवान श्रीकृष्ण के आशीर्वाद से जीवित हुए इस बच्चे का नाम जीवित्पुत्रिका रखा गया। उसी समय से संतान प्राप्ति और उसकी लंबी उम्र की मंगल कामना के लिए जीवित्पुत्रिका व्रत रखने की परंपरा शुरू हो गई। इस दिन भगवान श्री राम के पुत्र लव तथा कुश की भी पूजा की जाती है।जीवित्पुत्रिका (जितिया) का पर्व प्रत्येक वर्ष हिन्दू पंचांग के अष्विनी मास में कृष्ण पक्ष के सातवें से नौवें चंद्र दिवस तक मनाये जाने की परंपरा है। इस वर्ष जीवित्पुत्रिका का पर्व 28 सितम्बर से शुरू होकर 30 सितम्बर तक मनाया जायेगा। जीवित्पुत्रिका व्रत का नहाय-खाय 28 सितम्बर को, सरगही 2 बजे भोर से 5 बजे तक, व्रत 29 सितम्बर को सूर्योदय से दूसरे सूर्योदय तक तथा पारण 30 सितम्बर को सूर्योदय (6 बजे सुबह) के बाद होगा।यह व्रत मुख्य रूप से बिहार, झारखण्ड, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल में मनाया जाता है। इस व्रत में संतान प्राप्ति और संतान की दीघार्यु के लिए माताओं द्वारा व्रत रखा जाता है। यह व्रत अन्य व्रतों से कठिन व्रत माना जाता है। इस व्रत में भी छठ पूजा की तरह नहाय-खाय और निर्जला रहकर व्रत करने की परम्परा है।देखा जाय तो सनातन धर्म में पूजा-पाठ इत्यादि धार्मिक कार्यों में मांसाहार का सेवन वर्जित रहता है, लेकिन इस व्रत की शुरूआत ही मछली खाकर की जाती है। पौराणिक कथाओं के अनुसार इस परंपरा के पीछे जीवित्पुत्रिका व्रत की कथा में वर्णित चील और सियार का होना माना जाता है। नहाय-खाय के दिन महिलाएं मडुवे के आटे की रोटी, नोनी का साग, पांच प्रकार की सब्जियां तथा मछली का सेवन करती है। उसके बाद अगले दिन निर्जला व्रत रखती है। ततपश्चात उसके अगले दिन पारण के बाद लाल रंग के धागे में जितिया का लॉकेट धारण करती है।जीवित्पुत्रिका व्रत के दिन महिलाएं स्नानादि करके साफ वस्त्र धारण कर, पूजा स्थान पर श्रीकृष्ण और लव-कुश की प्रतिमा को स्थापित कर, धूप-दीप इत्यादि जलाकर उनकी पूजा-उपासना और आरती करती है। उसके बाद, फल-मिठाई का भोग लगाने के बाद सूर्य को जल अर्पित करती है। सप्तमी तिथि को नहाय-खाय, अष्टमी तिथि को पूरे दिन निर्जला व्रत और नवमी तिथि को व्रत का पारण कर के जीवित्पुत्रिका व्रत का समापन करती है।ऐसी मान्यता है कि जो भी माताएं संपूर्ण भक्ति भाव से जीवित्पुत्रिका का व्रत रखती है। उनकी संतान सदैव सुखी तथा निरोग रहती है। साथ ही साथ उनके घर में बरकत का वास होता है।