अजित सिंह की रिपोर्ट -धनबाद. शुक्रवार को इंडस्ट्रीज एंड कॉमर्स एसोसिएशन के सभागार में आयोजित एसोसिएशन के 89वें वार्षिक आम सभा में हार्डकोक उद्योग को हो रही परेशानियों पर विस्तार से चर्चा की गई.एसोसिएशन के अध्यक्ष बीएन सिंह, वरीय उपाध्यक्ष एसके सिन्हा,, रतन अग्रवाल, प्रो. प्रमोद पाठक ने दीप प्रज्वलित कर सभा का शुभारंभ किया. बीएन सिंह ने अपने अध्यक्षीय भाषण में कहा कि राष्ट्रीय परिदृश्य का जहाँ तक सवाल है तो हमारी चुनौतियां बढ़ रही हैं। मूल्य वृद्धि अनियंत्रित हो रही है और बहुसंख्यक जनता महंगाई की मार से पीड़ित है। आवश्यक वस्तुओं के दाम रोकने में सरकार विफल है और ईंधन की कीमतों में वृद्धि औद्योगिक उत्पादों को महंगे बनाकर उनकी स्पर्धा की क्षमता घटा रहे हैं। केन्द्र सरकार आर्थिक मोर्चे पर बहुत सफल नहीं दिख रही और लगता है कि बाजार की शक्तियां आक्रामक हो रही हैं एवं उनका मुकाबला करने की हमारी क्षमता क्षीण हो रही है। इस विषम परिस्थिति में भारत-चीन मोर्चे पर बढ़ता तनाव हमारी समस्या बढ़ा रहा है। चीन को हम नजर अंदाज नहीं कर सकते और उसके नेतृत्व की महत्वकांक्षा के आलोक में हमें अपनी प्रतिरक्षा की क्षमता बढ़ानी होगी। प्रधानमंत्री और उनके सहयोगियों की चुनौतियां गंभीर हैं। अपने प्रदेश का जहाँ तक सवाल है तो यहाँ भी परिस्थितियां बहुत उत्साह वर्धक नहीं हैं। एक ओर तो हम उन्हीं पुरानी समस्याओं से जूझ रहे हैं जिनसे हम पीड़ित थे। वही कुछ नये संकट भी उभर रहे हैं। औद्योगिक हितैषी वातायरण तैयार करने में आधार भूत संरचना एवं कानून एवं व्यवस्था की बड़ी भूमिका होती है। आज भी हवाई सेवा से हम वंधित है। कुल मिलाकर स्थानीय से लेकर वैश्विक वातारण उत्साहवर्धक नहीं प्रतीत हो रहा है।आज जब हम अपनी पटरी से उतरी हुईं अर्थव्यवस्था और अपने उद्योग को फिर से सही पटरी पर लाने की कोशिश कर रहे हैं तो यह आवश्यक है कि हम पिछले एक वर्ष की स्थिति का अवलोकन करें। अब जबकि हम कोरोना महामारी की काली छाया से बाहर निकलने के लिये प्रयासरत हैं हमारी सबसे बढ़ी चुनौती कोकिंग कोल का अभाव है जो भारत कोकिंग कोल लिमिटेड (बीमीसीएल) की हठधर्मिता के चलते है।इनका यह रवैया हमारी उद्योग की स्थिति सुधारने में सबसे बड़ी बाधा है। हमारी स्थिति को जानते हुए भी बीसीसीएल अपनी वही कोयला वितरण नीति को लेकर अड़ा हुआ है जो न तो तर्कसंगत है और नहीं उद्योग हित में। कोकिंग कोल का सही इस्तेमाल न करके उसे थर्मल पावर प्लांट को देना अनुचित है। कोयला मंत्रालय भी देश और उद्योग के बेहतर हित में नहीं सोच रहा और जमीनी सच्चाई को स्वीकारना नहीं घाहता। यही वजह है कि हमारे बहुत से सदस्य कोकिंग कोल का आयात करने को बाध्य है जो कि राष्ट्रहित में नहीं है और सरकार स्वयं भी मानती है कि ऐसा नहीं किया जाना चाहिये। कैसी विडम्बना है कि कोयला खनन से जुड़ी सरकारी कम्पनियां कोयला बर्बाद कर रही हैं।हमारा उद्योग आज गंभीर संकट से गुजर रहा है। उबरने की प्रक्रिया में एक बड़ी बाधा कोल इंडिया और भारत कोकिंग कोल की नीतियां, हैं। ये हमारे कच्चे माल के आपूर्तिकर्ता हैं लेकिन इनकी नीति और नजरिया न तो तार्किक है और न ही उद्योग अनुकूल। कोयला मंत्रालय इन्हीं के पक्ष में हैं। कोयला वितरण नीति दिनों दिन हमारेलिये हानिकारक होती जा रही है और इसके चलते हमारे सदस्य उद्योग कोकिंग कोल आयात करने को बाध्य हैं। हालांकि सरकार कहती है कि आयात कम से कम हो लेकिन नीतियां कुछ और कहती है। लेकिन सरकार हमारे उद्योग पर बिल्कुल ही ध्यान नहीं दे रही। हमारा उद्योग एक रोजगार बढ़ाने वाला महत्वपूर्ण उद्योग है और देश के विकास के लिये जरूरी है। किन्तु पता नहीं क्यों हमें केन्द्रीय नीतियों में तरजीह नहीं दी जाती। हम कोयला मंत्रालय की नीतियों और कोल इंडिया एवं भारत कोकिंग कोल के रवैये के चलते मरणासन्न हो रहे हैं। यह स्थिति महामारी के पहले से जारी है।वैसे इसके अलावा भी बहुत से मुद्दे हैं जो हमें प्रभावित करते हैं और जिनको हम वर्षो से उठाते आये हैं।क़ानून एवं व्यवस्था,कानून एवं व्यवस्था आज भी शहर के हर तबके के लिये एक चुनौती है और – व्यापार एवं उद्योग से जुड़े लोगों के लिये एक बड़ी बात है. यह समझने की आवश्यकता है कि आर्थिक विकास के लिये एक शांत और भय मुक्त वातावरण जरूरी है। पिछले कुछ वर्षों में शहर में अपराध बढ़े हैं और प्रशासन असहाय दिख रहा है। यहाँ तक की न्यायिक पदाधिकारियों का भी जीवन सुरक्षित नहीं है। यह स्थिति रही तो न्याय करने में भी न्यायिक प्रणाली कमजोर पड़ेगी। रंगदारी और माफिया तत्वों का वर्चस्व बढ़ता जा रहा है और प्रशासनिक अधिकारी भी आशंकित हैं। इसके लिये कड़े कदम उठाने की जरूरत है। अपराध रोकने के लिये पुलिस इंटेलिजेंस को सुदृढ़ करना होगा। आज कल अपराधी बैखोफ हो रहे है।औद्योगिक विकास कई चीजों पर निर्भर होता है लेकन बुनियादी ढांचा एक महत्वपूर्ण आयाम है। एक बेहतर उद्योग अनुकुल बुनियादी ढांचा जरूरी है। सड़क, बिजली, यातायात, जलापूर्ति व अन्य नागरिक सुविधायें विकसित न हो तो उद्योग व व्यापार पलायित करने लगते हैं और ऐसा हो भी रहा है। धनबाद में ये सुविधायें काफी कमजोर है। बिजली की कमी से तो उद्योग बुरी तरह से प्रभावित हैं। सड़कों की स्थिति भी दयनीय है और जाम की समस्या भयावह। हालांकि एक पूरी तरह स्थापित नगर निगम इस शहर के विकास के लिये बना हुआ है लेकिन दुःखद पहलु यह है कि निगम अपनी जिम्मेदारी निभाने में पूरी तरह से सक्षम नहीं साबित हुआ है।प्रमुख वाणिज्यिक केन्द्र होने के बावजूद यह दुभगग्यपूर्ण है कि आज भी यहाँ हवाई सुविधा का विकास नहीं हुआ। हवाई सुविधा आज के दौर में विकास का आवश्यक शर्त है। इंटरनेट सेवायें भी अपर्याप्त हैं और लोगों को जितनी रफ्तार चाहिये az नहीं मिल पाती। राज्य सरकार को इस पर त्वरित कारवाई करने की आवश्यकता हैं। देवघर से ज्यादा जरूरी धनबाद में हवाई अड्डा है।शहर की बढ़ती मांग के अनुरूप यहाँ स्वास्थ्य सेवायें उपलब्ध नहीं हैं और लोगों को थोड़ी भी आवश्यकता पड़ने पर रांची या दुर्गापुर या फिर और दूर जाना पड़ता है। पिछले कुछ वर्षो में निजी प्रयासों के चलते कुछ अपेक्षाकृत बड़े अस्पताल बने हैं लेकिन जिस रफ्तार से शहर में स्वास्थ्य सेवाओं की मांग है इसकी तुलना में इतना काफी नहीं है। हमने कोरोना काल के दूसरे लहर के दिनों स्वास्थ्य सेवा व्यवस्था की कमजोरी पूरी तरह से महसूस की। धनबाद आज आस-पास के पिछड़े इलाकों की भी स्वास्थ्य सेवा की आवश्यकता पूरी करता है। अतः यह और भी जरूरी है कि स्वास्थ्य सेवाओं में सरकार निवेश करे और निजी दैेत्र को भी आमंत्रित करें। प्राईवेट पब्ल्कि पार्टनशिप पर जोर देकर स्वास्थ्य सेवा का ढांचा सुधारा जा सकता है।