पटना, २० मार्च। अनेक सद्गुणों से विभूषित साहित्यकार, प्रो शैलेंद्र नाथ श्रीवास्तव विद्वता, विनम्रता और रचनात्मकता के प्रतिमान पुरुष थे। एक व्यक्ति में इतनी बहुमुखी और व्यापक प्रतिभा हो सकती है, यह सहसा विश्वास नही होता। साहित्य, शिक्षा, समाजसेवा, राजनीति और सामाजिक सरोकारों के प्रत्येक सारस्वत क्षेत्र से न केवल जुड़े, बल्कि नेतृत्व करने वाले एक अनुकरणीय व्यक्तित्व थे शैलेंद्र जी। एक गुणी प्राध्यापक, तिलकामाँझी विश्वविद्यालय के कुलपति, अंतर्विश्वविद्यालय बोर्ड के अध्यक्ष, विधायक और सांसद सहित अनेक संस्थाओं के माध्यम से किए गए उनके कार्यों का मूल्यांकन करने पर शैलेंद्र जी के रूप में एक चमत्कृत करने वाली छवि सामने दिखती है। वे ‘विद्या ददाति विनयम’ के साक्षात उदाहरण थे।यह बातें सोमवार को बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में डा श्रीवास्तव की ८७वीं जयंती पर आयोजित पुस्तक-लोकार्पण समारोह और कवि सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। डा सुलभ ने कहा कि, उनके सुंदर और प्रभावशाली व्यक्तित्व के समान ही उनकी वाणी, व्यवहार और व्याख्यान-कौशल भी मोहक थे।इस अवसर पर विदुषी कवयित्री अनीता मिश्रा ‘सिद्धि’ के काव्य-संग्रह ‘अनमनी सी एक शाम’ का लोकार्पण मंचस्थ सभी अतिथियों ने सामूहिक रूप से किया। पुस्तक पर चर्चा करते हुए, डा सुलभ ने कहा कि अनीता जी की काव्य-रचनाओं में जीवन के सभी रस बहते हुए दिखाई देते हैं। लोकार्पित पुस्तक की रचनाओं से कवयित्री की बहुमुखी प्रतिभा रूपायित हुई है। उनकी काव्य-कल्पनाएँ मोहक और सृजन को बल प्रदान करने वाली हैं।समारोह का उद्घाटन करते हुए, राज्य उपभोक्ता संरक्षण आयोग, बिहार के अध्यक्ष न्यायमूर्ति संजय कुमार ने कहा कि, शैलेंद्र जी ने राजनीति में उच्च मूल्यों और आदर्श की स्थापना की।वरिष्ठ पत्रकार और पूर्व सांसद रवींद्र किशोर सिन्हा ने कहा कि,शैलेंद्र जी राजनीति में ठीक उसी तरह थे, जैसे कोई कमल, कीचड़ में रहता है। वे अपने मृदु और सरल व्यवहार से सबको अपना बना लेते थे।विदुषी प्राध्यापिका और पूर्व विधायक प्रो किरण घई ने कहा कि, शैलेंद्र जी चुम्बकीय व्यक्तित्व के स्वामी थे। उनकी विनम्रता अद्वितीय थी। कुलपति से लेकर सांसद तक अनेक पदों को सुशोभित किया पर अहं भाव रंच मात्र नहीं। वे प्रतिभा-पुरुष थे। वे जहां भी खड़े हो जाते थे,उनकी प्रतिभा साफ़ छाप छोड़ती थी। वे अद्भुत वक्ता थे।वरिष्ठ कवि भगवती प्रसाद द्विवेदी ने पुस्तक पर अपना उद्गार व्यक्त करते हुए कहा कि अनीता जी का यह काव्य-संग्रह ‘स्त्री-चेतना’ को समर्पित है। स्त्रियाँ अपनी प्रतिभा से बहुत आगे बढ़ गयी हैं, किंतु पुरुष-मानसिकता में अभी और बदलाव अपेक्षित है। लोकार्पित पुस्तक की रचनाएँ पुरुष-मन को झकझोरती है।सम्मेलन की उपाध्यक्ष प्रो कल्याणी कुसुम सिंह, शैलेंद्र जी के मनीषी पुत्र पारिजात सौरभ, प्रो बलराज ठाकुर, अभिजीत कश्यप तथा लोकार्पित पुस्तक की कवयित्री अनीता मिश्रा के माता-पिता तारा उपाध्याय तथा श्यामदेव उपाध्याय ने भी अपने विचर व्यक्त किए।इस अवसर पर आयोजित कवि-सम्मेलन का आरंभ कवयित्री अनीता मिश्र सिद्धी ने अपनी लोकार्पित पुस्तक की रचनाओं से किया। वरिष्ठ कवि बच्चा ठाकुर, डा पंकज कुमार श्रीवास्तव, पूनम आनन्द, डा पुष्पा जमुआर, मधुरानी लाल, डा अर्चना त्रिपाठी, डा पूनम देवा, शुभचंद्र सिन्हा, चितरंजन भारती, कृष्णा मणिश्री, अर्जुन प्रसाद सिंह, आभा गुप्ता, रेखा भारती, अंजुला कुमारी, सिद्धेश्वर, ई अशोक कुमार, विशाल कुमार, नरेंद्र कुमार, अजीत कुमार भारती, डा महेश राय आदि कवियों और कवयित्रियों ने अपनी रचनाओं से कवि-गोष्ठी में रस का संचार किया। अतिथियों का स्वागत सम्मेलन की उपाध्यक्ष प्रो मधु वर्मा ने, मंच का संचालन कवि ब्रह्मानन्द पाण्डेय ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन कृष्ण रंजन सिंह ने किया।