महात्मा गांधी की कर्मभूमि बिहार के चंपारण में गांधीजी से जुड़ी कई यादें हैं. ऐसा ही पूर्वी चंपाारण जिले में एक नीम का पेड़ है, जो गांधी की चंपारण यात्रा से जुड़ा हुआ है. पूर्वी चंपारण जिला मुख्यालय मोतिहारी से करीब 10 किलोमीटर दूर तुरकौलिया प्रखंड कार्यालय परिसर में स्थित यह पुराना पेड़ भले ही ऐतिहासिक है, लेकिन आज इसकी स्थिति ठीक नहीं है, हालांकि जिला प्रशासन ने अब इसको बचाने की कवायद शुरू कर दी है.
पूर्वी चंपारण के गांधीवादी विचारक राय सुंदर देव शर्मा ने आईएएनएस को बताया कि देश में अंग्रेजों के अत्याचार के प्रतीक इस नीम के पेड़ में अंग्रेज उन किसानों को बांधकर कोड़ों से पिटाई करते थे, जो किसान नील की खेती का लगान (मालगुजारी) नहीं देते थे. अंग्रेज उन किसानों को भी यहां लाकर सजा देते थे, जो नील की खेती नहीं करते थे.उन्होंने कहा कि प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद की एक पुस्तक में भी इस नीम के पेड़ की चर्चा है. उन्होंने बताया कि इन्हीं अत्याचारों के कारण गांधी ने सत्याग्रह शुरू किया था. वे कहते हैं कि करीब 120 साल पुराने इस नीम के पेड़ के एतिहासिक महत्व को नकारा नहीं जा सकता.गांधीजी के नेतृत्व में बिहार के चम्पारण जिले में सन् 1917 में एक सत्याग्रह हुआइसे चम्पारण सत्याग्रह के नाम से जाना जाता है। गांधीजी के नेतृत्व में भारत में किया गया यह पहला सत्याग्रह था।
हजारों भूमिहीन मजदूर एवं गरीब किसान खाद्यान के बजाय नील और अन्य नकदी फसलों की खेती करने के लिये वाध्य हो गये थे। वहाँ पर नील की खेती करने वाले किसानों पर बहुत अत्याचार हो रहा था। अंग्रेजों की ओर से खूब शोषण हो रहा था। ऊपर से कुछ बगान मालिक भी जुल्म ढा रहे थे। महात्मा गाँधी ने अप्रैल 1917 में राजकुमार शुक्ला के निमंत्रण पर बिहार के चम्पारन के नील कृषको की स्थिति का जायजा लेने वहाँ पहुँचे। उनके दर्शन के लिए हजारों लोगों की भीड़ उमड़ पड़ी। किसानों ने अपनी सारी समस्याएँ बताईं। उधर पुलिस भी हरकत में आ गई। पुलिस सुपरिटेंडंट ने गांधीजी को जिला छोड़ने का आदेश दिया। गांधीजी ने आदेश मानने से इंकार कर दिया। अगले दिन गांधीजी को कोर्ट में हाजिर होना था। हजारों किसानों की भीड़ कोर्ट के बाहर जमा थी। गांधीजी के समर्थन में नारे लगाये जा रहे थे। हालात की गंभीरता को देखते हुए मेजिस्ट्रेट ने बिना जमानत के गांधीजी को छोड़ने का आदेश दिया। लेकिन गांधीजी ने कानून के अनुसार सजा की माँग की।फैसला स्थगित कर दिया गया। अपने प्रथम सत्याग्रह आंदोलन का सफल नेत्त्व किया अब उनका पहला उद्देश लोगों को ‘सत्याग्रह’ के मूल सिद्धातों से परिचय कराना था। उन्होंने स्वतंत्रता प्राप्त करने की पहली शर्त है – डर से स्वतंत्र होना। गांधीजी ने अपने कई स्वयंसेवकों को किसानों के बीच में भेजा। यहाँ किसानों के बच्चों को शिक्षित करने के लिए ग्रामीण विद्यालय खोले गये। लोगों को साफ-सफाई से रहने का तरीका सिखाया गया। सारी गतिविधियाँ गांधीजी के आचरण से मेल खाती थीं।इस दौरान गांधी जी ने राजेंद्र बाबू,आचार्य कृपलानी और अनुग्रह बाबू जैसे सहयोगियों को भोजन बनाना एवं घर के अन्य काम खुद करना सीखा दिया था।
कौशलेन्द्र