ऋंगार भुजाएँ करती जिसकी खड़ग, तीर, तलवारों से/ तेजस्वी भाल चमकता विजय तिलक के नारों से/ वतन-परस्तों का लहू सिर्फ़ लहू नहीं अंगारा है/ जाबांजों के दम पर ही तो ‘स्वतंत्र’ देश हमारा है — “। ओज और देशभक्ति की, दिलों को झकझोरने वाली पंक्तियों के साथ, वरिष्ठ कवयित्री डा उमा सिंह ‘किसलय’ रविवार की संध्या ६ बजे से, बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन के फ़ेसबुक पटल पर, जमशेदपुर से लाइव रहीं।
अपने काव्य-पाठ का आरंभ वाणी-वंदना की इन पंक्तियों से किया कि “सौ वर्ष तक जीते रहें/ सुख, अमिया में पीते रहें/ आदेश लक्ष्य महान दो! माँ सरस्वती वरदान दो !” उन्होंने अपनी इन पंक्तियों में अपना परिचय दिया कि “मैं वह आँसू नहीं जो छलक के आँखों से गिर जाऊँ/ मैं वो जज़्बा हूँ जो कि तेरे साँसों में बस जाऊँ!”
किसलय जी, दुखों पर आँसू बहाने के स्थान पर दुखों पर विजय का आह्वान करती हैं और कहती हैं “अब न कोई फ़रियाद ना, आँसू से रिश्ता कीजिए/ बस पसीने की क़सम लें, काम अपना कीजिए/ चाहतों का बस समंदर लेके चलते लोग यहाँ/ छोड़कर क़समें वफ़ा की लोग लड़ते हैं यहाँ/ एक तू बन बस मसीहा, पोंछ दे आँसू सभी/ हो सफल मक़सद जनम का, काम ऐसा कीजिए/ अब न कोई फ़रियाद ना आँसू से रिश्ता कीजिए”।
आज के बदले समाज और सियासत का चित्र खींचते हुए यह पंक्तियाँ पढ़ीं कि “हम किनारे पर खड़े और तुम किनारा कर रहे/ खोट तुम में है बहुत हम पर इशारा कर रहे/ पूँजी के इस दौर में, बिक गए इंसां सभी/ हम पसीना बन गए और तुम सियासत कर रहे।”
आरंभ में सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने सम्मेलन के फ़ेसबुक-पृष्ठ पर कवयित्री डा उमा सिंह ‘किसलय’ का अभिनंदन किया और पटल से जुड़ कर आनंद ले रहे सुधी दर्शकों का भी स्वागत किया। डा सुलभ ने बताया कि फ़ेसबुक लाइव का अगला कार्यक्रम २१ जुलाई को होगा, जिसमें देश के शीर्षस्थ कवियों में से एक डा सोम ठाकुर लखनऊ से अपने लोकप्रिय गीतों का पाठ करेंगे। २४ जुलाई को बेंगलुरु से सुकंठी कवयित्री डा लता चौहान लाइव रहेंगी।
संजय राय की रिपोर्ट.