आज बुद्ध पूर्णिमा के शुभ अवसर पर महात्मा बुद्ध जी द्वारा बताया गया एक प्रेरक प्रसंग का मुझे स्मरण हो आया जो वर्तमान परिप्रेक्ष्य में मुझे बहुत ही सारगर्भित और प्रासंगिक लगा।
इसीलिए मुझे उनके इस प्रेरक विचार को आप सब से साझा करने का मन किया जिससे आप सब भली भांति परिचित होंगे।
एक बार एक किसान महात्मा बुद्ध जी के पास आया और बोला महाराज मैं एक साधारण सा किसान हूं बीज बोकर हल चलाकर अनाज उत्पन्न करता हूं और तब उसे ग्रहण करता हूं किंतु इससे मेरे मन को तसल्ली नहीं मिलती है । कुछ ऐसा करना चाहता हूं जिससे मेरे खेत में अमरत्व का फल उत्पन्न हो जाए।
बात सुनकर भगवान बुद्ध मुस्कुराए और बोले – भले व्यक्ति तुम्हें अमृत्व का फल तो अवश्य मिल सकता है किंतु इसके लिए तुम्हें खेतों में बीज ना बोकर अपने मन में बीज बोने होंगे ।
यह सुनकर किसान हैरानी से बोला – प्रभु आप यह क्या कह रहे हैं ? भला मन में बीज बोकर भी फल प्राप्त हो सकते हैं?
भगवान बुद्ध बोले बिल्कुल हो सकते हैं और इन बीजों से तुम्हें जो फल प्राप्त होंगे वह वाकई साधारण ना होकर अद्भुत होंगे जो तुम्हारे जीवन को भी सफल बनाएंगे और तुम्हें नेकी की राह भी दिखाएंगे किसान ने कहा प्रभु तब तो मुझे अवश्य बताइए कि मैं मन में बीज कैसे बोऊं?
महात्मा बुद्ध जी बोले तुम मन में विश्वास के बीज बोओ, विवेक का हल चलाओ , ज्ञान के जल से उसे सीखो और उसमें नम्रता का उर्वरक डालो । इससे तुम्हें अमरत्व का फल प्राप्त होगा।
उसे खा कर तुम्हारे सारे दुख दूर हो जाएंगे और तुम्हें असीम शांति का अनुभव होगा । भगवान बुद्ध के अमरत्व के फल की प्राप्ति की बात सुनकर , उपाय जानकर किसान के मन की आंखें खुल गई।
वह समझ गया कि अमृत्व का फल सब विचारों के द्वारा ही प्राप्त किया जा सकता है । यह कहना बिल्कुल सही होगा कि आज के इस विषम परिस्थिति में भी हमारे कार्य की सिद्धि तभी होगी अर्थात इस महामारी इस व्याधि से हम सभी तभी निजात पा सकेंगे ।
भगवान बुध के बताए रास्तों पर चलकर ही आज के इस विषम परिस्थिति में संपूर्ण मानवता के लिए संकट की घड़ी में मन में विश्वास का बीज बोना ही होगा और वह बीज है सुरक्षा के बनाए गए मानक नियमों को अपनाकर हकीकत को धैर्य के साथ स्वीकार करके ही वर्तमान समस्या का समाधान संभव है और आने वाले खुशहाल जीवन की चाभी भी ।।
अंजू चौबे