पटना, २६ सितम्बर। “पुरस्कार के नाम पर भइ कवियन की भींड़/ चाटुकार चमचम चखैं प्रतिभा पावै पीड़/ प्रतिभा पावैं पीड़, व्यर्थ श्रम करते भाई/ बिना परिश्रम चाटुकार ने भखी मलाई/ धन्य-धन्य दुनियाँ में करतब चाटुकार के/ हैं सम्मानित सदा विजेता पुरस्कार के”। ऐसी ही चुटिली और व्यंग्य-भरी कुंडलियाँ और हास्य-व्यंग्य की अन्य रचनाओं से, व्यंग्य के चर्चित कवि राजेश अरोड़ा ‘शलभ’ घंटा भर से अधिक समय तक सुधी दर्शकों को गुदगुदाते और हँसाते रहे। श्री शलभ शनिवार को, लखनऊ से, बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन के फ़ेसबुक पटल पर लाइव थे। उन्होंने व्यंग्य के अतिरिक्त जीवन के अनेक रंगों और अनुभूतियों की रचनाओं का भी पाठ किया।
कुंडली-छंद के सिद्ध-हस्त कवि श्री शलभ ने ‘कार-नामा’ नामक अपने सद्य प्रकाशित कुंडलियाँ-संग्रह से, जिसमें ‘कार’ शब्द से युक्त कौशल-संपन्न व्यक्तियों,यथा ;- कलाकार, नाटककार, व्यंग्यकार, कथाकार, शिल्पकार, चित्रकार, चाटुकार, सलाहकार, पेशकार आदि का प्रतीक लेकर व्यंग्य रचानाएँ की हैं, अनेक कुंडलियां प्रस्तुत की।
‘बेकार’ शीर्षक वाली अपनी कुंडलिया पढ़ते हुए कवि ने कहा कि “श्रेणी में तो कार की, फिर भी हैं ‘बेकार’/ जगह-जगह चप्पल घिसे, ढूँढ रहा रुजगार/ढूँढ रहा रुजगार, पढ़ें में लाखों लागे/ नहीं नौकरी मिली, थक गए भागे-भागे/ ताना मारें लोग, डूब जा तिरवेणी में/ अब तक पड़ा हुआ, बेकारों की श्रेणी में”। यहाँ तक कि वे ‘व्यंग्यकार’ का भी चरित्र चित्रण करते है;- “ अपने-अपने रंग हैं, अपने-अपने ढंग/ लिए चुनौती लिख रहे, व्यंग्यकार जी व्यंग्य/ व्यंग्यकार जी व्यंग्य, कोई है पिनें चुभाता/ कोई हंटर सीधा-सीधा ख़ूब चलाता/ सही व्यंग्य जो दिल दिमाग़ में, लगे उतरने/ व्यंग्य कला के ढंग, सभी के अपने-अपने”। वाणी-वंदना से अपना काव्य-पाठ आरंभ करने वाले कवि ने इन पंक्तियों से अपना परिचय दिया कि, “गीत, ग़ज़ल या व्यंग्य हो, गति है एक समान/ शिष्ट हास्य है ‘शलभ’ की एक मुश्त पहचान”।
आरंभ में सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने पटल पर श्री ‘शलभ’ का हार्दिकता से स्वागत किया तथा उन सभी सुधी साहित्यकारों एवं श्रोताओं के प्रति आभार प्रकट किया, जो पटल से लगातार जुड़े रहे।