पटना, १४ नवम्बर । बिहार सरकार शीघ्र ही प्रदेश में कला एवं शिल्प विश्वविद्यालय की स्थापना करने जा रही है। सरकार अपनी कला और संस्कृति को उन्नत करने के लिए कृत संकल्प है। राज्य सरकार गुणी कलाकारों और विद्वानों का परामर्श लेकर, प्रदेश के कला-कर्म को उन्नत करना चाहती है। बिहार की कला और संस्कृति अत्यंत गौरवशाली है। मधुबनी पेंटिंग और पटना कलम जैसी चित्र-कला शैली इसके महान उदाहरण हैं। हमें अपनी संस्कृति की धरोहरयह बातें, रविवार को बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में। वरिष्ठ कवि और चित्रकार डा दिनेश दिवाकर की पुस्तक ‘पटना कलम : इतिहास के आइने में’ का लोकार्पण करते हुए, बिहार के कला और संस्कृति मंत्री आलोक रंजन ने कही। कलामंत्री ने कहा कि पुस्तक के लेखक डा दिनेश दिवाकर विशेष धन्यवाद के पात्र हैं, जिन्होंने इस लुप्तप्राय गौरवशाली कला से नई पीढ़ी को अवगत कराया है।वरिष्ठ चित्रकार और पटना कला महाविद्यालय के पूर्व प्राचार्य पद्मश्री प्रो श्याम शर्मा ने कहा कि भारत के कला इतिहास में लगभग दो सौ वर्षों का काल ‘पटना कलम’ के नाम से स्वर्णिम पृष्ठ के रूप में चिन्हित है। यह चित्र-कला भारत के कलाकारों की संघर्ष-यात्रा भी है। औरंगज़ेब के काल में जब दिल्ली से कलाकारों का पलायन हुआ तो वे मुर्शिदाबाद होकर, पटना पहुँचे। उन कलाकारों को पटना में आश्रय मिला। और इसीलिए इस विशिष्ट चित्र शैली को ‘पटना कलम’ कहा गया। आज बड़े-बड़े लोग भी ‘पटना कलम’ के महान गौरव से अवगत नहीं है।समारोह की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कहा कि कला के मर्म को समझने वाले चित्रकार-लेखक ने, अपने काल में प्रसिद्धि के शिखर पर पहुँची इस कला-विधा के विलुप्त होने की आशंकाओं से उपजी गहन पीड़ा की अभिव्यक्ति की है और संकट-ग्रस्त पटना की इस गौरव विधा की ओर कला-जगत का ध्यान खींचा है। लोकार्पित पुस्तक में यह विधा आने वाली पीढ़ियों के लिए संरक्षित हुई है। यह आशा की जाती है कि चित्र-कला में अभिरूचि रखने वाले कलाकारों और विद्यार्थियों के लिए यह पुस्तक लाभकारी सिद्ध होगी।पुस्तक के लेखक ने कहा कि हर कलाकार और लेखक की मंशा होती है कि आगामी पीढ़ियाँ उनकी धरोहर की रक्षा करे। चित्रकला की इस विशिष्ट शैली ‘पटना कलम’ के इतिहास और गौरव को संरक्षित करने तथा इसकी पुनर्स्थापना के उद्देश्य इस पुस्तक का सृजन किया गया है।सम्मेलन के प्रधानमंत्री डा शिववंश पाण्डेय, उपाध्यक्ष डा कल्याणी कुसुम सिंह, साहित्यमंत्री डा भूपेन्द्र कलसी, डा बी एन विश्वकर्मा, बाँके बिहारी साव ने भी अपने विचार व्यक्त किए।इस अवसर पर एक भव्य कवि सम्मेलन का भी आयोजन किया गया, जिसमें दर्जनों कवियों और कवयित्रियों ने अपने गीत-ग़ज़लों से श्रोताओं को भाव-मुग्ध किया। चंदा मिश्र की वाणी-वंदना से आरंभ हुई इस काव्य-धारा में कवियों ने अनेकानेक काव्य-निर्झर के जल-कलश अर्पित किए। इनमें सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद, ओम् प्रकाश पाण्डेय ‘प्रकाश’, कुमार अनुपम, जय प्रकाश पुजारी, पं गणेश झा, डा आर प्रवेश, श्रीकांत व्यास, डा अर्चना त्रिपाठी, डा विनय कुमार विष्णुपुरी, डा शलिनी पाण्डेय, चितरंजन भारती, डा उमा शंकर सिंह, अंकेश कुमार, राज किशोर झा ‘वत्स’, नीता सिन्हा, डा कुंदन कुमार, अर्जुन प्रसाद सिंह आदि सम्मिलित हैं। मंच का संचालन अर्थमंत्री कवि सुनील कुमार दूबे ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन प्रबंधमंत्री कृष्ण रंजन सिंह ने किया।इस अवसर पर प्रणब कुमार समाजदार, जगदीश्वर प्रसाद सिंह, सच्चिदानंद शर्मा, कमल कुमार, कौशलेंद्र कुमार, मृदुला कुमारी, नरेंद्र देव, कैलाश ठाकुर, रीना कुमारी सोमा सिंह, प्रो आर पंडित, अमित कुमार सिंह आदि साहित्य-प्रेमी उपस्थित थे।