पटना, २४ अगस्त। प्रज्ञ-चिंतक और भारतीय वांगमय के मनीषी भाष्यकार कवि हृदय नारायण हिन्दी की सेवा करने वाले पिछली सदी के महान चिंतक कवियों में अग्र-पांक्तेय थे। उन्होंने गीता को न केवल समझा था, अपितु उसे वाणी और आचरण में उतारा था। वे मानते थे कि भारतीय-दर्शन में आधुनिक-समाज की सभी समस्याओं का निदान और सभी प्रश्नों के उत्तर अंतर्निहित हैं। यह मानव-समुदाय की एक ऐसी पूँजी है, जिस पर देव-तुल्य मनुष्यों की पीढ़ी तैयार की जा सकती है। इसमें निखिल वसुधा के कल्याण की भावना से संपूर्ण मानव जाति के उन्नयन का मार्ग प्रशस्त किया गया है। दुर्भाग्य है कि आधुनिक-समाज ‘भारतीय-दर्शन’ से निरंतर दूर होता जा रहा है।यह बातें बुधवार को, बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में हृदयनारायण जन्मशताब्दी-समारोह की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। उन्होंने कहा कि हृदय नारायण जी हिन्दी-साहित्य के साधु-पुरुष थे। उनकी आध्यात्मिक और साहित्यिक साधना साथ-साथ चली। भारतीय दर्शन पर रचित उनकी ४० से अधिक पुस्तकें, आनेवाली पीढ़ियों का मार्ग-दर्शन करती रहेंगी।
इस अवसर पर, हिन्दी और भोजपुरी के वरिष्ठ कवि भगवती प्रसाद द्विवेदी को, हिन्दी भाषा और साहित्य के उन्नयन में अत्यंत मूल्यवान सेवाओं के लिए, इस वर्ष से आरंभ हो रहे ‘प्रज्ञ चिंतक हृदय नारायण-कल्याणी स्मृति सम्मान’ से विभूषित किया गया। समारोह के उद्घाटन-कर्ता और पूर्व केंद्रीय मंत्री डा सी पी ठाकुर ने सम्मान स्वरूप उन्हें प्रशस्ति-पत्र, स्मृति-चिन्ह, वंदन-वस्त्र, पुष्पहार समेत पाँच हज़ार एक सौ रुपए की सम्मान-राशि प्रदान की। अपने संबोधन में डा ठाकुर ने कहा कि हृदय जी बड़े साहित्यकार और उससे भी बड़े इंसान थे। देश ऐसे महापुरुषों से शिक्षा ग्रहण करता है। नई पीढ़ी को हृदय नारायण जी को पढ़ना, समझना और उनका अनुकरण करना चाहिए।समारोह के मुख्यअतिथि और पटना उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति राजेंद्र प्रसाद ने कहा कि आत्मा की यात्रा छोटी नहीं होती। मृत्यु के पश्चात भी उसकी यात्रा जारी रहती है। भारत का धर्म उसका दर्शन है। भारत की सभ्यता दर्शन आधारित है। यह हमें जीवन का सन्मार्ग दिखाता है।अतिथियों का स्वागत करते हुए, सम्मेलन के प्रधानमंत्री और विद्वान समालोचक डा शिववंश पाण्डेय ने कहा कि हृदय नारायण जी एक पूर्ण आध्यात्मिक व्यक्तित्व और संत साहित्यकार थे। वे कहा करते थे कि ‘धर्म’ अनेक नहीं हो सकते। ‘धर्म’ तो एक ही है और प्रत्येक व्यक्ति को अपने धर्म का पालन करना चाहिए। ६ खण्डों में प्रकाशित ‘गीता-दर्शन’, ‘भगवान कृष्ण’, ‘कृष्ण से गांधी तक’, ‘राधा दर्शन’ आदि ४० से अधिक महनीय ग्रंथों से उन्होंने हिन्दी का उपकार किया है।कवि हृदय नारायण के पुत्र और सुप्रसिद्ध शिशुरोग विशेषज्ञ डा निगम प्रकाश नारायण ने कहा कि हामारे पिता श्री हृदय नारायण जो एक छोटे से गाँव से अपनी संघर्षपूर्ण जीवन की यात्रा की। कृष्ण उनके आदर्श थे। उन्होंने स्वतंत्रता-संग्राम में भाग लिया। वे एक बड़ा कलाकार बनना चाहते थे। मेरी माँ कल्याणी नारायण ने एक समर्पित गृहिणी की तरह उनका पग-पग पर साथ दिया। उन्हीं के नाम पर ‘कल्याणोदय’नामक एक कल्याणकारी संस्था की स्थापना हुई। इस वर्ष से हमारे मातापिता के नाम से ‘हृदय नारायण कल्याणी स्मृति सम्मान आरम्भ किया गया है, जो प्रति वर्ष साहित्य सम्मेलन के तत्त्वावधान में दिया जाता रहेगा।विशिष्ट अतिथि डा शीला शर्मा, सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद, डा मधु वर्मा, हृदय नारायण जी के दूसरे पुत्र डा निर्मल प्रकाश नारायण, पुत्रवधू डा संगीता नारायण तथा डा शाहिद जमील ने भी अपने विचार व्यक्त किए।इस अवसर पर आयोजित कवि-सम्मेलन में, सम्मानित कवि भगवती प्रसाद द्विवेदी, कवयित्री आराधना प्रसाद, बच्चा ठाकुर, कुमार अनुपम,ब्रह्मानन्द पाण्डेय, डा निकुंज प्रकाश नारायण, शायरा तलअत परवीन, डा अर्चना त्रिपाठी, पूनम सिन्हा श्रेयसी, डा सुषमा कुमारी, श्रीकांत व्यास, डा जय प्रकाश पुजारी, आचार्य धीरेंद्र झा ‘माणिक्य’, श्याम बिहारी प्रभाकर, डा विनय कुमार विष्णुपुरी, अर्जुन प्रसाद सिंह, सदानंद प्रसाद, मोईन गिरीडीहवी, सिद्धेश्वर, डा महेश राय, अरुण शाद्वल, डा पंकज प्रियम,माधुरी सिन्हा, अनिल कुमार झा, नरेंद्र कुमार, शशिकांत कुमार, जबीं शम्स, बिंदेश्वर प्रसाद गुप्ता आदि ने काव्य-पाठ कर समारोह को रस और आनंद प्रदान किया। मंच का संचालन सुनील कुमार दूबे ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन कृष्ण रंजन सिंह ने किया।डा बी एन विश्वकर्मा, डा रामरक्षा मिश्र ‘विमल’, डा विनीता नारायण, डा किरण नारायण, प्रो ललितेश्वर प्रसाद सिंह, दीप्ति आर्या, डा चंद्रशेखर आज़ाद, डा मुकेश कुमार ओझा, रामाशीष ठाकुर, अजित कुमार, विजय कुमार दिवाकर, अश्विनी कुमार, समेत बड़ी संख्या में प्रबुद्धजन उपस्थित थे।