पटना, १५ सितम्बर। भारत की राष्ट्र-भाषा’ शीघ्र घोषित हो, इस हेतु जन-अभियान चलाने के संकल्प के साथ, बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन के तत्त्वावधान में, गत १ सितम्बर से आयोजित ‘हिन्दी-पखवारा-सह-पुस्तक चौदस मेला’ का शुक्रवार को समापन हो गया। समापन-समारोह में सिक्किम के पूर्व राज्यपाल गंगा प्रसाद ने पखवारा के अंतर्गत छात्र-छात्राओं के लिए आयोजित हुई विविध प्रतियोगिताओं में सफल १७ विद्यार्थियों को पुरस्कार-राशि, पदक और प्रमाण-पत्र देकर पुरस्कृत किया।अपने उद्गार में पूर्व राज्यपाल ने कहा कि प्रत्येक भारतवासी को राष्ट्रीय भावना के साथ ‘हिन्दी’ को अपनाना चाहिए। जो सम्मान राष्ट्रीय ध्वज को है, वही सम्मान हिन्दी को मिलना चाहिए। यही भाषा देश को एक सूत्र में जोड़ सकती है। दुनिया भर से विद्वान भारत आकर हिन्दी का अध्यं कर अढ़े हैं।समारोह की मुख्य अतिथि और पटना उच्च न्यायालय की अवकाश प्राप्त न्यायाधीश न्यायमूर्ति मृदुला मिश्र ने कहा कि हर व्यक्ति अपने मनो-भावों की अभिव्यक्ति अपनी मातृभाषा में सरलता से कर पाता है। पुराने जमाने में यह कहा जाता था कि अंग्रेज़ी पढ़े विना कोई आगे नहीं बढ़ सकता। किंतु मैं यह मानती हूँ कि हिन्दी पढ़े विना अब कोई आगे नहीं बढ़ सकता।बिहार लोक सेवा आयोग के सदस्य इम्तियाज़ अहमद करीमी ने कहा कि हिन्दी के प्रति नयी पीढ़ी को जोड़ने के लिए साहित्य सम्मेलन निरंतर सक्रिए है, यह बहुत बड़ी और ज़रूरी बात है। बच्चों में अपनी मात्रि-भाषा के प्रति प्रेम जगाना आवश्यक है। इन्हें यह समझाया जाना भी ज़रूरी है कि ‘अंग्रेज़ी’ से नहीं ‘हिन्दी’ से उनका भविष्य सँवरेगा। बिहार लोक सेवा आयोग में भी हिन्दी वालों की पैठ बढ़ रही है।अपने अध्यक्षीय-संबोधन में सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कहा कि संपूर्ण भारत वर्ष में हिन्दी के प्रति प्रेम और श्रद्धा की भावना तीव्र-गति से बढ़ी है। दक्षिण और उत्तर-पूर्व का भी प्रबुद्ध-समाज अब यह मानने लगा है कि देश में अंग्रेज़ी का प्रभाव समाप्त किया जाना आवश्यक है और हिन्दी ही उसका विकल्प बन सकती है। देश में देश की भावना को समझी जाने वाली एक संपर्क भाषा होनी चाहिए और यह हिन्दी ही हो सकती है। और, यह कहना अनुचित है कि हिन्दी देश की राष्ट्र-भाषा बनेगी तो इससे अन्य भाषाओं का अहित होगा। हिन्दी तो अंग्रेज़ी का स्थान ले रही है, इससे किसी भी अन्य भारतीय भाषा को कोई क्षति नहीं पहुँचेगी।डा सुलभ ने सभा में यह प्रस्ताव रखा कि “साहित्य सम्मेलन, हिन्दी ‘देश की राष्ट्र-भाषा घोषित’ हो, इसकी मांग भारत सरकार से करता है, और इस हेतु एक जन अभियान, तब तक चलाया जाएगा जब तक कि यह मांग पूरी नही होती” । पूरी सभा ने करतल ध्वनि से इसका समर्थन किया।लोक सेवा आयोग के संयुक्त सचिव डा मनोज कुमार झा, सम्मेलन की उपाध्यक्ष डा मधु वर्मा तथा डा कल्याणी कुसुम सिंह ने भी अपने विचार व्यक्त किए।अतिथियों का स्वागत सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन सम्मेलन के प्रचार मंत्री डा ध्रुव कुमार ने किया। मंच का संचालन कवि ब्रह्मानन्द पाण्डेय ने किया।इस अवसर पर, डा ओम् प्रकाश जमुआर, डा बच्चा ठाकुर, आराधना प्रसाद, डा पुष्पा जमुआर, डा अर्चना त्रिपाठी, डा नागेश्वर प्रसाद यादव, कृष्ण रंजन सिंह, विभा रानी श्रीवास्तव, डा मनोज गोवर्द्धनपुरी, डा सीमा रानी, जय प्रकाश पुजारी, ई अशोक कुमार, सदानंद प्रसाद, चंदा मिश्र,तलत परवीन, मोईन गिरीडीहवी, निर्मला सिंह, अरुण कुमार श्रीवास्तव, अभय सिन्हा आदि प्रबुद्धजन उपस्थित थे।समारोह में निम्नलिखित छात्रों को पुरस्कृत किया गया;- श्रुतिलेख-प्रतियोगिता : प्रिया कुमारी (प्रथम), सुहाना (द्वितीय), विवेक कुमार (तृतीय) , निबन्ध-लेखन-प्रतियोगिता : शिवांगी प्रिया (प्रथम), वैष्णवी कुमारी (द्वितीय), तहरीम कौसर (तृतीय), काव्य-पाठ-प्रतियोगिता :अंकिता कुमार (प्रथम), समृद्धि ओझा (द्वितीय), अंजलि प्रिया तथा आयुषी कुमारी (तृतीय) , व्याख्यान -प्रतियोगिता : रुद्राणी सिंह (प्रथम), सत्य प्रकाश (द्वितीय), रोमी वर्मा तथा अनुष्का झा (तृतीय) , कथा-लेखन-प्रतियोगिता : राज आर्यन (प्रथम), श्रेया कुमारी (द्वितीय), काजल कुमारी (तृतीय) । प्रथम स्थान पाने वाले विद्यार्थियों को एक हज़ार रपए, द्वितीय स्थान प्राप्त करने वाले को सात सौ रपए तथा तृतीय स्थान पाने वालों को पाँच सौ रपए की पुरस्कार राशि दी गई। हिन्दी दिवस समारोह में, कल नहीं उपस्थित हो सके, हिन्दी-सेवी सम्मान के लिए नामित युवा कवि चंदन द्विवेदी एवं कुमार रजत को आज सम्मानित किया गया। पुस्तक मेले के अंतिम दिन आज पुस्तकों की बड़ी संख्या में बिक्री हुई।