पटना-कौशलेन्द्र पाण्डेय,
‘साथी‘ जी एक गुणी साहित्यकार, एक विद्वान प्राध्यापक और प्रभावशाली वक़्ता हीं नहीं एक कर्मठ संगठन–कर्ता भी थे। अपने मित्रों और सहयोगियों के प्रति सदैव जागरूक और संवेदनशील रहते थे। इस प्रकार उन्होंने जो अपना उपनाम ‘साथी‘ रखा था, वह सार्थक सिद्ध होता था। वे सच्चे अर्थों में अपने सहयोगियों के अभिन्न साथी हुआ करते थे। वे समाज के प्रति अपने गुरुत्तर दायित्व को समझते थे। महात्मा बुद्ध के उस दिव्य आह्वान– “बहुजन हिताए, बहुजन सुखाए, लोकानुकंपाय चरैवेति– चरैवेति” के सिद्धांत पर उन्होंने ‘चरैवेति‘ नामक संस्था की स्थापना की थी और उसके माध्यम से समान विचार धर्मी लोगों को जोड़ते और समाज की सर्वतोभावेन हित के लिए निरंतर सक्रिए रहे।
यह बातें गुरुवार को बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में, प्रो सच्चिदानंद सिंह ‘साथी‘ के निधन पर आयोजित शोक–गोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। डा सुलभ ने कहा कि, साथी जी की अनेक विशेषताओं में एक यह भी थी कि वे जीवन–पर्यन्त एक शिक्षक और अभिभावक की भूमिका में रहे । अपने शिष्यों और नई पीढ़ी के मार्ग–दर्शन के कार्य में सदैव आगे रहते थे। वे समझते थे कि, सुसंस्कृत और समाजोन्मुख युवा हीं देश की बहुविध उन्नति में सहायक हो सकते हैं। ऐसे युवाओं के निर्माण और प्रोत्साहन के लिए भी उनकी जो सक्रियता रही वह स्तुति योग्य है।
सम्मेलन के उपाध्यक्ष नृपेंद्रनाथ गुप्त ने दूरभाष से अपने शोकोदगार व्यक्त किए, जो अभी बंगलुरु में स्वास्थ्य लाभ कर रहे हैं। सम्मेलन की साहित्यमंत्री डा भूपेन्द्र कलसी ने कहा कि, साथी जी प्रायः उनके आवास पर आया करते थे। उनके पति से साथी जी की गहरी आत्मीयता थी। उनके व्यवहार में अत्यंत माधुर्य और आत्मीयता होती थी। अर्थमंत्री योगेन्द्र प्रसाद मिश्र, डा ध्रुब कुमार, सुनील कुमार दूबे, डा नागेश्वर प्रसाद यादव, कृष्णरंजन सिंह, श्याम नारायण महाश्रेष्ठ, राजेश राज, अमित सिंह ने भी अपने शोकोदगार व्यक्त किए।