कोरोना संक्रमण काल की चपेट में पूरा विश्व है। कोरोना का कहर अपने चरम पर है। यह महामारी अपने साथ ना जाने कितनी दुश्वारियां लेकर आया है। लगता है कि जिंदगी ही लॉक हो जाएगी। इस वैश्विक महामारी में जिंदगी ही बदल गई है बदल गए हैं नजारे। हम सब तो अपने अपने घरों में रहे, पर अफसोस घर पहुंचने की चाह में रास्तों पर रह गए मजूदर बेचारे। मजदूर जहां भी फंसे हुए हैं उन्हें बस अपने गांव अपने घर जाने की जल्दी है, पर बेबस हैं ये लोग। आज अपनी फ़ौलादी बाहों से पत्थर तोड़ने वाले, लोहा पिघलाने वाले अपने मन के संसार में खुद ही टूट रहे हैं, अपनी ही राहों में पिघल रहे हैं। भवन निर्माण करने वाले बेघर हो दर दर भटक रहे हैं। अपनी परेशानियों को ये शब्द भी नहीं दे पा रहे हैं बस उनकी आंखों में बसे आंसू और दिल में कैद उनकी आह इसकी गवाही दे रहे हैं। अपनी वापसी के इंतजार में अथक चलते और पहुंच जाने की उम्मीद में बेचैन बैठे हुए मज़दूरों की यही दास्तान है। प्रत्येक देशवासी की, देश के मजबूत स्तंभ, हर निर्माणकारी काम में हिस्सेदारी करने वाले मजदूर वर्ग के प्रति गहरी संवेदना है। हर कोई अपने स्तर पर इनकी मदद भी कर रहा है। सरकार भी मुस्तैद है कि इन्हें दिक्कतों का सामना न करना पड़े। पर इनका असंगठित होना ही सिस्टम को स्थिति संभाल पाने में लड़खड़ाने जैसी परिस्थिति ला खड़ा कर दे रहा है। कुछ इनमें जानकारी के अभाव का होना है तो कुछ अफवाहों का असर भी रहा था। लेकिन इनके रेले और परेशानियों का अंत होता नहीं दिख रहा है। कोरोना से उपजे इस संघर्ष में वे पल पल के भागी हैं। ऐसे में इनके अदम्य साहस को सैल्यूट है।मजदूर समुदाय अपने सवाल के साथ चलते-चलते पूछ रहा है हमारी भुजाओं में ही दम था जो तुम्हारे खजाने भरते रहे, पर हमारी लाचारी में तुम हमें अकेला छोड़ चले। हालांकि पिछले हफ्ते से इन्हें अपने घर तक भेजने के लिए विशेष ट्रेनें चलाई जा रही हैैं। 12 मई से यात्रियों के लिए अहम शर्तों पर कुछ शहरों के लिए कई विशेष ट्रेनों की आवाजाही भी शुरू की जाएगी। मजदूरों के लिए स्पेशल ट्रेन पहले की तरह ही चलती रहेगी। फिर भी मजदूरों की मजबूरी, उनकी बेबसी कम होती नहीं दिख रही है। जीवन के हर क्षेत्र में घुसपैठ कर चुके इस वायरस ने देश को पूर्णबंदी का उपहार दे दिया है। कोरोना इस कदर हावी होगा और इसके इतने सारे साइड एफेक्ट होंगे किसी ने सोचा भी नहीं था। मजदूरों की दुखती रग पर मदद के हाथ रखने जाओ तो यही आवाज आती है कि “रोटी छिन गई,भूख दे गया कोरोना, रोज़ी छिन गई दुःख दे गया कोरोना”। मानों कोरोना से निजात पाने की अर्जी दे रहे हों हमारे श्रमिक वर्ग। अपार दर्द की घड़ी थमती ही नजर नहीं आ रही है। मजदूरों के पैरों में छाले पड़ गए हैं पर चलना जरूरी है। भारत संभावनाओं का देश है। भारत भावनाओं का देश है। अतः हमें पूरा यकीन है कि इन सबसे शीघ्र ही उबर जाएंगे।
रामा शंकर