पटना, १५ मई। अपने युग की साहित्यिक और सांस्कृतिक चेतना को दिशा और दृष्टि प्रदान करने वाले युग-प्रवर्त्तक साहित्यकार थे महावीर प्रसाद द्विवेदी। हिन्दी भाषा और साहित्य के महान उन्नायकों में उन्हें आदर के साथ परिगणित किया जाता है। उनके विपुल साहित्यिक अवदान के कारण हीं, उनके साहित्य-साधना के युग को हिंदी साहित्य के इतिहास में ‘द्विवेदी-युग’ के रूप में स्मरण किया जाता है। वे एक महान स्वतंत्रता-सेनानी, पत्रकार और समालोचक थे।
कवि की १५६वीं जयंती पर, बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में उनके चित्र पर माल्यार्पण और पुष्पांजलि के पश्चात अपने उद्गार में, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने यह बातें कहीं। डा सुलभ ने कहा कि, आधुनिक हिन्दी को, यदि भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने अंगुली पकड़ कर चलना सिखाया तो यह कहा जा सकता है कि द्विवेदी जी के काल में वह जवान हुई। आधुनिक हिन्दी,जिसे खड़ी बोली भी कहा गया, को गढ़ने में असंदिग्ध रूप से आचार्यवर्य महावीर प्रसाद द्विवेदी का अद्वितीय अवदान है.
उन्होंने कहा कि, द्विवेदी जी ने साहित्यिक पत्रिका ‘सरस्वती’ के माध्यम से हिन्दी का महान यज्ञ आरंभ किया था। इसके माध्यम से उन्होंने अनेक मनीषी साहित्यकारों को हिन्दी-सेवा के लिए प्रेरित किया तथा अपने मार्ग-दर्शन में अगणित नव साहित्य रत्न गढ़े। उन्होंने ‘अनुवाद’ को भी इस हेतु एक बड़े उपकरण के रूप में उपयोग किया। विभिन्न भाषाओं की मूल्यवान कृतियों का अनुवाद कर उन्होंने हिन्दी का भंडार भरा।
कवयित्री डा शालिनी पाण्डेय, कुमारी मेनका, नरेंद्र कुमार सिंह, अमरेन्द्र झा, उमेश कुमार, वीरेंद्र कुमार यादव, महेश प्रसाद आदि ने भी वरेण्य कवि को पुष्पांजलि अर्पित की।