जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष का पद छोड़कर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जी ने क्षेत्रीय दलों के लिए एक बड़ी चुनौती खड़ी कर दी है। उन्होंने न सिर्फ एक मिशाल कायम की है, अपितु एक बड़ी लकीर भी खींच दी है। बिहार समेत देश के अधिकांश रजनीतिक दल अभी वंशवादी राजनीति के सहारे चल रहे हैं। ऐसे में अध्यक्ष के पद पर आरसीपी सिंह को बिठा कर उन्होंने क्षेत्रीय दलों के बीच अपना कद एक हाथ ऊंचा कर लिया है। इसे उनका मास्टर स्ट्रोक कह सकते हैं। राजद, झामुमो, टीएमसी, समाजवादी पार्टी समेत तमाम क्षेत्रीय दल उनके समक्ष बौने हो गए हैं।नीतीश कुमार जी को राजनीति का चाणक्य यूं ही नहीं कहा जाता है। समय -समय पर वे कुछ ऐसा चौंकानेवाला काम कर देते हैं, जिसकी कल्पना उनके करीबी को भी नहीं होती। पार्टी की राष्ट्रीय परिषद और कार्यसमिति की बैठक में नए अध्यक्ष के चुनाव का कोई एजेंडा नहीं था। क्योंकि अध्यक्ष के रुप में नीतीश का कार्यकाल अभी बाकी था। फिर भी उन्होंने इस्तीफे की घोषणा कर दी और लगे हाथ आरसीपी का नाम अपने उत्तराधिकारी के रुप में प्रस्तावित कर दिया। उनकी इच्छा का सम्मान करते हुए एकमत से श्री आरसीपी सिंह जी चुन लिए गये।संविधान और लोकतंत्र की दुहाई देनेवाले क्षेत्रीय दल आकंठ वंशवाद में डूबे हुए हैं। जैसे राजतंत्र में राजा का बेटा ही राजा होता था वैसे ही क्षेत्रीय दलों में हो रहा है। राजद में लालू प्रसाद की जगह तेजस्वी यादव के लिए आरक्षित है। लोजपा में रामविलास पासवान की जगह उनके पुत्र चिराग को गद्दी सौंपी गई। जेएमएम में दिशोम गुरु कहे जानेवाले शिबू सोरेन की जगह हेमंत सोरेन ने ली। समाजवादी पार्टी में मुलायम सिंह यादव की जगह अखिलेश यादव की ही ताजपोशी होगी। बसपा में मायावती के उत्तराधिकारी के रुप में उनके भतीजे को देखा जा रहा है। टीएमसी में ममता बनर्जी के उत्तराधिकारी भतीजे अभिषेक बनर्जी बनेंगे। अकाली दल में प्रकाश सिंह बादल की जगह पुत्र सुखवीर सिंह बादल ही होंगे।शिवसेना में बाला साहब ठाकरे के बाद उद्धव ठाकरे और उनके बाद आदित्य ठाकरे ही बनेंगे, इसमें किसी को संदेह नहीं है। राकंपा में शारद पवार के बाद गद्दी पुत्री सुप्रिया सुले संभालेंगी। डीएमके में करूणानिधि आजीवन अध्यक्ष रहे। उनके बाद पुत्र स्टालिन के हाथ में कमान है। टीडीपी में चंद्राबाबू नायडू के बाद पुत्र नारा लोकेश की ताजपोशी तय है। तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) में के. चंद्रशेखर राव की उत्तराधिकारी उनकी पुत्री के. कविता या पुत्र होंगे। भारतीय लोकतंत्र में वंशवादी राजनीति कांग्रेस की देन है। हालांकि इस वंशवाद की बड़ी कीमत कांग्रेस को चुकानी पड़ रही है। उसके समक्ष अस्तित्व का संकट खड़ा हो गया है। वहीं से यह बीमारी क्षेत्रीय दलों में गई। जेल में रहते हुए भी लालू प्रसाद राजद अध्यक्ष का पद नहीं छोड़ रहे। ऐसे में कभी उनके सहयोगी रहे नीतीश कुमार अध्यक्ष पद का दूसरा टर्म बीच में ही छोड़ देते हैं तो यह घने अंधेरे में एक तेज चमक के समान है।नीतीश कुमार भी चाहते तो राजनीति में अपने पुत्र या रिश्तेदार को आगे बढ़ा सकते थे। कोई बुरा भी नहीं मानता। लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया।
कौशलेन्द्र पाराशर की रिपोर्ट.