पटना, १४ नवम्बर। केरल के राज्यपाल आरिफ़ मोहम्मद खान ने कहा है कि देश की सभी भाषाएँ राष्ट्र की ही भाषाएँ ही है। किंतु देश को एक सूत्र में जोड़ने के लिए संपर्क की एक राष्ट्र भाषा होनी ही चाहिए और हिन्दी में इसके पर्याप्त गुण हैं।श्री खान ने यह बातें सोमवार को बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन के १०४वें स्थापना दिवस समारोह का उद्घाटन करते हुए कही। उन्होंने कहा कि देश की सभी भाषाओं के उन्नयन से ही राष्ट्र मज़बूत होगा। भारत का सौंदर्य उसकी विविधता में एकता का भाव है। भारतीय संस्कृति की यह विशेषता है कि भारत का हर एक व्यक्ति अपनी रूचि के अनुसार अपना दर्शन निश्चित कर सकता है।इस अवसर पर, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ तथा आयोजन समिति के स्वागताध्यक्ष डा रवींद्र किशोर सिन्हा ने राज्यपाल को सम्मेलन की सर्वोच्च मानद उपाधि ‘विद्या वाचस्पति’ से अलंकृत किया। महामहिम ने सम्मेलन की ओर से २१ विदुषियों और विद्वानों को ‘साहित्य मार्तण्ड’, ‘साहित्य शार्दूल’ तथा ‘साहित्य चूड़ामणि’ की उपाधि से विभूषित किया। महामहिम ने सम्मेलन द्वारा प्रकाशित विदुषी कवयित्री डा शालिनी पाण्डेय के काव्य-संग्रह ‘मेरे भाव’ तथा राँची की कवयित्री ममता बनर्जी के काव्य-संग्रह ‘छवि’ का लोकार्पण किया।इसके पूर्व अतिथियों का स्वागत करते हुए स्वागत समिति के अध्यक्ष और पूर्व सांसद डा रवींद्र किशोर सिन्हा ने कहा कि यह प्रसन्नता की बात है कि साहित्य सम्मेलन के १०४वें स्थापना दिवस समारोह का उद्घाटन एक ऐसे विद्वान राज्यपाल के हाथों हुआ है, जो हिन्दी के उन्नयन लिए सदैव तत्पर रहे हैं।मुख्यअतिथि के रूप में सभा को संबोधित करती हुई चाणक्य राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय की कुलपति न्यायमूर्ति मृदुला मिश्र ने कहा कि मेरा पूरा परिवार आज से ५० वर्ष पूर्व से साहित्य सम्मेलन से जुड़ा रहा है। मेरे श्वसुर न्यायमूर्ति सतीश चंद्र मिश्र सम्मेलन से बहुत गहरे जुड़े हुए थे। तब से सम्मेलन से मेरा भी जुड़ाव रहा है। साहित्य से मैंने बहुत कुछ पाया। साहित्य का समाज पर गहरा प्रभाव पड़ता है। उसी तरह समाज का भी साहित्य पर उतना ही प्रभाव होता। दोनों का परस्पर अन्योनाश्रय संबंध है। साहित्य हमें संस्कारित करता है।अपने अध्यक्षीय संबोधन में सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कहा कि सम्मेलन के १०४ वर्षों का इतिहास अत्यंत ही गौरवशाली है। हिन्दी भाषा और साहित्य के उन्नयन में सम्मेलन ने देश-व्यापी योगदान दिया है। उन्होंने कि स्वतंत्रता के ७५ वर्ष व्यतीत हो जाने के पश्चात भी देश की अपनी कोई राष्ट्रभाषा घोषित नहीं हो सकी और अभी भी औपचारिक रूप से विदेश की एक भाषा भारत की सरकार की कामकाज की भाषा बनी हुई है, जो देश के प्रत्येक नागरिक के लिए वैश्विक-लज्जा का विषय है। उन्होंने महामहिम से आग्रह किया कि वे अपने स्तर से प्रयास करें कि हिन्दी को शीघ्र ही, राष्ट्रीय ध्वज और राष्ट्रीय चिन्ह की भाँति ‘राष्ट्र-भाषा’ घोषित हो।समारोह के विशिष्ट अतिथि और पटना उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति राजेंद्र प्रसाद, दूरदर्शन बिहार के कार्यक्रम प्रमुख डा राज कुमार नाहर, सम्मेलन के उपाध्यक्ष और वरिष्ठ लेखक जियालाल आर्य तथा वीरेंद्र कुमार यादव ने भी अपने विचार व्यक्त किए। मंच का संचालन सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन डा कल्याणी कुसुम सिंह ने किया।इस अवसर पर पूर्व कुलपति प्रो अमरनाथ सिन्हा, प्रो रास बिहारी सिंह, डा मधु वर्मा, डा पूनम आनंद, डा सुनील कुमार दूबे, कुमार अनुपम, डा प्रतिभा रानी, डा बलराज ठाकुर, डा महेश्वर ओझा महेश, रमेश कँवल, डा सुलक्ष्मी कुमारी, डा अर्चना त्रिपाठी, डा नागेश्वर प्रसाद यादव, कृष्ण रंजन सिंह, संजीव कुमार मिश्र, शशिभूषण कुमार, बाँके बिहारी साव, कृष्ण किशोर मिश्र, डा अमरनाथ प्रसाद, राजेश भट्ट, सागरिका राय, डा सुषमा कुमारी समेत सैकड़ों विदुषियों और विद्वानों की उपस्थिति हुई।सम्मानित होने वाले साहित्य-सेवियों की सूचिसाहित्य चूड़ामणि सम्मान१) डा उषा किरण खान२) डा निलीमा वर्मा३) श्रीमती मणिबेन द्विवेदी४) श्रीमती तलत परवीन५) श्रीमती ममता बनर्जी६) डा पुष्पा कुमारीसाहित्य-मार्तण्ड सम्मान१) डा रवींद्र उपाध्याय२) डा सिद्धेश्वर प्रसाद सिंह३) श्री सुरेश चौधरी ‘इंदु’४) श्री ब्रजेश पाण्डेय५) डा क़ासिम ख़ुर्शीद६) डा अशोक कुमार ज्योति७) श्री सीता राम सिंह ‘प्रभंजन’८) श्री उदय नारायण सिंहसाहित्य शार्दूल सम्मान१) डा ज्वाला प्रसाद ‘सांध्यपुष्प’२) श्री कालिका सिंह३) श्री प्रेम कुमार वर्मा४) डा राज कुमार मीणा५) श्री मोईन गिरिडीहवी६) डा अजीत कुमार पुरी को दिया गया.