पटना, १३ दिसम्बर। नगर के दो सबसे लोकप्रिय और प्राचीन उत्सवों; ‘कौमुदी महोत्सव’ और ‘महामूर्ख सम्मेलन’, जिसमें पाटलिपुत्र की महान गौरवशाली परंपरा और सांस्कृतिक-चेतना की सुंदरतम अभिव्यक्ति होती है, के वंदनीय सूत्रधार थे पं विश्वनाथ शुक्ल ‘चंचल’। लगभग ६ दशकों तक निर्वाध आहूत होते रहे इन दोनों ही उत्सवों के केंद्र में होते थे चंचल जी। उनके निधन से हमने एक मूर्तमान संस्कृति को खो दिया है। यह सभ्य समाज की कभी न पूरी होने वाली क्षति है।यह शोकोदगार, मंगलवार की संध्या बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में आयोजित एक शोक-सभा की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। उन्होंने कहा कि चंचल जी ने मुझे अपने निर्मल-प्रेम से बाँध रखा था और उनके कारण मुझे भी ‘कौमुदी महोत्सव’ का वर्षों अध्यक्ष रहने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।डा सुलभ ने स्वर्गीय चंचल जी को पटना का ‘अंतिम ज़िंदा आदमी’ बताते हुए कहा कि अब लगता ही नहीं कि नगर में कहीं ज़िंदगी बची हो। मेरा यह शेर आज के हालात बयान करते हैं कि- “उठ गए हैं वो लोग जो रहे कभी ज़िंदा/ इस शहर में अब लाश और गिद्ध है बाक़ी”। जिधर भी नज़र डालें, हमें चलती-फिरती हुई लाश और उसे नोचते-खाते गिद्ध दिखाई देते हैं। हम प्रार्थना करें कि चंचल जी जैसे लोग बड़ी संख्या में हों, जो आदमी को ज़िंदा करें।अपने शोकोदगार में सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद ने कहा कि चंचल जी लगभग तीन सौ पीढ़ियों का विरासत लेकर आगे चले थे। उन्होंने इन महोत्सवों के माध्यम से अपनी सांस्कृतिक धरोहरों को सुरक्षित रखा।उनके पिता जगन्नाथ शुक्ल जी भी उच्च-स्तर के संस्कृति-कर्मी थे। रंगमंच, फ़िल्म और आकाशवाणी से भी उनका गहरा संबंध था। चंचल जी पर उनके पिता का गहरा प्रभाव था। नगर में दशकों से आयोजित हो रहे इन दोनों वार्षिक महोत्सवों को जीवित रखा जाना चाहिए, जिससे चंचल जी की स्मृति सदा ताज़ा बनी रहेगी। उनके प्रति यही सच्ची श्रद्धांजलि भी होगी। शोक-सभा में, दूरदर्शन बिहार के पूर्व कार्यक्रम प्रमुख डा ओम् प्रकाश जमुआर, डा दिनेश दिवाकर, कुमार अनुपम, कृष्ण रंजन सिंह, डा आर प्रवेश, डा विनय कुमार विष्णुपुरी, अश्विनी कुमार कविराज, पत्रकार हरि शंकर यादव, डा पल्लवी विश्वास, कमल नोपानी, रामाशीष ठाकुर आदि ने भी अपने उद्गार व्यक्त करते हुए श्रद्धांजलि अर्पित की। सभा के अंत में दो घड़ी के लिए मौन रहकर दिवंगत आत्मा की सद्गति हेतु प्रार्थना की गई।