पटना, ५ जून। “दिल था तो ज़ख़्म भी था, कुछ कम न था / तुम सा जो हकीम था कुछ ग़म ना था ।”——- “कभी मुस्कुराने को जी चाहता है / कभी रो जाने का जी चाहता है!”ऐसी ही मर्म-स्पर्शी पंक्तियों और गीत-ग़ज़लों से बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन आज गए शाम तक गुलज़ार रहा। अवसर था सम्मेलन के पूर्व अध्यक्ष प्रो कलक्टर सिंह ‘केसरी’ की जयंती पर आयोजित कवि-सम्मेलन का।सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद ने अपनी ग़ज़ल की इन पंक्तियों से कवि-सम्मेलन का आरंभ किया कि, “यहाँ सब ज़ख्म देते हैं, ज़रा सी बात को लेकर/ किसी के दिल के ज़ख्मों को मिटाना किसको आता है?”। गीतिधारा के प्रसिद्ध कवि ब्रह्मानन्द पाण्डेय ने पर्यावरण को विषय बनाते हुए कहा- तुम ही गतागत काल हो, दृढ़ सत्य और प्रवाह हो/ जिस पर चले ये भुवन सकल / तुम वही सुंदर राह हो/ तुम प्रबल रक्षक मनुज के/ प्राणी तुम्हारी गहें शरण/ पर्यावरण तुमको नमन !”वरिष्ठ शायरा तलत परवीन ने अपनी इन पंक्तियों से तालियाँ बटोरी कि – “जो कहता है मुझ से कि मैं हूँ तुम्हारा/ उसे आज़माने को जी चाहता है। कभी मुस्कुराने को जी चाहता है/ कभी रूठ जाने को जी चाहता है।”अपने अध्यक्षीय काव्य-पाठ में सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने अपनी एक ताज़ा ग़ज़ल पढ़ी कि “दिल था ज़ख़्म भी था, कुछ कम न था/ तुम सा जो हकीम था कुछ ग़म न था/ तुम न हो तो कोई ख़ुशी ख़ुशी नहीं/ तुम थे पास तो कोई ग़म ग़म न था।”। कवि जय प्रकाश पुजारी, अर्जुन प्रसाद सिंह,कुमार अनुपम, चंद्र भूषण प्रसाद, डा बी एन विश्वकर्मा, शिवानन्द गिरि, बाँके बिहारी साव, अजीत कुमार भारती आदि कवियों ने भी अपनी रचनाओं का पाठ किया।इसके पूर्व केसरी जी के प्रति श्रद्धा-सुमन अर्पित करते हुए, डा सुलभ ने कहा कि, केसरी जी अद्भुत प्रतिभा के कवि और महान शिक्षाविद थे। उनकी कारयित्री प्रतिभा बहुमुखी थी। वे अंग्रेज़ी के प्राध्यापक थे, किंतु जिस मन-प्राण से उन्होंने हिन्दी की सेवा की,उससे वे हिन्दी-सेवी ही माने गए। वे स्वयं में ही एक साहित्यिक-कार्यशाला थे। उनका सान्निध्य पाकर अनेक व्यक्तियों ने साहित्य-संसार में लोकप्रियता अर्जित की। केसरी जी साहित्य सम्मेलन तथा विश्वविद्यालय सेवा आयोग, बिहार के भी अध्यक्ष रहे। वे समस्तीपुर महाविद्यालय के संस्थापक प्राचार्य थे। उनके कार्यकाल में समस्तीपुर नगर साहित्यिक-सांस्कृतिक केंद्र के रूप में प्रसिद्ध था। मंच का संचालन कवि ब्रह्मानन्द पाण्डेय ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन कृष्ण रंजन सिंह ने किया।इस अवसर पर, नरेंद्र देव, राम नारायण सिंह, नंदन कुमार मीत, दयानंद जायसवाल, सुधा शरण सिंह, रवीन्द्र कुमार सिंह, अमन वर्मा, साहिल कुमार, अशोक कुमार डा आर पण्डित, विजय कुमार, श्री बाबू समेत बड़ी संख्या में काव्य-प्रेमी उपस्थित थे।