पटना, २० अक्टूबर। मैथिली और हिन्दी के विलक्षण साहित्यकार और कोशकार पं गोविन्द झा एक ऐसे एकांतिक साधक थे, जिन्होंने न केवल अपनी आयु के सौ वर्ष पूरे किए, अपितु अपनी आयु के अनुकूल विपुल साहित्य का भी सृजन किया। उनके समान कोई दूसरा उदाहरण नहीं है। उनका ‘शब्द’ पर ही नहीं, जीवन पर भी कठोर अनुशासन था। उनका अनुशासित जीवन और तपो साधना एक दुर्लभ आदर्श है। एक कोशकार और शब्द-शिल्पकार के रूप में वे सदैव स्मरण किए जाते रहेंगे।यह बातें बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में, साहित्यकार पं गोविन्द झा तथा पत्रकार अंजनी तिवारी के निधन पर आयोजित शोक-सभा की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। उन्होंने कहा कि पण्डित जी के भोजन का अनुशासन भी अद्भुत था। इस प्रसंग में उनकी पुत्रवधू ने अपना संस्मरण साझा करते हुए कहा था कि जब वो विवाह के बाद ससुराल आयीं और भोजन के समय अपने श्वसुर (पं गोविन्द झा) से पूछा कि उनका भोजन परोस दें ? तो उनका उत्तर था – “मुझ से क्यों पूछती हो, घड़ी से पूछो!”डा सुलभ ने कहा कि पण्डित जी के साहित्य में भी उसी भाँति ‘शब्दानुशासन’ देखा जा सकता है। एक शब्द भी व्यर्थ नहीं लिखते थे। उनकी पंक्तियाँ चुने हुए प्रांजल शब्दों की सुंदर लड़ियाँ हैं। शासनिक-शब्दावली के निर्माण में भी उनका स्तुत्य योगदान है। उन्होंने कहा कि साहित्य सम्मेलन आगामी वर्ष से उनके नाम से भी ‘सम्मान’ आरंभ करेगा।पत्रकार अंजनी तिवारी को स्मरण करते हुए डा सुलभ ने कहा कि वे एक सच्चे और अच्छे पत्रकार थे। सरल, विनम्र और सदा प्रसन्न रहने वाले। उनके आचरण और व्यवहार में कभी भी अहंकार का लेश मात्र भी समावेश नही था। अपने समाचारों अथवा रपटों में वे कभी मिलावट नहीं करते थे। जो देखा, वही लिखा। न तो किसी राग-द्वेष से, न किसी दबाव में। दैनिक पत्र ‘पाटलिपुत्र टाइम्स’ से अपने पत्रकार-जीवन का आरंभ करने वाले तिवारी जी ‘आज’ की सेवा करते हुए, संसार से विदा हुए। उनका असमय जाना अत्यंत पीड़ा दायक है। मेरे प्रति अत्यंत आदरयुक्त स्नेह रखने वाले मित्र थे। उनके निधन से पत्र-जगत को क्षति तो पहुँची ही है, हमने एक गुणी पत्रकार मित्र को खो दिया है।सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद ने कहा कि अंजनी तिवारी से हमारा पारिवारिक संबंध रहा। उनके पिता अमरेन्द्र नारायण तिवारी आकाशवाणी के अधिकारी थे और मित्रवत् थे। अपने सामने अंजनी को बढ़ते और एक सफल पत्रकार के रूप में देखा। उसे श्रद्धांजलि भी देनी होगी, सोचा न था।सम्मेलन के पुस्तकालय मंत्री अशोक कुमार, अर्थमंत्री प्रो सुशील कुमार झा, प्रबंधमंत्री कृष्ण रंजन सिंह, ई आनन्द किशोर मिश्र, कुमार अनुपम, नन्दन कुमार मीत, डा आनन्द आशीष, डा पंकज प्रियम, राम प्रसाद ठाकुर, कुमारी मेनका, रवींद्र कुमार सिंह आदि ने अपने शोकोदगार व्यक्त किए। सभा के अंत में कुछ पल मौन रख कर दोनों प्रस्थित आत्माओं की शांति के लिए प्रार्थना की गयी।