पटना, ७ जनवरी। संस्कृत, हिन्दी, ऊर्दू, फ़ारसी, बांगला, गुजराती, अंग्रेज़ी, रूसी, फ़्रेंच, ग्रीक और जर्मन समेत अनेक देशी-विदेशी भाषाओं के उद्भट विद्वान आचार्य देवेंद्रनाथ शर्मा पुरातन भारतीय ज्ञान के नूतन प्रकाश थे। भारतीय दर्शन और वैदिक साहित्य का उन्हें गहरा अध्ययन था। वे पटना विश्वविद्यालय और दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति भी रहे। भाषा-विज्ञान और साहित्यालोचन के वे यशस्वी विद्वान हीं नही,महान आचार्य भी थे। काव्य-शास्त्र, अलंकार और साहित्यालोचन पर लिखी गई उनकी पुस्तकें विद्यार्थियों के लिए आदर्श ग्रंथ है। नाटक, ललित-निबंध, समालोचना समेत साहित्य की विभिन्न विधाओं में उन्होंने दो दर्जन से अधिक पुस्तकें लिखीं, जो अत्यंत मूल्यवान धरोहर के रूप में आज साहित्य संसार को उपलब्ध है। यह बातें आज यहाँ बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन में आचार्य शर्मा की १०३वीं जयंती पर आयोजित संगोष्ठी और कवि-सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। डा सुलभ ने कहा कि, काव्य में अलंकार, कविता की शोभा है। जिस प्रकार स्त्रियाँ ऋंगार कर और भी शोभायमान हो जाती हैं, उसी प्रकार अलंकार से कविता-सुंदरी सौंदर्यवती होती है। भारतीय आचार्यों ने इसे काव्य का सौंदर्य कहा है। किंतु अलंकार के प्रयोग में विवेक और संयम भी आवश्यक है। इसका अनावश्यक और अधिक प्रयोग शोभा बढ़ाने के स्थान पर, काव्य की गरिमा को गिराने वाला हो सकता है, जैसे कोई स्त्री आवश्यकता से अधिक ऋंगार कर उपहास की पात्र बन जाती है।आरंभ में अतिथियों का स्वागत करते हुए सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद ने कहा कि, आचार्य देवेंद्र नाथ शर्मा एक ऐसे विद्वान आचार्य और साहित्यकार थे, जिन्हें बिहार ही नहीं संपूर्ण भारत वर्ष आदर देता रहा है।अद्भुत वक़्ता थे। अनेक भाषाओं के ज्ञाता थे। किंतु जिस भाषा में बोलते थे, उसमें उसके अतिरिक्त किसी अन्य भाषा का एक शब्द नही होता था। समय और नियम के पक्के तथा आदर्शवादी थे। कक्षा में उनके प्रवेश के साथ घड़ी मिलाई जा सकती थी।इस अवसर पर आयोजित कवि सम्मेलन का आरंभ कवयित्री चंदा मिश्र ने वाणी-वंदना से किया। वरिष्ठ कवि मृत्युंजय मिश्र ‘करुणेश’ ने अपने भावों को इन शब्दों में स्वर दिया कि “मन न माने तो उसे फिर फिर मनाना चाहिए/ दिल को बहलाने को भी कोई बहाना चाहिए/ यार से यारी न, दुश्मन से न कोई दुश्मनी/ यह कदम भी क्या बुरा जब तब उठाना चाहिए”। डा शकर प्रसाद ने मधुर स्वर से यह कहा कि “हम तो शायर हैं सब बयां करते हैं/ जो गुजरती है दिल पे लिखते हैं।”आकाशवाणी के कार्यक्रम अधिशासी और वरिष्ठ शायर शंकर ‘कैमूरी’ का कहना था कि “कुछ दिल में कुदरत है/ कुछ सीने में कीना है/ इस तरह से जीना भी/ जीना भी कोई जीना है”। व्यंग्य के कवि ओम् प्रकाश पाण्डेय ‘प्रकाश’ ने कहा – “क्या है अंतर? कौन है मंतर? कहाँ है जंतर? पूछ प्रकाश पूछ/ बूझ प्रकाश बूझ/ कूच प्रकाश कूच”।कवयित्री माधुरी भट्ट,वरिष्ठ कवि बच्चा ठाकुर, कुमार अनुपम, डा विनय कुमार विष्णुपुरी, जय प्रकाश पुजारी, बाँके बिहारी साव, अर्जुन प्रसाद सिंह, राज किशोर झा, अश्विनी कुमार कविराज, राज किशोर राय निरंजन, अरुण कुमार श्रीवास्तव आदि कवियों ने भी अपनी रचनाओं से श्रोताओं पर गहरा प्रभाव छोड़ा। इस अवसर सत्याशर्मा कीर्ति, पर अमन वर्मा, चंद्रशेखर आज़ाद, राजेश शर्मा, निशिकांत मिश्र, रामकिशोर विरागी, अमित कुमार सिंह आदि उपस्थित थे।मंच का संचालन सुनील कुमार दूबे ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन कृष्णरंजन सिंह ने किया।
