संजय राय की रिपोर्ट पटना से , २३ अगस्त। महान स्वतंत्रता सेनानी और किसान नेता पं राज कुमार शुक्ल, महात्मागांधी के ऐतिहासिक चंपारण-सत्याग्रह के वह महान अग्रदूत थे जिनके अथक प्रयास और बारंबार अनुनय-विनय पर गांधी जी चंपारण आए थे। जब गांधीजी ने अग्रेज नीलहे जमीनदारों से सताए जा रहे यहां के किसानों की दुर्दशा देखी तो प्रतिकार के लिए खड़े हुए। फिर गांधी जी ने पं शुक्ल समेत स्थानीय किसानों, किसान-नेताओं और देश रत्न डा राजेंद्र प्रसाद, बाबू ब्रज किशोर प्रसाद, पीर मोहम्मद मूनिस आदि प्रबुद्धजनों के सहयोग से जिस चंपारण सत्याग्रह का बीज वपन किया, वही भारत की स्वतंत्रता की अंतिम लड़ाई का सूत्र सिद्ध हुआ। इसी ऐतिहासिक सत्याग्रह ने भारत में वह आधार-भूमि तैयार कर दी, जिस पर स्वतंत्रता का स्वर्ण-महल बन कर खड़ा हुआ।यह बातें सोमवार, बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में, पं शुक्ल की १४७वीं जयंती पर आयोजित समारोह की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। उन्होंने कहा कि, शुक्ल जी नहीं होते तो भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का परिदृश्य क्या होता? यह बताना कठिन होता। इतिहास साक्षी है कि, चंपारण और पं शुक्ल ही हैं, जिन्होने ‘मोहनदास करमचंद गांधी’ को ‘महात्मा गांधी’ और फिर कालांतर में ‘राष्ट्र-पिता’ बना दिया।जिस प्रकार गांधी जी ने चंपारण के अपने पहले मुक़दमें में स्वयं सरकारी आदेश की अवहेलना का दोषी मानकर सज़ा देने का आग्रह न्यायालय से किया, उससे चंपारण के लोग चकित थे और उन सबका मानना था कि इस तरह का कार्य औरों के लिए कोई महात्मा ही कर सकता है।
पं राज कुमार शुक्ल की विदुषी दौहित्री वीणा देवी ने कहा कि शुक्ल जी की तीन पुत्रियाँ थी। उनकी तीसरी पुत्री देवपति देवी ने उन्हें मुखाग्नि दी थी। यह मेरा सौभाग्य है कि पुत्र समान जिस पुत्री ने उन्हें मुखाग्नि दी, मैंउन्हीं की पुत्री हूँ। शुक्ल जी ने जो त्याग-बलिदान देश के लिए किया, देश ने न तो उनको और न ही उनके परिवार को ही अपेक्षित सम्मान दिया। इस अवसर पर प्रसिद्ध गांधीवादी विचारक भैरवलाल दास को ‘पं राज कुमार स्मृति सम्मान’ से विभूषित किया गया।
पं राज कुमार शुक्ल स्मारक न्यास के सचिव कमल नयन श्रीवास्तव शुक्ल जी की अनदेखी पर चिंता व्यक्त की तथा उन्हें ‘भारत रत्न’ से अलंकृत करने की मांग की। डा पंकज कर्ण, बाँके बिहारी साव, सुमीत कुमार वत्स, प्रो सुशील कुमार झा तथा राजेश राज ने भी अपने विचार व्यक्त किए।
इस अवसर पर आयोजित कवि-सम्मेलन का आरंभ जयप्रकाश पुजारी की वाणी-वंदना से हुआ। वरिष्ठ कवि मृत्यंजय मिश्र ‘करुणेश’ ने कहा कि “खिला हो फूल, ख़ुशबू का बिखर जाना ज़रूरी है/ मिला हो रूप तो उसका संवर जाना ज़रूरी है”। सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद का कहना था कि “कैसे कहूँ कि याद में तेरी मिटा हुआ/ कोई हसीन ख़्वाब था तुमसे जुड़ा हुआ।”
वरिष्ठ कवि ओम् प्रकाश पाण्डेय ‘प्रकाश’, कुमार अनुपम, माधुरी भट्ट, अर्जुन प्रसाद सिंह, राज किशोर झा आदि कवियों ने अपनी काव्य-रचनाओं से पं शुक्ल को श्रद्धांजलि अर्पित की। मंच का संचालन सुनील कुमार दूबे ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन कृष्ण रंजन सिंह ने किया।