पटना, २४ अगस्त। श्रीमद्भागवत गीता विश्व-समुदाय को, भारत की ओर से दिया गया सर्वोत्तम उपहार है। यह संपूर्ण वैदिक साहित्य समेत भारतीय-दर्शन का सार तथा जीवन, जीव जगत, आत्मा-परमात्मा से सबंधित आदिकाल से उठते रहे सभी प्रश्नों का उत्तर भी है। इसे ज्ञान-कोश के महान भंडार की कुंजिका कहना चाहिए, जिसे आत्मसात कर कोई भी मनुष्य अपने जीवन का श्रेष्ठतम लक्ष्य पा सकता है। इसमें आधुनिक-समाज की भी सभी समस्याओं का निदान उपलब्ध है। यह मानव-समुदाय की एक ऐसी पूँजी है, जिस पर देव-तुल्य मनुष्यों की पीढियां तैयार की जा सकती है। यह बातें मंगलवार को, राजेंद्र साहित्य परिषद और कल्याणोदय के संयुक्त तत्त्वावधान में, न्यू पाटलिपुत्र कौलोनी स्थित बिहार पेंशनर समाज भवन में, कीर्ति-शेष चिंतक-कवि हृदयनारायण जी के जन्म शती समारोह में ‘वर्तमान संदर्भ में श्रीमद्भागवत गीता की प्रासंगिकता’ विषय पर, आयोजित संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए, बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। उन्होंने कहा कि हज़ारों वर्षों के तप पर आधारित चिंतन के प्रतिफल में, हमारे महान ऋषियों के श्रीमुख से, भारतीय-दर्शन का प्रस्फुटन हुआ। हमारा चिंतन ‘सादा-जीवन और उच्च विचार’ का है। हम जीवन को विलासिता-पूर्ण नहीं, ‘आनंद-प्रद’ बनाने की शिक्षा देते हैं। डा सुलभ ने कीर्ति-शेष कवि को श्रद्धापूर्वक स्मरण करते हुए कहा कि हिन्दी-साहित्य के साधु-पुरुष थे हृदय जी, लेखन की दृष्टि से भी और आचरण-व्यवहार और व्यक्तित्व से भी। उनकी आध्यात्मिक और साहित्यिक साधना साथ-साथ चली। संसार में रहते हुए भी उन्होंने गहन तपस्या की और सिद्धि भी प्राप्त की।मुख्य-वक़्ता के रूप में अपना व्याख्यान प्रस्तुत करते हुए, सुप्रसिद्ध इतिहासकार एवं ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो रत्नेश्वर मिश्र ने कहा कि, गीता एक ऐसा विचार-पूँज है , जिसमें काल्पनिकता के लिए कोई स्थान नहीं है। यह संसार में प्रचलित सभी विचार-धाराओं से ऊपर एक शाश्वत दर्शन है। इसीलिए गीता हर काल में प्रासंगिक है।इसके पूर्व संगोष्ठी का उद्घाटन करते हुए, पटना उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति राजेंद्र प्रसाद ने कहा कि, सत्य और आदर्श का उपदेश देना अत्यंत सरल है, किंतु उसे जीवन में उतारना बहुत ही कठिन है। अधिकांश लोग स्वयं के लिए जीते हैं किंतु कोई-कोई होता है, जो संसार के लिए जीता है। हृदय जी वैसे ही महापुरुष थे, जो संसार के लिए जिए और उन आदर्शों को अपने साहित्य में ही नहीं जीवन में भी उतारा। उसी प्रकार गीता पर व्याख्यान देना भी सरल है, किंतु उसे आत्मसात करना अत्यंत दुष्कर।आरंभ में अतिथियों का स्वागत करते हुए, हृदयनारायण जी के पुत्र और सुविख्यात शिशुरोग-विशेषज्ञ डा निगम प्रकाश नारायण ने उनके आध्यात्मिक और साहित्यिक व्यक्तित्व की विस्तारपूर्वक चर्चा की और कहा कि,उनकी ४० से अधिक पुस्तकों में उनका व्यापक दार्शनिक-चिंतन प्रकट हुआ है।डा निकुंज प्रकाश नारायण, डा निर्माल प्रकाश नारायण, डा शाहिद ज़मील, डा किरण नारायण, डा वीणा सिन्हा, नेहा नूपुर आदि ने भी अपने विचार व्यक्त किए। ज़ूम मीट के माध्यम से, इंगलैंड से कवि के बड़े पुत्र डा नयन प्रकाश नारायण, पुत्रवधू डा पूनम नारायण, अमेरिका से उनके पौत्र निशान्त, ऑस्ट्रेलिया से अर्पित नारायण, बंगलुरु से द्वितीय पुत्र नवीन प्रकाश नारायण समेत उनके अन्य परिजन सुनीता नारायण, सौम्या, मयूरी, प्रियंका, अर्पित, स्मिति, शशांक और अभिषेक भी समारोह से जुड़े हुए थे और अपने संस्मरणों को साझा करते हुए, श्रद्धांजलि अर्पित की।मंच का संचालन कवि सुनील कुमार दूबे ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन कवि की छोटी पुत्रवधू डा संगीता नारायण ने किया।