पटना, १५ सितम्बर। हिन्दी दिवस के अवसर पर बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन द्वारा आयोजित हिन्दी-सप्ताह और पुस्तकचौदस मेला के अंतर्गत बुधवार को भव्य कवि सम्मेलन आयोजित हुआ। सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ की अध्यक्षता में आयोजित इस सारास्वत उत्सव का उद्घाटन अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर चर्चित और लोकप्रिय गीतकार पं बुद्धिनाथ मिश्र ने दीप प्रज्ज्वलित कर किया। हिन्दी भाषा को केंद्र में रखकर आयोजित इस कवि-सम्मेलन में कवियों और कवयित्रियों ने अपनी रचनाओं से सभागार को इतना स्पंदित कर दिया कि सुधी श्रोता देर संध्या तक विमुग्ध होकर काव्य-रस का आस्वादन करते रहे।काव्य-पाठ का आरंभ जय प्रकाश पुजारी ने सस्वर वाणी-वंदना से किया। देहरादून से पधारे पं बुद्धिनाथ मिश्र ने अपने लोकप्रिय गीत, ”प्यास हरे, कोई घन बरसे/ तुम बरसो या सावन बरसे” को जब मधुर स्वर दिया तो पूरे सभागार में शब्द और संगीत की लहरें हिलोरें लेने लगी। हिन्दी की जय कहते हुए,उन्होंने कहा “जय होगी, निश्चय जय होगी/ भारत की धरती पर उसकी जनभाषा की ही जय होगी”। श्रोताओं के आग्रह पर उन्होंने अपना बहुचर्चित गीत “एक बार और जाल फेंक रे मछेरे/ जाने किस मछली में बंधन की चाह हो”, का भी पाठ किया।वरिष्ठ कवि और सम्मेलन के उपाध्यक्ष मृत्युंजय मिश्र ‘करुणेश’ ने अपनी यह रचना पढ़ी कि “जो अंदर है छुपा, बाहर वो आना चाहता है/ मगर इसके लिए कोई बहाना चाहता है/ शजर पर ही न जाने क्यों ठिकाना चाहता है/ परिंदा एक अपना आशियाना चाहता है”।शायरा शमा कौसर ने जब इन पंक्तियों को स्वर दिया कि “इल्ज़ाम बेसबब तो लगाया न कीजिए/ लिल्लाह बरक़ दिल पे गिराया न कीजिए/ जल-जल के हो न जाऊँ किसी रोज़ ख़ाक मैं / हर वक्त ‘शमा’ को यूँ जलाया न कीजिए”तो दर्जनों जोड़ी हाथ उठे और तालियों की गड़गड़ाहट देर तक सुनाई पड़ी। डा शंकर प्रसाद की ग़ज़ल की इन सुरीली पंक्तियों “चलके रुकते हैं कदम राह भी अनजानी ही/ ख़ूब महकी है फ़िज़ा बजती है शहनाई भी” को भी श्रोताओं ने हाथोहाथ लिया। । सुकंठी कवयित्री आराधना प्रसाद ने ये पंक्तियाँ पढ़ीं कि “मिली मां से जो बचपन में प्रखर पहचान है हिन्दी/ जिसे आशीष में पाया, वही वरदान है हिन्दी/ सुगमता से, सरलता से मधुरता से, मंजता से/ इसे है ओढ़ा हमने और बहुत आसान है हिन्दी।”अपने अध्यक्षीय काव्य-पाठ में डा सुलभ ने ग्राम्य सुषमा को स्मरण करते हुए, ये पंक्तियाँ पढ़ी कि “सोंचता हूँ जब कभी भी बैठ कर के छांव में / भर कुलाचें हिरण-मन जा पहुँचता गाँव में”। वरिष्ठ कवियित्री डा मधु वर्मा, ओम् प्रकाश पाण्डेय ‘प्रकाश’, कुमार अनुपम, डा विनय कुमार विष्णुपुरी, डा आर प्रवेश, पूजा ऋतुराज, मोईन गिरिडिहवी, मीर सज्जाद, नसर आलम ‘नसर’, अर्जुन प्रसाद सिंह तथा राज किशोर झा ने भी अपनी रचनाओं से श्रोताओं का ध्यान खींचा।मंच का संचालन सुकवि सुनील कुमार दूबे ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन सम्मेलन के प्रबंधमंत्री कृष्णरंजन सिंह ने किया। सुधी श्रोताओं में, प्रो बासुकीनाथ झा, उषा मिश्र, बाँके बिहारी साव, परवेज़ आलम, कमल किशोर वर्मा, ओम् प्रकाश वर्मा, चंद्र शेखर आज़ाद, अवध विहारी सिंह,राजेंद्र कुमार, रीना कुमारी सम्मिलित थे।