पटना, ३ दिसम्बर । अद्भुत मेधा के विलक्षण महापुरुष थे देशरत्न डा राजेंद्र प्रसाद। विद्वता और विनम्रता के पर्यायवाची शब्द थे वे। हिन्दी भाषा और साहित्य की उन्नति में उनके योगदान को भुलाया नहीं जा सकता। बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन की स्थापना और उसके विकास में उन्होंने अविस्मरणीय योगदान दिया। सम्मेलन के अध्यक्ष भी रहे और संपूर्ण भारत वर्ष में भ्रमण कर हिन्दी का प्रचार किया। उनकी आत्म-कथा, हिन्दी साहित्य में एक प्रशंसनीय स्थान रखती है। यदि वो राजनीति में नहीं होते तो हिन्दी भाषा और साहित्य के महान उन्नायक के रूप में स्मरण किए जाते। उनकी जयंती को भारत सरकार द्वारा ‘मेधा दिवस’ घोषित की जानी चाहिए।यह बातें शुक्रवार को भारत के प्रथम राष्ट्रपति देशरत्न डा राजेंद्र प्रसाद की जयंती पर, हिन्दी साहत्य सम्मेलन में आयोजित मेधा दिवस समारोह की अध्यक्षता करते हुए सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। डा सुलभ ने कहा कि, राजेंद्र बाबू की प्रतिभा अद्वितीय थी। उनकी स्मरण-शक्ति अद्भुत थी। दशकों पुरानी घटना तो क्या उनकी तिथियाँ तक उन्हें स्मरण रहा करती थी। राजेंद्र बाबू की आत्मकथा पढ़ने से केवल उनके जीवन का हीं नहीं उस समय के संपूर्ण भारतवर्ष की दशा-दिशा दिखाई देती है।अतिथियों का स्वागत करते हुए, सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद ने कहा कि राजेंद्र बाबू का जीवन एक तपस्वी संत का था। उनकी सादगी और विनम्रता देखते ही बनती थी। राष्ट्रपति भवन में भी उनकी सादगी की झलक देखी जा सकती है।सम्मेलन की उपाध्यक्ष डा मधु वर्मा ने कहा कि डा राजेंद्र प्रसाद के मन में नारी जाति के प्रति अपार श्रद्धा थी। वरिष्ठ कवि कमला प्रसाद ने कहा कि डा राजेंद्र प्रसाद सामासिक संस्कृति के प्रतीक थे। राष्ट्रकवि दिनकर ने अपनी अत्यंत लोकप्रिय ग्रंथ ‘संस्कृति के चार अध्याय’ को देशरत्न को ही समर्पित किया था। वरिष्ठ पत्रकार और साहित्यसेवी डा ध्रुब कुमार, वरिष्ठ कवि बच्चा ठाकुर, कवि ओम् प्रकाश पाण्डेय, डा मेहता नगेंद्र सिंह, कुमार अनुपम, डा आर प्रवेश, डा विनय कुमार विष्णुपुरी, डा शालिनी पाण्डेय, नंद किशोर ठाकुर, डा मनोज गोवर्द्धनपुरी, ब्रह्मानन्द पाण्डेय, डा बी एन विश्वकर्मा, अर्जुन प्रसाद सिंह,राज किशोर झा, ज्ञानेश्वर शर्मा, श्याम नारायण महाश्रेष्ठ ने भी अपने विचार व्यक्त किए। मंच का संचालन सुनील कुमार दूबे ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन कृष्णरंजन सिंह ने किया। इस अवसर पर नेहाल कुमार सिंह ‘निर्मल’, शिवानंद गिरि, राम किशोर सिंह ‘विरागी’, डा प्रेम प्रकाश, डा विजय कुमार दिवाकर, कौशलेंद्र कुमार, अमन वर्मा, ज़फ़र इक़बाल, श्रीबाबू, अक्षय शर्मा, विशाल कुमार तथा अमित कुमार सिंह समेत बड़ी संख्या में प्रबुद्ध जन उपस्थित थे।