पटना, २२ मई । लेखिका सरिता कुमारी की कहानियाँ पाठकों में जीवन के प्रति उत्साह और आत्म-विश्वास का सृजन करती हैं। इनकी कहानियों में नारी-चेतना अपने उत्कर्ष पर है। इनकी नायिकाएँ संघर्ष करती हैं, दुःख सहती हैं, पर न तो जीवन से निराश होकर थकती हैं, न हारती हैं। दुःख से क्लांत और जीवन के संघर्षों से परास्त स्त्रियों के मन को सरिता जी की कहानियाँ ऊर्जा भरती हैं और उन्हें पुनः पुनः उठ खड़े होने की ऊर्जा देती हैं।यह बातें रविवार को, बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में, विदुषी लेखिका सरिता कुमारी के कथा-संग्रह ‘मैं हारी नहीं हूँ’ के लोकार्पण समारोह की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। डा सुलभ ने कहा कि, कहानियाँ मानव-मन की आंतरिक ग्रंथियों से जुड़ी हुई हैं। जिज्ञासु बाल-मन के माध्यम से नानी-दादी की कहानियाँ सहस्राब्दियों से समाज में गहरा प्रभाव छोड़ती आई हैं। इसीलिए साहित्य की यह विधा आज भी सर्वाधिक लोकप्रिय है।
समारोह का उद्घाटन करती हुईं पटना उच्च न्यायालय की पूर्व न्यायाधीश और चाणक्य राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय की कुलपति न्यायमूर्ति मृदुला मिश्र ने कहा कि समाज के दो वर्ग सबसे अधिक प्रताड़ित होते रहे हैं, वे हैं महिलाएँ और बच्चे। ये दोनों वर्ग सुरक्षा की दृष्टि से सर्वाधिक सकटों में रहे हैं। लोकार्पित पुस्तक में लेखिका ने इन दोनों की समस्याओं को कुशलता से रेखांकित कर, उन्हें संवलित करने की चेष्टा की है। इनकी कथाओं की महिलाएँ संघर्ष करती और विजयी होती दिखाई देती हैं।इसके पूर्व अतिथियों का स्वागत करते हुए, सम्मेलन के प्रधानमंत्री डा शिववंश पाण्डेय ने कहा कि, इस कथा संग्रह में दो मुख्य बातें हैं। पहली बात यह कि नारियाँ पराजित नहीं हुई हैं और दूसरी बात यह कि नारियाँ अपने सम्मान और अधिकार के लिए सतत संघर्ष करने में सक्षम हैं। नारी सशक्तिकरण और सम्मान के लिए संघर्ष इसके प्रमुख कथ्य है, मानवीय गुणों की पहचान है।वरिष्ठ कथाकार और सम्मेलन के उपाध्यक्ष जियालाल आर्य ने कहा कि सरिता जी की कहानियों में सरलता भी है और रोचकता भी है, जो उत्सुकता बनाए रखती है।दूरदर्शन केंद्र, पटना की पूर्व केंद्र निदेशक रत्ना पुरकायस्था, वरिष्ठ शिक्षिका नीलम प्रभा, वरिष्ठ साहित्यकार बच्चा ठाकुर, सुप्रसिद्ध कैंसर रोग विशेषज्ञ डा जितेंद्र कुमार सिंह तथा वरिष्ठ राजनेता मधुरेंद्र कुमार सिंह ने भी अपने विचार व्यक्त किए।इस अवसर पर आयोजित लघु-कथा गोष्ठी में, सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद ने ‘तुम तो तुम हो’, शीर्षक से, ओम् प्रकाश पाण्डेय ‘प्रकाश’ ने ‘माता’, डा पूनम आनंद ने ‘सजा’, सागरिका राय ने ‘अकबकाहट’, डा आर प्रवेश ने “स्वाभिमान’, डा अर्चना त्रिपाठी ने ‘ये कैसा प्रेम’, डा सुलक्ष्मी कुमारी ने ‘ज़िंदगी’, डा विनय कुमार विष्णुपुरी ने ‘चार दोस्त’, डा मनोज गोवर्द्धनपुरी ने ‘सुख का अनुभव’, रेखा भारती ने ‘कर्मों का फल’ तथा सुषमा कुमारी ने ‘एक औरत की आत्मकथा’ शीर्षक से अपनी लघु कथाओँ का पाठ किया। मंच का संचालन सुनील कुमार दूबे ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन कृष्ण रंजन सिंह ने किया।समारोह में वरिष्ठ साहित्यकार प्रो इंद्रकांत झा, श्रीराम तिवारी, चंदा मिश्र, जय प्रकाश पुजारी, अश्मजा प्रियदर्शिनी, संजू शरण, पंकज प्रियम, नेहाल कुमार सिंह ‘निर्माल’, अश्विनी कविराज, कुमार गौरव, संजीव कुमार श्रीवास्तव, श्रीबाबू, रत्नावली कुमारी किशन, चंद्रशेखर आज़ाद, दिनेश यादव आदि सुधी जन उपस्थित थे।