पटना, २ नवम्बर। शारीरिक-मानसिक चुनौतियों का सामना कर रहे विशेष बच्चों में ‘जीवन-यापन योग्यता’ और सामाजिक सरोकार बनाने की क्षमता का विकास, पुनर्वास-विशेषज्ञों के समक्ष एक बड़ी चुनौती है। ऐसे बच्चों को आत्म-निर्भर बनाने, लोगों के व्यवहार को समझने और उचित प्रतिक्रिया करने योग्य बनाया जाना आवश्यक है। इस हेतु पुनर्वास-कर्मियों, विशेष-शिक्षकों, ऐसे बच्चों के माता-पिता और नैदानिक-मनोवैज्ञानिकों को मिलकर कार्य करना चाहिए।भारतीय पुनर्वास परिषद, भारत सरकार के सौजन्य से, बेउर स्थित इंडियन इंस्टिच्युत औफ़ हेल्थ एडुकेशन ऐंड रिसर्च में, गुरुवार से आरंभ हुए, तीन दिवसीय सतत पुनर्वास प्रशिक्षण कार्यशाला के उद्घाटन समारोह की अध्यक्षता करते हर, संस्थान के निदेशक-प्रमुख डा अनिल सुलभ ने यह बात कही। उन्होंने कहा कि विशेष-बच्चों के प्रसंग में ही नहीं, सामान्य बच्चों के लिए भी यह आवश्यक है कि उन्हें अपने चारित्रिक विकास तथा समाज के अन्य लोगों के साथ उचित व्यवहार के लिए प्रशिक्षित किया जाए।
सुप्रसिद्ध नैदानिक मनोवैज्ञानिक डा नीरज कुमार वेदपुरिया ने कहा कि आज के विद्यार्थियों में धैर्य और सहिष्णुता का घोर अभाव होता जा रहा है। छोटी-छोटी बातों और समस्याओं से वे घबड़ा उठाते हैं। माता-पिता एवं अन्य संबंधियों से उनकी दूरी बढ़ती जा रही है। अपनी समस्याओं के निदान हेतु वे किसी से परामर्श तक नहीं लेते।परामर्श मिले तो उस पर आचरण नहीं करते। इसी कारण से उनमे आत्म-हत्या की प्रवृत्ति बढ़ रही है। उन्होंने कहा कि पूरी दुनिया में प्रति-वर्ष लगभग आठ लाख लोग आत्म-हत्या कर रहे हैं, जिनमे भारत के लोगों की संख्या एक लाख पैंसठ हज़ार है।नैदानिक मनोवैज्ञानिक डा गुलज़ार अहमद, डा संजीता रंजना तथा प्रो जया कुमारी ने भी अपने विचार व्यक्त किए। अतिथियों का स्वागत संस्थान के विशेष-शिक्षा विभाग के अध्यक्ष प्रो कपिल मुनि दूबे ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन प्रशासी पदाधिकारी सूबेदार संजय कुमार ने किया। मंच का संचालन प्रो संतोष कुमार सिंह ने किया।इस अवसर पर ,प्रो प्रीति कुमारी, प्रो मधुमाला, प्रो चंद्रा आभा तथा विशेष शिक्षक रजनीकांत समेत बड़ी संख्या में प्रतिभागी पुनर्वास-विशेषज्ञ,विशेष-शिक्षक तथा छात्रगण उपस्थित थे।
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