जितेन्द्र कुमार सिन्हा, पटना, 28 मई, 2024 ::हिन्दू संस्कृति को पुनर्जीवित करने की वीर सावरकर की कोशिश अकेला नहीं था, लेकिन भारतीय मानस पर उन्होंने दीर्घकालिक प्रभाव छोड़ा था, जिसका परिणाम आज भी दिख रहा है। वीर सावरकर के कार्य और गतिविधियां राष्ट्रवाद की परिभाषा को परिलक्षित करती है। लेकिन अपने लोग से ही वीर सावरकर को धोखा मिला था, फिर भी वे अडिग रहे। उनकी दृढ़ता और शक्ति को जानने की आवश्यकता है।महाराष्ट्र के नासिक स्थित भागूर में 28 मई 1883 को जन्मे, मुखर हिन्दू विचारधारा के जाने माने क्रांतिकारी वीर सावरकर सामाजिक चिंतक, समाज सुधारक, इतिहासकार, उपन्यासकार, कवि, राजनेता और संगठनकर्ता थे। वीर सावरकर को राष्ट्रीय स्वयंसेवक (RSS) से जुड़े नहीं रहने के बावजूद भी उनका नाम संघ परिवार में बेहद सम्मान के साथ लिया जाता है।भारत के स्वतंत्रता संग्राम में वीर सावरकर का अहम योगदान रहने के बावजूद भारत में उन्हें विलेन के तौर पर पेश किए जाते हैं। वीर सावरकर के संबंध में महात्मा गांधी ने कहा था कि “अंग्रेजों के खिलाफ उनकी रणनीति कुछ ज्यादा ही आक्रामक है।”वीर सावरकर मुश्किलों के समय डटे रहे थे और ब्रिटिश साम्राज्यवाद से लड़ते रहे थे। उन्होंने इंडिया हाउस और फ्री इंडिया सोसाइटी जैसी संस्थाओं के माध्यम से स्वतंत्रता संघर्ष में योगदान दिया था। उन्होंने हिन्दू महासभा के माध्यम से महत्वपूर्ण योगदान देते हुए स्वतंत्रता के बाद, भारत के प्रश्न पर अपने राजनीतिक विचार प्रस्तुत किये थे। उन्होंने भारतीय समाज की चुनौतियों, मसलन जाति व्यवस्था और विभाजन आदि पर भी अपना सुझाव रखा था।वीर सावरकर को लंदन में नासिक के कलेक्टर की हत्या के आरोप में 1910 में गिरफ्तार किया गया था। वीर सावरकर पर आरोप था कि उन्होंने लंदन से अपने भाई को एक पिस्टल भेजी थी, जिसका कलेक्टर की हत्या में इस्तेमाल किया गया था।वीर सावरकर 25 वर्षों तक किसी न किसी तरीके से अंग्रेजों की कैद में रहे थे। वीर सावरकर पर अंग्रेज अफसर की हत्या की साजिश रचने और भारत में क्रांति की पुस्तकें भेजने के दो अभियोगों में 25-25 वर्ष यानि 50 वर्ष की सजा सुनाई गई थी और वर्ष 1911 में उन्हें अंडमान निकोबार स्थित (काला पानी) सेल्युलर जेल में भेज दिया गया था। इस जेल में उन्हें कोठरी संख्या 52 में रखा गया था। काला पानी की विभीषिका, यातना और त्रासदी किसी नरक से कम नहीं था। अंडमान में अफसर बग्घी से चला करते थे और राजनीतिक कैदी द्वारा बग्घियों को खींचा जाता था, जबकि वहां का रास्ता बहुत खराब रहता था। ऐसी स्थिति में अगर कोई कैदी बग्घी को खींच नहीं पाता था तो उसे मारा-पीटा जाता था और गालियाँ दी जाती थी। वीर सावरकर ने इसे भोगा था। इसी जेल में उनके बड़े भाई गणेश भी थे, किंतु एक जेल में रहने के बावजूद दो साल तक दोनों भाई आपस में मिल भी नहीं सके थे।स्वतंत्रता संग्राम में वीर सावरकर का अहम योगदान को झुठलाया नहीं जा सकता है। भारत में वीर सावरकर के व्यक्तित्व का गलत आकलन और उनकी मृत्यु के इतने वर्षों बाद भी उनका उपहास उड़ाने वालों की आलोचना अंग्रेजों को लिखे माफीनामे को लेकर किया जाता है। सेल्युलर जेल में वे उन्हें इतना प्रताड़ित किया जाता था कि उन्होंने 9 वर्षों में 6 बार अंग्रेजों को माफीनामा लिखा था। वीर सावरकर ने अपनी आत्मकथा में लिखा था कि अगर मैंने जेल में हड़ताल की होती तो मुझसे भारत पत्र भेजने का अधिकार छीन लिया जाता।वरिष्ठ पत्रकार राम बहादुर राय ने भगत सिंह और वीर सावरकर में बहुत मौलिक अंतर बताते हुए लिखा था कि जिस दिन भगत सिंह ने संसद में बम फेंकने का फैसला लिया था उस दिन उन्होंने तय कर लिया था कि उन्हें फांसी के फंदे पर झूलना है। उसी प्रकार वीर सावरकर एक चतुर क्रांतिकारी मानते हुए लिखा था कि उनकी सोच थी कि आजादी के लिए भूमिगत रहकर काम किया जाए। उनका कहना था कि सावरकर ने ये नहीं सोचा कि उनकी माफी मांगने से लोग उनके बारे में क्या सोचेंगे। उनका मानना था कि अगर वो जेल से बाहर रहेंगे तो जो करना चाहते हैं वह कर सकते हैं।वीर सावरकर ने न यातना भोगते हुए भी अंडमान की जेल में बंद सश्रम कारावास काट रहे बंदियों पर हो रहे अत्याचारों और क्रूरतापूर्ण व्यवहार के बारे में अपने अनुभव को ‘काला पानी’ नामक एक उपन्यास में भी लिखा है। वीर सावरकर ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक डॉक्टर हेडगेवार से मुलाकात के बाद हिंदुओं में फैले अनाचार और कुरीतियों के खिलाफ जंग छेड़ी थी।वर्ष 2000 में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार द्वारा वीर सावरकर को भारत रत्न देने का प्रस्ताव भेजा गया था। इस प्रस्ताव को राष्ट्रपति केआर नारायणन ने अस्वीकार कर दिया था।वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वर्ष 2014 में जब पहलीबार प्रधानमंत्री बने थे तो उन्होंने प्रधानमंत्री पद का शपथ 26 मई 2014 को लिया था। इस दिन वीर सावरकर की 131वीं जन्म तिथि थी। वीर सावरकर ने 26 फरवरी 1966 को अंतिम सांस ली थी l
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