पटना, २३ दिसम्बर। तरुणाई से मृत्यु तक वे अपने सीने में, अग्नि का पोषण करते रहे। क्रांति और विद्रोह की एक ज्वाला उनके हृदय में सदा धधकती रही। उनके भीतर जल रही वही अग्नि उनकी लेखनी से ऐसे साहित्य का सृजन करती रही, जिसने न केवल स्वतंत्रता-आंदोलन के अमर सिपाहियों को ऊर्जा दी, बल्कि साहित्य संसार का अनमोल धरोहर बन गया। वह अग्नि-पोषक साहित्यकार रामवृक्ष बेनीपुरी, जिन्हें हिन्दी-संसार, ‘कलम के जादूगर’ के नाम से जानता है एक महान क्रांतिकारी, अद्भुत प्रतिभा के साहित्यकार, प्रखर वक़्ता, मनीषी संपादक, दार्शनिक चिंतक, राजनेता और संघर्ष के पर्यायवाची व्यक्तित्व थे।यह बातें सोमवार को बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में बेनीपुरी जयंती पर आयोजित पुस्तक लोकार्पण समारोह एवं कवि-सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही।
डा सुलभ ने कहा कि, बेनीपुरी जी छात्र-जीवन से ही स्वतंत्रता-आंदोलन में कूद पड़े और उनकी अग्नि-शिखा सी लेखनी का मुख अंग्रेज़ों और शोषक समुदाय के विरुद्ध खुल गया। परिणाम में जेल की यातनाएँ मिली। वे विभिन्न जेलों में लगभग ९वर्ष बिताए। किंतु जेल-जीवन को भी उन्होंने साहित्य का तपो स्थली बना लिया। जब-जब जेल से निकले, उनके हाथों में अनेकों पांडुलिपियाँ होती थी। ‘क़ैदी की पत्नी’, ‘ज़ंजीरें और दीवारें’, ‘गेहूँ और गुलाब’ तथा ‘पतितों के देश में’ जैसी उनकी बहुचर्चित पुस्तकें जेल में हीं लिखी गईं। उन्होंने साहित्य की सभी विधाओं को अपनी विपुल लेखनी से समृद्ध किया, जिनमें नाटक, उपन्यास, काव्य, निबन्ध, आलोचना और साहित्यिक-संपादन सम्मिलित हैं। वे दो बार विधायक भी चुने गए। हिन्दी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष भी रहे। उनके ही कार्य-काल में सम्मेलन-भवन के निर्माण का कार्य पूरा हुआ।समारोह का उद्घाटन करते हुए, सिक्किम के पूर्व राज्यपाल गंगा प्रसाद जी ने कहा कि बेनीपुरी जी एक बदे साहित्यकार और स्वतंत्रता आंदोलन के एक महान योद्धा भी थे। उनके भीतर एक वेचैन क्रांतिकारी और बलिदानी निवास करता था । पूर्व राज्यपाल ने इस अवसर पर वरिष्ठ कवयित्री डा मीना कुमारी परिहार ‘मान्या’ की चार पुस्तकों ‘मेरी कलम मेरे जज़्बात’, ‘मान्या पुष्पांजलि’, हक़ीक़त-ए-बयां’ तथा ‘शब्दों में सिमटे दिलकश जज़्बात’ का लोकार्पण भी किया।पुस्तक पर अपने विचार व्यक्त करते हुए वरिष्ठ कवि भगवती प्रसाद द्विवेदी ने कहा कि लोकार्पित पुस्तकों की कवयित्री डा मीना कुमारी परिहार एक अत्यंत परिश्रमी साहित्यकार हैं। गद्य और पद्य की विविध विधाओं में इन्होंने बहुत ही श्रमपूर्वक लिखा है। इन्हें राष्ट्रीय स्तर पर सम्मान प्राप्त है। इनकी प्रतिभा बहुमुखी और बहु-आयामी है। इसलिए अपेक्षा की जाती है कि इनकी लेखनी निरन्तर चलती रहेगी।सम्मेलन के वरीय उपाध्यक्ष जियालाल आर्य, वरिष्ठ लेखिका ममता मेहरोत्रा, डा शंकर प्रसाद, डा मधु वर्मा, डा जंग बहादुर पाण्डेय, डा कल्याणी कुसुम सिंह, डा जनार्दन मिश्र, डा बलराज ठाकुर, डा पूनम आनन्द, डा पुष्पा जमुआर , आनन्द किशोर मिश्र आदि ने भी अपने विचार व्यक्त किए। इस अवसर पर आयोजित कवि-सम्मेलन का आरंभ चंदा मिश्र की वाणी-वंदना से हुआ। वरिष्ठ कवि बच्चा ठाकुर, शुभचंद्र सिंहा, प्रो सुनील कुमार ऋचा वर्मा, रामनाथ राजेश, जय प्रकाश पुजारी, कमल नयन श्रीवास्तव, संगीता मिश्र, अमीना ख़ातून, अनीता प्रसाद, ब्रजेंद्र कुमार सिन्हा, डा रमाकान्त पाण्डेय, सिद्धेश्वर, पं गणेश झा, ई अशोक कुमार, नूतन सिंहा, संध्या साक्षी, सूर्य प्रकाश उपाध्याय, अरुण कुमार श्रीवास्तव, अरुण कुमार श्रीवास्तव, ज्योत्सना प्रसाद, अनुपमा सिंह, सुनीता रंजन, अश्मजा प्रियदर्शिनी, नरेन्द्र कुमार, शंकर शरण आर्य, प्रवीण कुमार श्रीवास्तव, प्रमोद कुमार आदि कवियों और कवयित्रियों ने अपनी काव्यांजलि अर्पित की। मंच का संचालन कवि ब्रह्मानन्द पाण्डेय ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन कृष्णरंजन सिंह ने किया।सम्मेलन के अर्थमंत्री प्रो सुशील झा, प्रभात कुमार सिन्हा, डा मनोज गोवर्द्धन पुरी, डा उदय राज, अरविन्द कुमार सिंह, उत्तरा सिंह, प्रेमलता सिंह राजपुत, डा शालिनी पाण्डेय, प्रमोद कुमार प्रेमी, नीता सहाय, डा आशा कुमारी, डा सुनील कुमार ‘प्रियबच्चन’, डा प्रेम प्रकाश, डा उदय राज, कमल किशोर वर्मा ‘कमल’, नीरव समदर्शी, डा चंद्र शेखर आज़ाद आदि बड़ी संख्या प्रबुद्ध जन उपस्थित थे।