आरा – आधुनिकीकरण की अंधी दौड़ में मानव ने अपने निजी हितों की पूर्ति के लिए एक ओर वृक्षों की अंधाधुंध कटाई की है तो दूसरी ओर पानी का बेतरतीब दोहन किया है जिसके कारण सतही जल, भूगर्भ जल एवं वर्षा जल का समुचित संचयन ,संरक्षण एवं संवर्धन नहीं हो पाता है।
जनसंख्या के बढ़ते दबाव एवं बढ़ती जरूरतों ने जल के प्रबंधन के ठोस एवं कारगर उपाय ढूंढने हेतु मानव समाज को सोचने पर विवश तथा प्रेरित किया है। फलत: आसन्न जल संकट की समस्या पैदा होने के पूर्व ही हमें बहुआयामी एवं बहुपयोगी पानी की बर्बादी को रोके तथा पानी के प्रबंधन की आधुनिक वैज्ञानिक तकनीक का प्रयोग करें ।यह बातें यूनिसेफ के प्रतिनिधियों ने आरा के चंदवा अवस्थित रिजॉर्ट में जल संरक्षण पर आयोजित कार्यशाला में कही। इसके पूर्व जिलाधिकारी श्री रोशन कुशवाहा एवं उप विकास आयुक्त श्री शशांक शुभंकर द्वारा संयुक्त रूप से दीप प्रज्वलित कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया गया । इस अवसर पर जिलाधिकारी ने अपने संबोधन में जिले के तमाम लोगों के सक्रिय सहयोग एवं सहभागिता से व्यापक जन जागरूकता अभियान चलाने तथा सरकारी एवं गैर सरकारी स्तर पर जल संरक्षण अभियान को व्यापक स्वरूप प्रदान करने की आवश्यकता पर बल दिया ।उन्होंने उपस्थित
प्रशिक्षणार्थियों से कार्यशाला में यूनीसेफ के विशेषज्ञ ट्रेनर के ज्ञान एवं अनुभव का लाभ उठाकर समाज में जल संरक्षण की दिशा में सामूहिक एवं पुनीत प्रयास करने एवं इसे गति प्रदान करने को कहा। उप विकास आयुक्त श्री शशांक शुभंकर ने कहा की महाराष्ट्र राजस्थान चेन्नई की भौगोलिक परिस्थिति एवं आवश्यकता के अनुरूप जल की उपलब्धता एवं गुणवत्ता में विविधता दृष्टिगोचर होती है जो बिहार जैसे राज्य से भिन्न परिस्थितियां परिलक्षित होती है। उन्होंने कहा की यद्यपि सरकारी विभागों द्वारा जल संरक्षण हेतु विविध प्रकार के कार्य किए जा रहे हैं किंतु वर्तमान परिदृश्य में समाज के सभी लोगों के सामूहिक प्रयास की जरूरत है। यूनिसेफ के प्रतिनिधियों ने वर्तमान बदले परिदृश्य में जल संकट का सामना करने हेतु आधुनिक वैज्ञानिक तकनीक का इस्तेमाल कर पानी की बर्बादी को रोकने सतही जल भूगर्भ जल एवं वर्षा जल के संरक्षण हेतु हर व्यक्ति एवं हर घर तथा सरकारी/ गैर सरकारी सभी स्तरों पर संयुक्त सहभागिता एवं जनमानस को जगाने हेतु व्यापक जनांदोलन की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने बतलाया कि जल स्रोत को मजबूत करने के लिए परंपरागत तरीका के रूप में लूज बोल्डर संरचना, गैवियन संरचना, मिट्टी का नाला , भूमिगत बांध ,सीमेंट चेक बांध, तालाब, कुएं में पानी डालना , बोरवेल में पानी डालना आदि है। जबकि और अपरंपरागत तरीका के रूप में फ्रैक्चर सील सीमेंटेशन जैकेट वेल स्टीम ब्लास्टिंग बोर विस्फोट हाइड्रोफ्रेक्चरिंग तकनीक भांप विक्सन, छत पर वर्षा जल का संग्रहण आदि है। उन्होंने कहा की चापाकल ट्यूबेल कुएं के पास जल संरक्षण हेतु सोक पिट का निर्माण करना आवश्यक है । सोक पीट बनाने की सरल एवं सहज तकनीक की भी जानकारी दी। कार्यशाला में जल संरक्षण पर आधारित वृतचित्र को भी प्रदर्शित किया गया तथा जल के बहुआयामी एवं बहुपयोगी आवश्यकता को रेखांकित किया गया। कार्यशाला में डीआरडीए डायरेक्टर प्रमोद कुमार, स्वच्छ भारत प्रेरक श्री निखिल कुमार, यूनिसेफ के श्री राजीव कुमार, श्री उदय पतंकर, श्रीम महेश कौडगिरी, श्री चंद्रकांत तरखेडकर , सहित जिला एवं प्रखंड स्तरीय अधिकारी उपस्थित थे।
बिहार, ब्यूरो