पटना 9 अगस्त, 20.अखिल भारतीय कांग्रेस कमिटी, रिसर्च विभाग ने समसामयिक मुद्दों पर चर्चा करने के लिये एक फोरम होस्ट किया जो कि पर्यावरण प्रभाव मूल्यांकण सूचना 2020 (इआइए 2020) के मसौदे पर चर्चा के लिए था। इस फोरम को माननीय राज्य सभा सांसद एवं पूर्व केन्द्रीय मंत्री डा0 जयराम रमेश द्वारा सम्बोधित किया गया तथा रिसर्च विभाग के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रो0 राजीव गौड़ा द्वारा संचालित किया गया।
जयराम रमेश ने स्पष्ट किया कि वर्त्तमान इआइए पर्यावरण की कीमत पर बड़े व्यापारिक सरोकारों को प्राथमिकता देती है। हम बिगड़ते जलवायु संकट के बीच हैं। दुनिया भर में सरकारें पर्यावरण संरक्षण कानून को मजबूत करने के लिए प्रयास कर रही है, लेकिन भारत इसके विपरीत चल रहा है। प्रस्तावित इआइए 2020 के माध्यम से सरकार पर्यावरण सुरक्षा को भेदना चाह रही है। अगर यह मसौदा प्रभाव में आता है तो बिना सार्वजनिक परामर्श के कई विषय और पर्यावरण के दृष्टि से खराब होने वाले उद्योगों को स्थापित करने की अनुमति मिल जायेगी। प्रस्तावित इआइए 2020 घटनोत्कर स्वीकृति (पोस्ट फैक्टो क्लीयरेंस) प्रदान करता है जिसका अर्थ है कोई भी प्रदुषणकारी इकाइयां स्थापित की जा सकती है मात्र एक छोटे शुल्क के भुगतान के पश्चात वह अपने अपरेशन को जारी रख सकता है जो एक विनाशकारी कदम होगा। श्री जयराम रमेश ने कहा कि प्रस्तावित इआइए भारत में पर्यावरण संरक्षण ढाँचे को कमजोर करने के लिए 2014 के पश्चात मोदी सरकार का अगला कदम है, जिसने पर्यावरण की कीमत पर व्यवसाय करने में असानी को लगातार प्राथमिकता दी है। बिना इस एहसास के कि पर्यावरण संरक्षण राष्ट्र के दृघकालिक हितों के लिए आवश्यक है। यह मोदी सरकार के पाखण्ड का एक उदाहरण है।
सत्र के दौरान बारह वर्ष के एक युवक वैभव ने पोस्ट फैक्टो क्लीयरेन्स पर अपनी चिन्ताओं को जताया तथा विधायकों तथा कार्यकर्त्ताओं से इसपर तत्काल हस्तक्षेप की माँग की।
यह मसौदा एक जनविरोधी कदम है क्योंकि कर्नाटक उच्च न्यायालय के निर्देश के बावजूद क्षेत्रीय भाषाओं में इसका अनुवाद नहीं कराया गया। यह मसौदा मात्र हिन्दी एवं अंग्रेजी में ही उपलब्ध है। प्रभावित समुदायों के विचारों को भी इसमें जोड़ने का प्रयास नहीं हुआ। जल, जीवन एवं वायु की गुणवत्ता को अगर एकबार नुकशान पहुँचे तो उसकी भरपाई संभव नहीं है। पर्यावरण में गिरावट का कारक बनना एक अपराध है। इआइए 2020 का संविदा इसकी रक्षा करता नहीं दिख रहा है। पारिस्थिकी तंत्र, वन्यजीवन, मानवशास्त्र अकसर अपरिवर्त्तनीय होता है श्री रमेश ने कहा कि अगर यह संविदा अस्तिव में आता है तो निसंदेह सरकार का एक अपरिपक्व निर्णय होगा।
आर्थिक प्रगति एवं पारिस्थिकी संतुलन हमेशा से एक चुनौती रहा है। पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इन्दिरा गाँधी इसके प्रति सदैव सजग रहती थी तथा समय-समय पर अपने सहयोगियों और मुख्यमंत्रियों से भी संवाद करती थी। लेकिन वर्त्तमान सरकार इस मामले में कतई गंभीर नजर नहीं आती। क्या वे नहीं समझते कि प्रकृति से छेड़छाड़ पूरे मानवता को संकट में ला सकता है। उन्होंने बताया कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 51ए(जी) यह बताता है कि प्रत्येक नागरिक का यह मौलिक कतर्व्य होगा कि वनों, झीलों, नदियों और वन्यजीवन सहित प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा करे एवं जीवों के प्रति दया का भाव रखे लेकिन इआइए 2020 का संविदा नागरिकों के इस अधिकार का हनन करता है। भारत सरकार ने इसके विरूद्ध आपत्ति दर्ज करने की अंतिम तिथि 11 अगस्त रखी है। भारत का कोई भी नागरिक पर्यावरण सचिव को सीधे अपना विचार लिख सकता है अथवा मपं2020.उवममिब/हवअण्पद पर मेल कर सकता है। जयराम रमेश जी ने यह भी बताया कि जनहित याचिका के माध्यम से न्यायालय की शरण में भी इस इआइए 2020 के खिलाफ भी जाया जा सकता है क्योंकि यह मूल कानून पर्यावरण सुरक्षा कानून अधिनियम 1986 के विरूद्ध है।
बिहार प्रदेश कांग्रेस कमिटी रिसर्च विभाग के चेयरमैन आनन्द माधव एवं क्षेत्रीय समन्वयक सुश्री मधुबाला ने भी डा0 गौड़ा के साथ श्री जयराम रमेश के साथ संवाद स्थापित किया। इस बैठक में 400 से अधिक लोगों ने देश-विदेश से भाग लिया तथा सबों ने एक स्वर में इस बात को स्वीकार किया कि या तो इआइए 2020 के मसौदे को तत्काल रद्द किया जाय अन्यथा यह भारत में पारिस्थिकी संतुलन के लिए एक बड़ा खतरा बनेगा। इस बहस में सौम्या रेड्डी (विधायक, कर्नाटका) आलोक जगधारी, वरूण संतोष, सौम्या, सौरभ सिन्हा, दीपाली शिकंड, आकाश सत्यावली, लेनी जाधव, पंकज यादव, नीरज कुमार, सोनाली, बी0 रामाप्रसाद अल्वा आदि ने भाग लिया।
शैलेश तिवारी की रिपोर्ट.