दिल्ली से कौशलेन्द्र पराशर और बंगाल से उमर फारूक की रिपोर्ट, देश में पांच राज्यों में एक साथ विधानसभा चुनाव हो रहे हैं लेकिन सबसे ज्यादा चर्चा में पश्चिम बंगाल की है. बीजेपी , टीएमसी और कांग्रेस-लेफ्ट फ्रंट के बीच त्रिकोणीय मुकाबले ने राजनीतिक विश्लेषकों के लिए भी मुश्किल पैदा कर दी है. राज्य में वोटों का गणित साधने में सभी पार्टियां जुटी हैं लेकिन कुछ समुदाय ऐसे हैं जिन पर सबकी निगाहें हैं. सबसे ज्यादा बातें मुस्लिम मतों को लेकर हो रही है जिनकी संख्या राज्य में लगभग 30 प्रतिशत के आस-पास है. लेकिन राजनीतिक पार्टियों के लिए इसके अलावा दो समुदाय ऐसे हैं जिनके वोट पर सबकी निगाहें हैं. ये समुदाय हैं दलित और आदिवासी.2011 की जनगणना के मुताबिक राज्य में आदिवासी समुदाय की जनसंख्या तकरीबन 53 लाख है. ये राज्य की कुल आबादी का करीब 5.8 प्रतिशत है. वहीं राज्य में दलित समुदाय की जनसंख्या 2.14 करोड़ है. ये कुल आबादी का करीब 24 प्रतिशत हिस्सा है. यानी पूरे राज्य की आबादी का करीब 30 फीसदी हिस्सा ये दोनों समुदाय हैं.इन जगहों पर अधिक है आदिवासी-दलित आबादी.राज्य में आदिवासी आबादी ज्यादातर दार्जिलिंग, जलपाईगुड़ी, अलीपुरद्वार, दक्षिणी दिनाजपुर, पश्चिमी मिदनापुर, बांकुड़ा और पुरुलिया में है. आदिवासी समुदाय के लिए 16 सीटें रिजर्व हैं. वहीं दलित समुदाय राज्य की करीब 68 सीटों पर सघन रूप से फैला हुआ है. इसके अलावा भी अन्य सीटों पर उसका छिटपुट प्रभाव है.बीजेपी की जीत में रहा था बड़ा रोल. सौरभ निगम, राजनीतिक एक्सपर्ट्स के मुताबिक 2019 लोकसभा चुनाव में बीजेपी की बड़ी जीत के पीछे इन दोनों समुदाय का बड़ा हाथ था. पार्टी ने राज्य की 42 में से 18 सीटों पर जीत हासिल की थी जिसे अप्रत्याशित सफलता माना गया था.सभी के लिए महत्वपूर्ण हैं ये दोनों समुदाय,यही वजह है कि राज्य में सभी पार्टियां इन दोनों समुदाय पर नजरें गड़ाए हुए हैं. पारंपरिक रूप से मुस्लिम बीजेपी के मतदाता नहीं माने जाते हैं. इस वजह से बीजेपी के लिए इन समुदायों के वोट का अधिक महत्व है. वहीं दूसरी पार्टियां के लिए भी इन समुदाय के वोट जीत पक्की करने में सबसे बड़ी भूमिका निभा सकते हैं. यही कारण है कि जैसे ही बीजेपी ने मटुआ समुदाय में अपनी पकड़ मजबूत की तो तृणमूल ने भी अपने नेताओं को समुदाय के बीच भेजा. राज्य में पहले चरण की वोटिंग में अब दस दिन भी नहीं बचे हैं. सभी पार्टियां पूरी ताकत झोंक रही हैं. ऐसे में इन दो समुदायों को अपने साथ लेकर जीत पक्की करने के लिए सभी की निगाहें वोट पर लगी हैं.