प्रियंका भारद्वाज की रिपोर्ट /राजनीति में एक सुदृढ़ साहित्यिक हस्तक्षेप थे डा शैलेंद्र नाथ श्रीवास्तव,जयंती पर साहित्य सम्मेलन में आयोजित हुई कवि गोष्ठी, कवि घनश्याम को दिया गया स्मृति-सम्मान. बहुआयामी सारस्वत व्यक्तित्व के धनी थे डा शैलेंद्र नाथ श्रीवास्तव। वे एक महान शिक्षाविद, समर्थ साहित्यकार, लोकप्रिय राजनेता, कला-संस्कृति के महान पोषक एवं अनेक मानवीय गुणों से युक्त साधु-पुरुष थे। ज्ञान-प्रभा से दीप्त उनका मुख-मण्डल सदैव स्निग्ध मुस्कान से खिला रहता था, जो सहज हीं सबको आकर्षित करता था। वे, आज की बेलगाम और दूषित होती जा रही राजनीति में एक सुदृढ़ साहित्यिक हस्तक्षेप थे।यह बातें, शनिवार को, बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन में आयोजित जयंती-समारोह और कवि-गोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। डा सुलभ ने कहा कि, शैलेंद्र जी यह मानते थे कि, देश की राजनीति को शुद्ध किए बिना कुछ भी अच्छा नहीं किया जा सकता है। सार्वजनिक-सेवा के सभी पदों पर, गुणी और विवेक-संपन्न व्यक्तियों का चयन होना चाहिए। अयोग्य और निष्ठा-हीन व्यक्तियों के हाथ में अधिकार जाने से समाज का बड़ा अहित होता है। इसके लिए वे संस्कार प्रदान करने वाली और चरित्रवान बनाने वाली शिक्षा के पक्षधर थे। इसीलिए वे एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण सांस्कृतिक संस्था ‘संस्कार भारती’ के राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में संपूर्ण भारत वर्ष में, नयी पीढ़ी को जगाते रहे और उनमें चरित्र और संस्कार के बीज बोते रहे। तिलका माँझी विश्वविद्यालय के कुलपति तथा अंतरविश्वविद्यालय बोर्ड के अध्यक्ष के रूप में उन्होंने अपने शैक्षणिक-प्रशासन-कौशल का भी परिचय दिया। उनके इन्ही सदगुणों के कारण उन्हें भारत सरकार ने पद्म-अलंकरण से विभूषित किया। अनेक प्रकार की व्यस्तताओं के बीच भी उन्होंने लेखन के लिए समय निकाला और अपनी दर्जन भर प्रकाशित पुस्तकों से हिंदी का भंडार भरा। वे एक अधिकारी निबंधकार, कवि और जीवनीकार थे। उनके साहित्य पर लिखते हुए महान साहित्यसेवी प्रभाकर माचवे ने कहा था कि, “शैलेंद्र जी नौ रसों के हीं नहीं, दसवें रस, ‘व्यर्थ-रस’ के भी समर्थ साहित्यकार हैं, जो व्यर्थ के संदर्भों को भी रसमय बना देते हैं।”इस अवसर पर, वरिष्ठ कवि श्री घनश्याम को इस वर्ष का ‘डा शैलेंद्र नाथ श्रीवास्तव स्मृति-सम्मान से अलंकृत किया गया। समारोह के उद्घाटन-कर्ता और पटना उच्च न्यायालय के माननीय न्यायाधीश न्यायमूर्ति संजय कुमार ने श्री घनश्याम को अंग-वस्त्रम, प्रशस्ति-पत्र तथा पाँच हज़ार एक सौ रु की राशि देकर सम्मानित किया। अपने उद्घाटन संबोधन में न्यायमूर्ति ने कहा कि शैलेंद्र जी से किशोरवय से ही मेरा घनिष्ठ संबंध रहा।उनसे मार्ग-दर्शन पाया। उनका व्यक्तित्व अत्यंत आकर्षक था। एक प्राध्यापक और साहित्यकार के रूप में उनकी बड़ी ख्याति थी। उनके व्याख्यान-कौशल से सभी प्रभावित रहते थे। उनके विद्यार्थी कक्षा में आने की प्रतीक्षा करते थे।समारोह के मुख्य अतिथि और पटना विश्व विद्यालय के पूर्व कुलपति डा एस एन पी सिन्हा ने उन्हें एक अत्यंत धवलछवि का राजनीतिज्ञ और आदरणीय शिक्षाविद बताया। सम्मेलन के उपाध्यक्ष नृपेंद्र नाथ गुप्त, डा मधु वर्मा, कृष्ण रंजन सिंह ने भी अपने उद्गार व्यक्त किए।इस अवसर पर आयोजित कवि-सम्मेलन का आरम्भ चंदा मिश्र की वाणी-वंदना से हुआ। वरिष्ठ कवि और सम्मेलन के उपाध्यक्ष मृत्युंजय मिश्र ‘करुणेश’ ने अपनी ग़ज़ल को स्वर देते हुए कहा कि, “जब वो भर-भर के भी उभर जाए/ क्या ज़रूरी कि ज़ख़्म भर जाए/ दिल भी तैयार उफ़ न करने को/ दर्द भी काम अपना कर जाए”। कवयित्री आराधना प्रसाद की इन पंक्तियों पर सम्मेलन सभागार देर तक तालियों से गूंजता रहा कि “आपकी हद तलाश करते हैं/ और दिल पाश पाश करते हैं/ जानते हैं न वक्त लौटेगा/ फिर भी हम काश-काश करते हैं”।डा शंकर प्रसाद का कहना था कि “कलेजा चीरकर जो रख दिया करते/ सिमटकर बाहों में समझा गया बादल”। व्यंग्य के कवि ओम् प्रकाश पाण्डेय ने कहा – “एक दूसरे से थे बेहद जले-जले/ खिल गए मिल गए गिर-गिर कर गले-गले।”वरिष्ठ कवि रमेश कँवल, कुमार अनुपम, रागिनी सिन्हा, डा मेहता नगेंद्र सिंह, जयदेव मिश्र, डा विनय कुमार विष्णुपुरी, रमा सिन्हा, राज कुमार प्रेमी, रानी सुमिता, विनोद कुमार झा, जय प्रकाश पुजारी, एकलव्य केसरी, पं गणेश झा, अर्जुन प्रसाद सिंह, अजय कुमार सिंह, चितरंजन भारती, शिवानंद गिरि, डा कुंदन सिंह, अश्विनी कविराज ने भी अपनी रचनाओं से ख़ासा प्रभाव छोड़ा। मंच का संचालन कवि सुनील कुमार दूबे ने किया।