सोमा राजहंस, कंसल्टिंग एडिटर/वजहें चाहे जो भी हो लेकिन कांग्रेस हाल के दिनों में खूब सुर्खियां बटोर रहा है। एक वक्त ऐसा भी लगने लगा था कि कांग्रेस मानो कहीं किसी नेपथ्य में गुम सी हो गई है। इन दिनों प्रचंड बहुमत वाली सरकार का ट्रेंड चल रहा है, लोकसभा हो या विधानसभा का चुनाव जनता विपक्ष के लिए कोई गुंजाइश ही नहीं छोड़ना चाहती है। लोकतंत्र में एक मजबूत विपक्ष का होना उतना ही आवश्यक है जितना की एक मजबूत सरकार का होना। अब ये संतुलन कैसे बन सकता है इसके बारे में भी जनता को गंभीरतापूर्वक विचार करने की आवश्यकता है।कांग्रेस में कन्हैया कुमार, जिग्नेश मेवानी जैसे युवा नेता शामिल हुए हैं। ऐसा लगने लगा है कि कांग्रेस अब अपने जीर्ण-शीर्ण सिस्टम मेंबड़ा बदलाव लाने के लिए मन बना चुकी है। इसमें कोई शक नहीं की कांग्रेस की बुनियाद मजबूत है लेकिन बहुत पुरानी इमारत को भी renovation यानि की नवीकरण करने की जरूरत होती है। कांग्रेस की सबसे बड़ी कमजोरी यही रही कि इस नवीकरण शब्द का महत्व समझने में उसको कई साल लग गए खैर..देर से ही सही दुरुस्त कर लें तो अच्छी बात है।कन्हैया कुमार ने स्पीच में बार-बार भगत सिंह, गांधी और आंबेडकर का लिया। चंद्रेशेखर आजाद से लेकर मौलाना अबुल कलाम आजाद और फिर नेहरू का नाम भी लिया। गांधी जी और भगत सिंह के बीच में भले वैचारिक मतभेद रहा हो लेकिन कन्हैया कुमार ने एक कुशल राजनीतिज्ञ की तरह इन दोनों का बार-बार नाम लेकर एक इमोशनल टच देने का काम किया। कन्हैया कुमार अच्छे वक्ता हैं, हिंदी में अपनी बातों को रखने में विश्वास करते हैं, उनके भाषणों का ठेठ देसी अंदाज लोगों को खूब लुभाता है और सबसे बड़ी बात की आत्मविश्वास के संग हाजिरजवाबी की कला में माहिर हैं।अब कांग्रेस कन्हैया कुमार का इस्तेमाल कितने अच्छे तरीके से कर पाती है ये देखना दिलचस्प हो सकता है। कन्हैया कुमार लोकप्रिय हैं और जितनी तादाद उनके विरोधियों की है उससे कम समर्थक भी नहीं है। कांग्रेस को एक नौजवान चेहरा मिला है और जैसा कि कन्हैया ने बताया कि उनका राजनीतिक करियर काफी लंबा रहा है और उन्होंने छात्र राजनीति में खुद को तपाया भी है। कन्हैया के ही एक और साथी जिग्नेश मेवानी जो कि गुजरात से निर्दलीय विधायक हैं उन्होंने भी आज कांग्रेस का दामन थाम लिया है। जिग्नेश भी एक सामान्य पृष्ठभूमि से आते हैं और अपने संघर्ष के दम पर उन्होंने अपनी राजनीतिक पहचान बनाई है।मुमकिन है कि शुरुआती दिनों में कन्हैया और जिग्नेश को कांग्रेस की कार्य संस्कृति में खुद को ढालने में परेशानी का सामना करना पड़ सकता है। ये भी संभव है कि कांग्रेस को भी ऐसे युवा नेता जिन्हें विरासत में राजनीति नहीं मिली है उनके साथ सामंजस्य स्थापित करने में कुछ दिक्कतें हों।कांग्रेस के ही एक नेता हैं मनीष तिवारी, ये वहीं साहेब हैं जो हार के डर से लोकसभा चुनाव नहीं लड़ पाए लेकिन इनको राज्यसभा में जगह चाहिए। हां तो मनीष तिवारी ने कन्हैया के कांग्रेस ज्वाइन करने पर भारी एतराज जता दिया है। अब कन्हैया और जिग्नेश की जोड़ी कांग्रेस में कुछ करिश्मा कर पाते हैं कि नहीं इसके बारे में तो आने वाला वक्त ही बताएगा।भाजपा ने जेएनयू के पूर्व छात्र और भाकपा नेता कन्हैया कुमार को पार्टी में शामिल करने के लिए कांग्रेस की आलोचना करते हुए कहा कि यह भारत विरोधी गतिविधियों में शामिल लोगों के लिए एक स्पष्ट विकल्प बन गया है। भाजपा प्रवक्ता गौरव भाटिया ने मंगलवार को कहा कि भारत विरोधी कांग्रेस कन्हैया कुमार जैसे लोगों के लिए एक स्पष्ट पसंद थी। जिनकी विचारधारा उनकी विचारधारा से मेल खाती है। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) के पूर्व छात्र नेता कन्हैया कुमार के कांग्रेस में शामिल होने पर टिप्पणी करते हुए भाटिया ने कहा कि भारत विरोधी विचारधारा के साथ कांग्रेस किसी भी व्यक्ति की स्वाभाविक पहली पसंद है। चाहे वह कन्हैया कुमार हो या कोई और। इसका कारण है कि आज, कांग्रेस पार्टी, उसका नेतृत्व और विचारधारा भारत विरोधी राजनीति के पर्यायवाची हैं। इस प्रकार कांग्रेस उनके जैसे नेताओं का स्वागत करती है जो ‘भारत तेरे टुकड़े होंगे’ के नारे लगाने वालों का समर्थन करने के लिए जाने जाते हैं। और उन लोगों को भी समर्थन देते हैं जो अफजल गुरु जैसे आतंकवादी का समर्थन करते हैं। कन्हैया कुमार के कश्मीर में महिलाओं से बलात्कार के पुरुषों के बारे में विवादास्पद बयान को याद करते हुए गौरव भाटिया ने कहा कि यह भारतीयों की भावनाओं को आहत करता है। प्रत्येक भारतीय को सेना पर गर्व है कि वे अखंडता के लिए सर्वोच्च बलिदान करते हैं। जब कोई नेता ऐसी अपमानजनक टिप्पणी करता है तो केवल एक ही जगह होती है जहाँ वह शरण लेता है। भाजपा की राष्ट्रीय युवा शाखा के सचिव तजिंदर पाल सिंह बग्गा ने भी भाकपा नेता कन्हैया कुमार को पार्टी में शामिल करने के लिए कांग्रेस की आलोचना की।