पटना, ५ सितम्बर। अपने यौवन-काल में ही, काव्य-रसिकों का कंठ-हार बन चुके प्रेम और ऋंगार के अद्भुत-प्रतिभा के कवि आचार्य श्यामनंदन किशोर, साहित्य की एक ऐसी विभूति थे, जिन्हें विधाता ने सर्वतोभावेन समृद्ध कर इस पुण्य-धरा पर भेजा था। उनका व्यक्तित्व जितना निर्मल, कोमल और सुदर्शन था, उनका स्वर भी उतना ही मीठा था। वे काव्य-कल्पनाओं में जितने निपुण थे, उतनी ही निपुणता उनकी प्रस्तुति में भी दिखाई देती थी। जितने प्रतिभाशाली अध्येता थे उतने ही प्रभावशाली वक्ता भी। वे एक ऐसे महान शिक्षक और कुलपति हुए, जिन्होंने अपने गुणों से संपूर्ण भारतीय समाज और शिक्षा जगत में ही नही, विदेशों में भी हिन्दी की कीर्ति फैलाई।
यह बातें, सोमवार को बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में, आहूत हिन्दी पखवारा एवं पुस्तक-चौदस मेला के पाँचवे दिन आयोजित आचार्य श्यामनंदन किशोर जयंती समारोह की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। उन्होंने कहा कि किशोर जी अनेक देशों के विश्वविद्यालयों में ‘अतिथि प्रवक्ता’ रहे। उन्हें ‘बिहार का हरिवंश राय बच्चन’ भी कहा जाता था। उनका यह गीत ‘जवानी जिसके जिसके पास/ ज़माना उसका उसका दास’ उस काल के युवाओं का संसर्ग-स्वर बन गया था। चमत्कृत करने वाली उनकी मेधा और काव्य-प्रतिभा ने उन्हें युवा-काल में ही देश के शीर्षस्थ कवियों एवं साहित्यकारों में अग्र-पांक्तेय कर दिया था। वस्तुतः वे जन्म-जात कवि और प्रज्ञावान साहित्यकार थे। पद्म-अलंकरण से विभूषित किशोर जी बिहार विश्वविद्यालय के कुलपति समेत अनेक सारस्वत संस्थाओं के प्राण थे।
इस अवसर पर, वरिष्ठ साहित्यकार मार्कण्डेय शारदेय के निबन्ध-संग्रह ‘सांस्कृतिक तत्त्वबोध’ का लोकार्पण भी किया गया। पुस्तक पर अपना विचार रखते हुए, संस्कृत और हिन्दी के मनीषी विद्वान भवनाथ झा ने कहा कि वर्तमान युग में जिस प्रकार मनुष्यता का क्षरण हो रहा है, उसे रोकने में, मार्कण्डेय जी का यह लोकार्पित ग्रंथ अत्यंत प्रभावी है। उन्होंने कहा कि सांप्रदायिक द्वेष-युक्त धारणाएँ, समाज के लिए अत्यंत घातक है। इस प्रकार की धारणाएँ धर्म और इतिहास के अर्थ को विरूपित कर रही हैं।
सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद, प्रो आर सी सिन्हा, डा मधु वर्मा, कवि बच्चा ठाकुर, कुमार अनुपम, निर्मला सिंह, डा शालिनी पांडेय, चंदा मिश्र, सदानंद प्रसाद, जय प्रकाश पुजारी, डा रेखा सिन्हा, डा विनय कुमार विष्णुपुरी, डा पंकज प्रियम तथा शुभचंद्र सिंहा ने भी अपने विचार व्यक्त किए। मंच का संचालन सुनील कुमार दूबे ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन कृष्णरंजन सिंह ने किया।
हिन्दी पखवारा के अंतर्गत आज सम्मेलन भवन में, ‘बाल-कवि सम्मेलन का आयोजन हुआ, जिसमें नन्हें बालक-बालिकाओं ने अपनी कविताओं से प्रबुद्ध-श्रोताओं का मन हर लिया। इनमे से अनेकों ने स्वरचित रचनाओं का पाठ किया। उत्तर उत्तरायण, कीर्त्यादित्य, अंशिका कुमारी,विशाल राज यादव, अतुल्य वैभव, शोभा कुमारी, प्रिंस कुमार सिंह, चिंटू कुमारी, लक्ष्मीकान्त , इंदु शुभंकरी आदि बाल-कवियों और कवयित्रियों ने विशेष प्रभाव छोड़ा
‘दस दिवसीय संस्कृत संभाषण शिविर’ के चौथे दिन आज संस्कृत में क्रिया-ज्ञान की शिक्षा दी गई तथा उसका व्यवहारिक-अभ्यास कराया गया। शिविर के मुख्य आचार्य डा मुकेश कुमार ओझा ने सरल-सरल पंक्तियों के निर्माण का अभ्यास कराया।
इस अवसर पर, अर्चना भारती, डा इंदु पांडेय, सरदार जगजीत सिंह, सरदार दिलीप पटेल, आनन्द मोहन झा, नरेंद्र देव, प्राण शंकर मजुमदार,धर्मेश मेहता, शिवानन्द गिरि, रुचिकांत ऋषि, बंदना प्रसाद आदि प्रबुद्धजन उपस्थित थे। कल पखवारा के ६ठे दिन दस बजे से ‘काव्य-कार्यशाला’ तथा ४ बजे से कवि-सम्मेलन आयोजित होगा।