पटना,१० अप्रैल। स्मृति-शेष साहित्यकार गिरिजा वर्णवाल एक विदुषी लेखिका ही नहीं एक आदर्श स्त्री भी थीं। उन्होंने एक कुशल गृहिणी की तरह अपने पति स्मृति-शेष साहित्यकार नृपेंद्र नाथ गुप्त के साहित्यिक व्यक्तित्व के उन्नयन में अमूल्य योगदान दिया। साहित्य और साहित्याकारों के प्रति उनका अनुराग भी अनुकरणीय था। दूसरी ओर संस्कृत समेत दक्षिण भारत की अनेक भाषाओं की निष्णात विदुषी डा मिथिलेश कुमारी मिश्र का जीवन तपस्विनी ऋषिकाओं के समान स्तुत्य था। दक्षिण भारत में हिन्दी भाषा के प्रचार-प्रसार में उनका अवदान भी अतुल्य है।यह बातें सोमवार को, दोनों विदुषी देवियों की स्मृति में बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में आयोजित समारोह की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। उन्होंने कहा कि, गिरिजा जी एक अत्यंत प्रतिभाशाली कवयित्री और निबंधकार थीं। उनकी शिक्षा-दीक्षा बनारस विश्वविद्यालय से हुई और उन्हें आचार्य हज़ारी प्रसाद द्विवेदी, डा नामवर सिंह, पं त्रिलोचन शास्त्री जैसे विद्वान आचार्यों से शिक्षा और साहित्य का ज्ञान प्राप्त हुआ। उनकी रचनाओं में उनकी प्रतिभा और विद्वता की स्पष्ट झलक मिलती है। उनकी विनम्रता और उनका आंतरिक सौंदर्य, उनके विचारों, व्यवहार और रचनाओं में अभिव्यक्त हुआ है। उनके व्याख्यान भी अत्यंत प्रभावशाली होते थे। उनके चेहरे पर सदा एक स्निग्ध मुस्कान खिलती रहती थी, जो उन्हें विशिष्ट बनाती थी।आरंभ में अतिथियों का स्वागत करते हुए, सम्मेलन के प्रधानमंत्री डा शिववंश पाण्डेय ने कहा कि मिथिलेश जी बहुभाषा-विद विदुषी थीं और दक्षिण भारत में उनकी लोकप्रियता ईर्षेय थी। संस्कृत, प्राकृत और अपभ्रंश पर भी उनका अधिकार था। उनका संपूर्ण जीवन साहित्य-सेवा और समाज-कल्याण को समर्पित रहा।इस अवसर पर चेन्नई से पधारीं हिन्दी की सुख्यात लेखिका और डा मिथिलेश कुमारी मिश्र की शिष्या डा आर कल्पना की, मिथिलेश जी पर ही केंद्रित पुस्तक ‘क्या परिचय दूँ तुम्हारा’ तथा मध्यप्रदेश से पधारे हिन्दी के राष्ट्रीय ख्याति के गीतकार डा देवेंद्र तोमर के दो गीत-संग्रह ‘मन बंदी क्या हुआ तुम्हारा’ तथा ‘मित्र तुम्हारा रुका हुआ है’ का लोकार्पण भी संपन्न हुआ।डा तोमर ने कहा कि मिथिलेश जी का व्यक्तित्व अत्यंत प्रभावशाली था। उनके आदेश को टालना कठिन था। उनका व्यवहार इतना आत्मीय था कि कोई उनसे विमुख हो ही नहीं सकता था। उनका समग्र व्यक्तित्व और कृतित्व आदरणीय था।डा तोमर ने अपनी लोकार्पित पुस्तक से गीतों का भी पाठ किया।अपने उद्गार में डा कल्पना ने कहा कि मिथिलेश जी का चेन्नई के हम जैसे साहित्याकारों से ऐसा घनिष्ठ संबंध हो गया था कि हम एक परिवार बन गए थे। हिन्दी के प्रति दक्षिण भारतीय साहित्यकारों को प्रेरित करने वाली वो एक अत्यंत आदरणीया विदुषी थीं, जिनके संबंध में कुछ भी कहना ‘सूरज को दिया दिखाना’ माना जाएगा।सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद, डा मधु वर्मा, कल्याणी कुसुम सिंह, वरिष्ठ साहित्यकार भगवती प्रसाद द्विवेदी, डा पुष्पा जमुआर, डा अशोक प्रियदर्शी, कुमार अनुपम, गिरिजा वर्णवाल जी के पुत्र विवेक कुमार गुप्त, हरीश साहस, श्रद्धा कुमारी, डा मनोज गोवर्द्धनपुरी, आचार्य विजय गुंजन, सदानंद प्रसाद, ब्रज बिहारी पाण्डेय, चंदा मिश्र, संजू शरण आदि ने भी अपने उद्गार व्यक्त किए। मंच का संचालन कवि ब्रह्मानन्द पाण्डेय ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन कृष्णरंजन सिंह ने किया।इस अवसर पर, सम्मेलन के अर्थ मंत्री प्रो सुशील कुमार झा, कलामंत्री डा पल्लवी विश्वास, डा विजय प्रकाश पाठक, वंदना प्रसाद, ई आनन्द किशोर मिश्र, तेजस्विता सुधा, उषा मिश्र,रामाशीष ठाकुर, अविनय काशीनाथ, अमन वर्मा, डा चंद्रशेखर आज़ाद, डा आसुतोष कुमार, रंजन कुमार, नन्दन कुमार मीत, अमित कुमार सिंह, नीलाभ कुमार मिश्र, डौली कुमारी, दिगम्बर जायसवाल, पवन सिंह आदि प्रबुद्धजन उपस्थित थे।