पटना, २० मार्च । पटना से सांसद रहे लोकप्रिय राजनेता प्रो शैलेंद्रनाथ श्रीवास्तव एक महान साहित्यकार, प्राध्यापक और राज नेता थे। एक व्यक्ति में इतने गुण विरल होते हैं। उनका व्यक्तित्व अत्यंत मोहक और प्रभावशाली था। उनका जीवन सादगी और कर्मठता से भरा हुआ था।
यह बातें, बुधवार को, बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में आयोजित जयंती-समारोह का उद्घाटन करते हुए, सिक्किम के पूर्व राज्यपाल गंगा प्रसाद ने कही। उन्होंने कहा कि शैलेंद्र जी सेवा की भावना से गहरे भरे हुए थे। समाज के बहु-मुखी उत्थान के लिए उनके द्वारा किए गए कार्य सदैव हम सबको प्रेरणा देते रहेंगे। समारोह के मुख्य अतिथि और राज्य उपभोक्ता संरक्षण आयोग, बिहार के अध्यक्ष न्यायमूर्ति संजय कुमार ने कहा कि प्रो शैलेंद्रनाथ श्रीवास्तव से बहुत निकट का संबंध था। उनके व्यक्तित्व से मैं सदा प्रभावित और प्रेरित होता रहा। उनके आलेख प्रायः ही समाचार पत्रों में छपा करते थे, जिन्हें पढ़कर मुझे ऊर्जा मिलती थी।
पटना विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो के सी सिन्हा ने कहा कि शिक्षा के क्षेत्र में उनके योगदान को भुलाया नहीं जा सकता। एक शिक्षक की भूमिका से लेकर कुलपति के रूप उनके कार्य सदा स्मरण किए जाते हैं। उनकी बहुमुखी प्रतिभा ने समाज को लाभान्वित किया। अनेक ऊँचे-ऊँचे पदों पर रहकर भी वे उतने ही विनम्र और सरल थे। उनका स्नेह हमें मिलता रहा। बिहार विधान परिषद की पूर्व सदस्या प्रो किरण घई ने अपने संस्मरणों को साझा करते हुए कहा कि अद्भुत व्यक्तित्व के स्वामी थे शैलेंद्र जी। अनेक गुणों से परिपूर्ण वे एक पूर्ण मनुष्य थे। मुझे अपनी छोटी बहन मानते थे। सबके साथ कैसे समन्वय किया जाए, अपने विरोधियों को भो कैसे अपना बना लिया जाए, यह गुण और कला उनमे थी। एक निष्काम कर्मयोगी की भाँति अपने सारे कार्य किए। इसीलिए वे सबके बीच लोकप्रिय रहे।सभा की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कहा कि, आदरणीय शैलेंद्र जी बहुआयामी सारस्वत व्यक्तित्व के धनी थे। वे एक महान शिक्षाविद, समर्थ साहित्यकार, लोकप्रिय राजनेता, कला-संस्कृति के महान पोषक एवं अनेक मानवीय गुणों से युक्त साधु-पुरुष थे। ज्ञान-प्रभा से दीप्त उनका मुख-मण्डल सदैव स्निग्ध मुस्कान से खिला रहता था, जो सहज ही सबको आकर्षित करता था। वे, आज की बेलगाम और दूषित होती जा रही राजनीति में एक सुदृढ़ साहित्यिक हस्तक्षेप थे। उनके सुंदर और प्रभावशाली व्यक्तित्व के समान ही उनकी वाणी, व्यवहार और व्याख्यान-कौशल भी मोहक थे। वे अपने मृदु और सरल व्यवहार से बड़ी सरलता से सबको अपना बना लेते थे। वे एक अधिकारी निबन्धकार, कवि और जीवनीकार थे। उनके साहित्य पर कभी लिखते हुए महान साहित्यसेवी प्रभाकर माचवे ने कहा था कि, “शैलेंद्र जी नौ रसों के ही नहीं, दसवें रस, ‘व्यर्थ-रस’ के भी समर्थ साहित्यकार हैं, जो व्यर्थ के संदर्भों को भी रसमय बना देते हैं।”सुप्रसिद्ध समाजसेवी पद्मश्री विमल जैन, सम्मेलन की उपाध्यक्ष डा मधु वर्मा, शैलेंद्र जी के पुत्र पारिजात सौरभ, प्रो उमा सिन्हा, प्रो निर्मल कुमार श्रीवास्तव, अभिजीत कश्यप, रमण सिंधी, अमिताभ ऋतुराज, डा दिवाकर तेजस्वी, कमल नयन श्रीवास्तव आदि ने भी अपने विचार व्यक्त किए। इस अवसर पर आयोजित कवि-सम्मेलन का आरंभ चंदा मिश्र ने वाणी-वंदना से किया। वरिष्ठ कवि और भारतीय प्रशासनिक सेवा के पूर्व अधिकारी बच्चा ठाकुर, चितरंजन लाल भारती, डा अर्चना त्रिपाठी, कुमार अनुपम, जय प्रकाश पुजारी, ई अशोक कुमार, नरेन्द्र कुमार, संदीप स्नेह आदि कवियों और कवयित्रियों ने अपनी रचनाओं से काव्यांजलि अर्पित की। मंच का संचालन कवि ब्रह्मानन्द पाण्डेय ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन कृष्ण रंजन सिंह ने किया।
अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर चर्चित रहीं बैंक अधिकारी रश्मि प्रसाद, अमिताभ गुप्त, पंकज कुमार, डा प्रेम प्रकाश, डा मनोज संधवार, जीतेन्द्र चौरसिया, आलोक सिंह, अमन वर्मा, कानन चौधरी आदि प्रबुद्धजन समारोह में उपस्थित थे।