पटना, २२ जनवरी। ‘भावुक कवि’ के रूप में चर्चित और सम्मानित रहे पं जनर्दन प्रसाद झा ‘द्विज’ छायावाद-काल के एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण कवि और मूल्यवान कथाकार थे। इनकी रचनाओं में युग-चेतना प्रखरता के साथ लक्षित होती है। महाकवि जयशंकर प्रसाद और कथा-सम्राट मुंशी प्रेमचंद्र से उनका बहुत निकट का सान्निध्य रहा। यही कारण था कि उनके साहित्य पर इन दोनों ही महान साहित्यकारों का गहरा प्रभाव था। वे राजेंद्र कौलेज, छपरा में हिन्दी विभाग के अध्यक्ष और बाद में डा लक्ष्मी नारायान सुधांशु के आग्रह पर पूर्णिया कालेज की स्थापना के समय से अपनी मृत्यु तक, उसके प्राचार्य रहे।
यह बातें बुधवार को बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में आयोजित जयंती-समारोह की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। उन्होंने कहा कि महान हिन्दी-सेवी डा लक्ष्मी नारायण ‘सुधांशु’ का द्विज जी से बहुत ही आत्मीय लगाव था। उनके ही आग्रह पर द्विज जी पूर्णिया गए। हिन्दी की अमूल्य सेवा के लिए वे सदैव याद किए जाते रहेंगे। वे सादा जीवन और उच्च विचार के प्रतीक-पुरुष थे।
वरिष्ठ कवि भगवती प्रसाद विवेदी, सम्मेलन की उपाध्यक्ष डा मधु वर्मा, डा रत्नेश्वर सिंह, भारतीय प्रशासनिक सेवा के अवकाश प्राप्त अधिकारी बच्चा ठाकुर तथा प्रो सुशील कुमार झा ने भी अपने विचार व्यक्त किए।
द्विज जी की स्मृति को कवियों और कवयित्रियों ने भी ‘गीत-गोष्ठी’ के माध्यम से विनम्र काव्यांजलि दी। गीत-गोष्ठी का आरंभ कवि सूर्य प्रकाश उपाध्याय की वाणी-वंदना से हुआ। वरिष्ठ कवयित्री विद्या चौधरी, मधुरेश नारायण, पं गणेश झा, सिद्धेश्वर, सदानन्द प्रसाद, रौली कुमारी, शंकर शरण आर्य आदि कवियों और कवयित्रियों ने अपनी रचनाओं का पाठ किया। मंच का संचालन कवि ब्रह्मानन्द पाण्डेय ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन कृष्ण रंजन सिंह ने किया। डा चंद्र शेखर आज़ाद, डा प्रेम प्रकाश, अभिषेक कुमार, नन्दन कुमार मीत आदि प्रबुद्ध जन समारोह में उपस्थित थे।