पटना, ११ जून। हिन्दी काव्य–साहित्य में मूल्यवान अवदान देनेवाले पिछली पीढ़ी के चर्चित सुकवि पं रामदेव झा जीवन के प्रति निस्सीम राग और अकुंठ उत्साह के आदरणीय कवि थे। प्रेम, करुणा और आस्था उनके कवि का मूल तत्त्व था। वे हिन्दी के समर्पित सेवक और ध्वज–वाहक थे। नगर में सदैव साहित्यिक जागरण में लिप्त रहा करते थे। उन्होंने अपने प्रियकवि, महाकवि जयशंकर प्रसाद की स्मृति में, ‘प्रसाद साहित्य परिषद‘ नामक एक संस्था की स्थापना कर, उसके माध्यम से प्रायः ही साहित्यिक–गोष्ठियाँ किया करते थे। ‘जलता है दीपक‘ नामक उनकी काव्य–रचना बहुत हीं लोकप्रिय हुई थी, जिसमें जीवन के प्रति उनकी विराट दृष्टि और मंगलभाव की प्रांजल अभिव्यक्ति मिलती है।
यह बातें गुरुवार की संध्या साहित्य सम्मेलन में आयोजित जयंती समारोह में, पं झा के चित्र पर माल्यार्पण के पश्चात अपने उद्गार में, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कहीं। डा सुलभ ने कहा कि पं झा साहित्य में खेमा–वंदी से सदा–सर्वदा दूर रहे। उनका स्वाभिमानी–कवि सदा ही ‘याचना‘ के स्थान पर साधना के पक्ष में खड़ा रहा। अपनी एक काव्य–रचना में इसकी अभिव्यक्ति देते हुए उन्होंने कहा– “वरदान चाहने वाला मन/ पूजा कर, मत वरदान माँग। साधना न फिरती है दर–दर/ प्रार्थना न होती है सब घर/साधना प्रार्थना करता जा/ मत पूजा का प्रतिदान माँग।“
पं झा के पुत्र राज किशोर झा, कवयित्री डा शालिनी पाण्डेय, डा विनय कुमार विष्णुपुरी, डा आर प्रवेश, अमित कुमार सिंह तथा निशिकांत मिश्र ने भी सुकवि के चित्र पर पुष्पांजलि कर श्र्द्धांजलि दी।
कौशलेन्द्र पाराशर, संवाददाता