पटना, १६ मार्च। किसी पुत्री के हृदय में उसके पिता का स्थान सबसे बड़ा और सबसे ऊँचा होता है। एक पुत्री अपने पिता के प्रति जो श्रद्धा रखती है, वह श्रद्धा भी किसी और के प्रति नहीं हो सकती। इसीलिए संकट के समय एक पुत्र जो सेवा नही कर पाता है, वह सेवा प्राण लगाकार पुत्रियाँ करती हैं। इसीलिए प्रत्येक पिता के मन में पुत्रियों के प्रति अधिक स्नेह और सम्मान होना चाहिए।यह विचार बुधवार को बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में विदुषी लेखिका शकुंतला अरुण की पुस्तक ‘पिता की जीवन यात्रा’ के लोकार्पण समारोह एवं कवि सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए,सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने व्यक्त किए। डा सुलभ ने कहा कि अपने पिता की जीवन यात्रा को लिपिबद्ध कर शकुंतला जी ने अपने पिता के प्रति उसी नैसर्गिक श्रद्धा की अभिव्यक्ति की है। शकुंतला जी एक संवेदनशील कवयित्री और विदुषी गद्य लेखिका हैं। लोकार्पित पुस्तक में इनकी श्रद्धा ही नहीं, इनकी प्रज्ञा भी रूपायित हुई है।पुस्तक का लोकार्पण कारने के पश्चात अपने उद्गार में चाणक्य राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय की कुलपति और पटना उच्च न्यायालय की पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति मृदुला मिश्र ने कहा कि लोकार्पित पुस्तक अत्यंत रोचक है। इसे पढ़ते हुए किसी उपन्यास के पढ़ने जैसी अनुभूति होती है। यह एक ऐसी पुस्तक है, जिससे प्रत्येक पुत्री को अपने पिता के विषय में लिखने की प्रेरणा मिलेगी।अतिथियों का स्वागत करते हुए, सम्मेलन के प्रधानमंत्री डा शिववंश पाण्डेय ने कहा कि जीवनी लेखन एक कठिन कार्य है। यह साहित्य की एक ऐसी विधा और प्रकिया है, जिसमें केवल इतिहास ही नही भूगोल भी स्थान पाता है। इसलिए जीवनी लेखक को, मुख्यपात्र के जीवन से जुड़े समस्त पक्षों को सूक्ष्मता से अवलोकन करना होता है। लेखिका ने इस पुस्तक में अपने पिता के जीवन के विषय में लिखकर उनके मूल्यवान व्यक्तित्व को समाज के समक्ष सुंदर रूप में रखा है, जिसकी प्रशंसा की जानी चाहिए।विश्वविद्यालय सेवा आयोग, बिहार के अध्यक्ष डा राजवर्द्धन आज़ाद ने कहा कि हम जैसे अनेक लोगों के पिता ऐसे हुए हैं, जिन्होंने समाज के लिए अपना जीवन अर्पित कर दिया। बड़े संघर्ष किए तब उपलब्धियाँ प्राप्त की। ऐसे व्यक्तियों पर लिखा जाना चाहिए। इस पुस्तक से मुझे भी अपने पिता बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और स्वतंत्रता सेनानी भागवत झा आज़ाद पर लिखने की प्रेरणा हुई है।सम्मेलन के उपाध्यक्ष नृपेंद्रनाथ गुप्त, वरिष्ठ साहित्यकार डा राजमणि मिश्र, अरुण कुमार मिश्र पुस्तक की लेखिका शकुंतला मिश्र ने भी अपने विचार व्यक्त किए।इस अवसर पर आयोजित कवि सम्मेलन का आरंभ डा अर्चना त्रिपाठी ने वाणी वंदना से किया। सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद, वरिष्ठ कवि बच्चा ठाकुर, रामनाथ राजेश, डा महेश राय, डा सुषमा कुमारी, डा ब्रह्मानंद पाण्डेय, जय प्रकाश पुजारी, अर्जुन प्रसाद सिंह, प्रीति सुमन, कुंदन आनंद, नरेंद्र कुमार आदि कवियों और कवयित्रियों ने भी काव्य-पाठ कर श्रोताओं को आह्लादित किया। मंच का संचालन किया श्रेया मिश्र ने।