कौशलेन्द्र पाराशर की रिपोर्ट नीलाशु रंजन के फेसबुक वॉल से संकलित अंश,CIN ब्यूरो / मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान आपको क्या हो गया है -टाइम्स नाऊ मध्यप्रदेश हेड गोविन्द गुर्जर को कुत्तों की तरह भोपाल के बंसल अस्पताल में सुरक्षा गार्डों और डाॅक्टरों के द्वारा पीटा गया-न्याय दीजिये.शर्म आती है तथाकथित राष्ट्रवादी पत्रकारों और प्राइम टाइम में राष्ट्रवाद का ज्ञान देने वाले और भोंपू की तरह चिल्लाने वाले राष्ट्रीय एंकरों पर. जी हाँ, अगर थोड़ी भी हया बची है तो शर्म कीजिये. राष्ट्रवादी चैनलों की भीड़ में एक चैनल है टाइम्स नाऊ और इस राष्ट्रवाद का घूंट पिलाने वाले इस चैनल के मध्यप्रदेश हेड गोविन्द गुर्जर को कुत्तों की तरह भोपाल के बंसल अस्पताल में सुरक्षा गार्डों और डाॅक्टरों के द्वारा पीटा गया. जी हाँ, मैं नहीं कह रहा हूँ, बल्कि टाइम्स नाऊ का यह स्टेट हेड ख़ुद कह रहा है कि उसे अस्पताल परिसर में कुत्तों की तरह पीटा गया… आप ख़ुद सुन लीजिये. जी हाँ, असली ख़बर तो यह है कि टाइम्स नाऊ और अन्य राष्ट्रवादी चैनलों ने ख़बर चलाना तो दूर, एक ट्वीट कर इसकी निंदा नहीं की. अब भला करें भी तो क्यों और किस मुँह से क्योंकि भाजपा शासित सूबे में राम राज्य आ जाने की घोषणा करते- करते ये इतने सत्यवादी हो चुके हैं कि इनके पत्रकार पिट भी जाएं तो इनके मुॅंह से भाप तक नहीं निकलेगी क्योंकि इनके आका की सरकार है. गोविन्द गुर्जर के परिवार सड़क हादसे में बुरी तरह घायल हो गया. उनकी बेटी और पत्नी को मल्टीपल फ्रैक्चर हुआ है और शिवराज सिंह चौहान के कहने पर ही बंसल अस्पताल में दाख़िल किया गया. गोविन्द जब अपने परिवार से मिलना चाह रहे थे, उसी में कुछ तू- तू मैं- मैं हुई और फिर क्या था… कुत्तों की तरह उन्हें पीटा गया और वे रो- रोकर ज़ख़्मी हालत में जान की दुहाई माॅंग रहे हैं और कह रहे हैं ” भगवान न करे, इस अस्पताल में कोई भर्ती हो.” लेकिन इस राष्ट्रवादी चैनल ने शिवराज सरकार से सवाल तो नहीं ही किया और न कोई ख़बर चलायी, बल्कि अपने ही पत्रकार को मुआमले को रफ़ा- दफ़ा करने को कहा जा रहा है. अगर यहाँ ग़ैर भाजपा की सरकार होती तो दूसरे चैनल का भोंपू पत्रकार बैठ जाता और चिल्लाता ” पूछता है भारत.”
याद है, बीते 12 अप्रैल को न्यूज़ 18 का एक पत्रकार नोयडा की एक सोसाइटी में रामनवमी की जागरण की रात पीटा गया उन लोगो के द्वारा जिनका हिन्दूत्व जाग उठा है. लेकिन उसमें भी चैनल ख़ामोश रह गया क्योंकि आका की बात थी. ये वही राष्ट्रवादी पत्रकार हैं जो मस्जिदों और एक ख़ास समुदाय के घरों पर बुलडोज़र चलने पर जश्न मनाते हैं और एक मोहतरमा तो बुलडोज़र पर चढ़कर रिपोर्टिंग करती हैं कि यह संकेत है और संदेश है. लेकिन उसी समय सुप्रीम कोर्ट के निर्देश को तार- तार किया जाता है तो उनके मुँह पे ताले लग जाते हैं.जो ज़मीनी मुद्दे हैं , मसलन, मॅंहगाई, बेरोज़गारी, बद से बदतर होते आर्थिक हालात, उस पर नहीं बोलेंगे. इन्हें चाहिए अज़ान और लाउडस्पीकर का मसला ताकि ज़हर उगलते रहें और राष्ट्रवाद का तमगा चमकाते रहें, अब इनके ही मारे जाएं- पीटे जाएं तो क्या होता है? लेकिन इतना तो ऑंखों में पानी रखिये कि अपने पत्रकार के पिटने पर अपने आका से… राम राज्य के सिंहासन पर बैठे आका से सवाल कर सकिए. इतने तो बेहया मत होइए.