पटना, १ जून। विकलांग महिलाओं को उनकी शारीरिक विवशताओं और स्त्री होने के कारण निरंतर दोगुनी समस्याओं के साथ जीना पड़ता है। उनके पास बहुत सीमित आर्थिक, सामाजिक और राजनैतिक अवसर होते हैं और उन पर यौन-शोषण तथा शारीरिक-हिंसा का ख़तरा भी सबसे अधिक होता है।यह बातें विगत दिन, भारतीय पुनर्वास परिषद के सौजन्य से बेउर स्थित इंडियन इंस्टिच्युट औफ़ हेल्थ एजुकेशन ऐंड रिसर्च में, “एनस्योरिंग सेफ़्टी फौर चिल्ड्रेन विद डिजैबिलिटी” विषय पर आयोजित तीन दिवसीय विशेष प्रशिक्षण कार्यशाला (सी आर ई) के समापन के दिन अपना वैज्ञानिक-पत्र प्रस्तुत करती हुई, जयपुर के एस एम एस साइकेट्रिक सेंटर में नैदानिक मनो-वैज्ञानिक डा सिद्धि जैन ने कही। उन्होंने कहा कि विकलांग लड़के और लड़कियाँ बुनियादी-सेवाओं की पहुँच से बाहर होने के कारण सर्वाधिक असुरक्षित असुरक्षित हैं, जिनकी सुरक्षा के लिए सरकार ही नहीं संपूर्ण समाज को जागरुक होना चाहिए।विजन इंस्टिच्युट ऑफ अप्लाएड स्टडीज़, फ़रीदाबाद में सहायक प्राध्यापक डा विजय भारती ने कहा कि ताज़ा शोधों के अनुसार नौकरियों में,विकलांग महिलाओं को पुरुषों की तुलना में आज भी बहुत कम अवसर दिए जा रहे हैं। यह भेद-भाव न केवल सरकारी अथवा ग़ैर सरकारी संस्थानों में बल्कि व्यापारिक संस्थाओं में भी जारी है। नैदानिक मनो-वैज्ञानिक डा पूनम गर्ग ने कहा कि दिव्यांग महिलाओं और बच्चों के साथ होने वाली हिंसा को रोकने के लिए सामाजिक और पारिवारिक स्तर पर जागरूकता आवश्यक है।संस्थान के निदेशक-प्रमुख डा अनिल सुलभ की अध्यक्षता में आयोजित इस अंतर्राष्ट्रीय वेबिनार में, कनाडा की नैदानिक-मनोवैज्ञानिक डा देवांशी शर्मा, ताजिकिस्तान के दुशानबे में मेंटल हेल्थ मैनेजर डा बंदिता गोगोई, औडियोलौजिस्ट ऐंड स्पीच पैथोलौजिस्ट डा आलोक कुमार सिंह, डा समैया खान, डा इशा सिंह, डा राहुल औदिच्या, डा विवेक कुमार झा, डा जयदीप दास, डा मुक्ता मृणालिनी ने भी अपने वैज्ञानिक-पत्र प्रस्तुत किए।कार्यशाला के समन्वयक और संस्थान के विशेष शिक्षा विभाग के अध्यक्ष प्रो कपिलमुनि दूबे, डा अजय कुमार मिश्र तथा मुस्कान और अंजलि ने अलग-अलग सत्रों का संचालन किया। इसमें विश्व के विभिन्न स्थानों से कुल तीन सौ प्रतिभागी पुनर्वास-विशेषज्ञों ने भाग लिया।